प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के तरीके पर अकसर बहस होती है। यानी समूह में चर्चा से कांसेप्ट क्लीयर करके तैयारी करना बेहतर है या फिर अपनी क्षमता और गति से अध्ययन। एक स्थिति में एक-दूसरे को समझाना आसान है तो दूसरी में फोकस। दोनों तरीके सफल हैं, अपनी जरूरत मुताबिक अपनाएं।
अक्सर सवाल उठता है कि क्या वाकई ग्रुप स्टडी का विशेष महत्व होता है या प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के लिए अकेले में तैयारी करना ज्यादा फायदेमंद है। यानी कौन सी रणनीति ज्यादा उपयुक्त होती है? दरअसल, कुछ छात्र जहां अकेले में पढ़ना पसंद करते हैं, वहीं कुछ को समूह में पढ़कर सफलता मिलती है। लेकिन दोनों ही तरीकों के फायदे और नुकसान हैं।
ग्रुप स्टडी का मनोविज्ञान
सामूहिक अध्ययन या ग्रुप स्टडी प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए एक ऐसा वातावरण निर्मित करती है, जिसमें दो या दो से अधिक परीक्षार्थी मिलकर किसी विषय का अध्ययन और उस पर चर्चा करते हैं। इसका प्रमुख लाभ ज्ञान का साझा होना होता है। अकसर कोई विषय जिसे कोई एक छात्र कठिन समझता है, वहीं वह दूसरे के लिए आसान प्रतीत होता है, तो इस स्थिति में एक दूसरे को समझाने और सिखाने की प्रक्रिया आसान हो जाती है और जिसे विषय कठिन लग रहा होता है, उसको इसका फायदा मिलता है। अगर किसी को क्वांटिटेटिव एप्ट्यिूड में दिक्कत है और किसी को जनरल स्टडी में, तो ऐसी स्थिति में दोनों को एक दूसरे से फायदा मिलता है। वहीं जब दो या दो से ज्यादा लोग किसी विषय को मिलकर पढ़ते हैं, बातचीत या डिस्कशन करते हैं, तो किताबों या डिजिटल कंटेंट के मुकाबले ज्यादा बेहतर ढंग से समझ में आता है। परीक्षार्थी एक-दूसरे के साथ लगातार मोटिवेट होते रह सकते हैं ,ऊब या निराशा नहीं घेरती है।
हमेशा फायदेमंद होना जरूरी नहीं
लेकिन समूह में पढ़ना हमेशा फायदेमंद हो, यह जरूरी नहीं। आमतौर पर समूह में पढ़ने के दौरान कई छात्रों और परीक्षार्थियों का फोकस बिखर जाता है। वे गंभीर नहीं रहते और पढ़ाई के दौरान इधर-उधर की बातों में भटक जाते हैं। आपस में बहस और झड़प भी हो जाती है। वहीं एक समस्या अलग अलग परीक्षार्थियों और छात्रों की अलग-अलग क्षमताओं का होना भी होता है। सबके पढ़ने की अपनी टाइमिंग और गति अलग होती है। कई बार सामंजस्य बनाना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा कई बार कमजोर छात्र ज्यादा तेज छात्रों पर पूरी तरह से निर्भर होकर रह जाते हैं।
सोलो स्टडी के फायदे
इसके विपरीत यदि हम अकेले में पढ़ाई करते हैं यानी सोलो स्टडी करते हैं, तो हम यह अध्ययन अपनी क्षमता, अपने तरीके और अपनी गति के आधार पर करते हैं। कई बार तो यह बहुत कारगर होता है, लेकिन अगर हमारी निजी क्षमताएं सफलता के अनुकूल न हुईं, तो अकेले में पढ़ना नुकसानदायक हो जाता है। दरअसल सोलो स्टाइल में स्टडी करना उन छात्रों व परीक्षार्थियों के लिए बेहतर होता है, जिनमें खुद का बेहतर आत्म अनुशासन और अंतःप्रेरणा होती है। अकेले में पढ़ते समय बाहरी व्यवधान कम से कम होते हैं, जिस कारण फोकस बढ़ जाता है, वहीं रणनीति बनाना भी कहीं ज्यादा आसान होता है।
कुछ सीमाएं भी
लेकिन अकेले में पढ़ने की भी कुछ सीमाएं हैं। जैसे लंबे समय तक अकेले पढ़ते रहने से बोरियत और थकान महसूस होती है। वहीं वास्तविक फीड बैक हमें नहीं मिलता। इसलिए कई बार बेहतर पढ़ाई के लिए हम प्रेरित नहीं होते और गैरजरूरी ढंग से किसी विषय पर ज्यादा से ज्यादा समय तक डूबे रहते हैं। डाउट दूर करने को हालांकि गूगल और एआई हैं, लेकिन जो स्पष्टता साथ में पढ़ने वाले परीक्षार्थी के जरिये होती है, वैसी डिजिटल तरीकों से नहीं मिलती। यूपीएससी, एसएससी, बैंकिंग, रेलवे या किसी भी राज्य स्तरीय परीक्षा की तैयारी में जिस कंसेप्ट क्लियरिटी और नियमित पुनरावृत्ति की जरूरत होती है, कई बार वह अकेले में संभव नहीं हो पाती। तो ग्रुप स्टडी और सोलो स्टडी दोनों के ही अगर कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान होते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक ग्रुप स्टडी तभी ज्यादा उपयोगी होती है, जब यह ग्रुप या समूह छोटा हो और पढ़ाई का लक्ष्य स्पष्ट और फोकस्ड हो। जानकार ग्रुप स्टडी को पढ़ाई का विकल्प नहीं बल्कि पूरक साधन मानते हैं। क्योंकि तैयारी तो आत्म अनुशासन से होती है। दरअसल दोनों ही अध्ययन के तरीके अपने आपमें सफल और बेहतर है, बस फर्क ये होता है कि आप उन्हें किस तरह से अपनाते हैं। -इ.रि.सें.
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