लाइब्रेरियन अब सिर्फ पुस्तकों के संरक्षक नहीं उनका पेशा अब आधुनिक टेक संचालित हो चुका है। ई-रिसोर्सेज़ की उपलब्धता, ऑनलाइन जर्नल की सदस्यता और ई-गवर्नेंस ने उसकी भूमिका स्मार्ट और वर्सेटाइल बना दी। वह अब स्कूल, कॉलेज तक सीमित नहीं बल्कि कंपनियों के नॉलेज मैनेजमेंट सिस्टम में लाइब्रेरियन की डिजिटल दक्षता, डेटा इंडेक्सिंग, कंटेंट क्यूरेशन, डॉक्यूमेंट मैनेजमेंट आदि काम आती हैं।
एक समय था, जब लाइब्रेरियन का काम केवल किताबों की अलमारियों में किताबों को व्यवस्थित रखना, कैटलॉग तैयार करना और पाठकों को आवश्यक पुस्तक तक पहुंचानाभर समझा जाता था। लेकिन पिछले एक दशक में भारत में जो डिजिटल क्रांति हुई है, उसके चलते अब लाइब्रेरियनशिप एक पारंपरिक सेवा से बदलकर अत्यंत आधुनिक, टेक संचालित और रणनीतिक कैरियर बन चुका है। आज लाइब्रेरियन सिर्फ पुस्तकों के संरक्षक नहीं बल्कि डिजिटल नॉलेज मैनेजर हैं। इन्हें डाटा क्यूरेटर, लर्निंग टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट और इंफार्मेशन नेविगेटर भी कह सकते हैं। वास्तव में भारत सरकार की राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी पहल ने विश्वविद्यालयों में ई-रिसोर्सेज़ की उपलब्धता, ऑनलाइन जर्नल की सदस्यता और ई-गवर्नेंस ने लाइब्रेरियन की भूमिका को पहले से कहीं ज्यादा स्मार्ट और वर्सेटाइल बना दिया है। लाइब्रेरियन केवल भौतिक पुस्तकों को ही नहीं बल्कि ई-बुक, ई-जर्नल, डेटा बेस, ओपन सोर्स रिपॉजिटरी, डिजिटल आर्काइव्स आदि का भी संचालन करता है। इसलिए आज के लाइब्रेरियन के पास डिजिटल रिपॉजिटरी मैनेजमेंट, डेटा माइग्रेशन, मेटा डेटा स्कीम और क्लाउड आधारित लाइब्रेरी सिस्टम, जिनमें कौशल होना आवश्यक है। ऐसे ज्ञान से लैस पेशेवरों की मांग विश्वविद्यालयों, सरकारी संस्थानों, शोध केंद्रों और कार्पोरेट सेक्टर में बहुत तेजी से बढ़ी है।
ऑटोमेशन और एआई का असर
आधुनिक लाइब्रेरी अब आईएलएस (इंटीग्रेटिड लाइब्रेरी सिस्टम) आरएफआईडी, एआई आधारित सर्च सिस्टम और ऑटोमेटिक कैटलॉगिंग का उपयोग करती है। इस बदलाव के कारण लाइब्रेरियन अब केवल रिकॉर्ड दर्ज करने वाले व्यक्तिभर नहीं हैं बल्कि एआई फ्रेंडली, नॉलेज आर्किटेक्ट बन गये हैं। आज की दुनिया में इनका काम नये-नये आयाम हासिल कर चुका है। मसलन- ऑटोमेशन सिस्टम सेटअप करना, डेटा की सटीकता और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना, उपयोगकर्ताओं को डिजिटल लर्निंग गाइडेंस देना, खोज परिणामों को बेहतर बनाने के लिए एआई टूल्स के पैरामीटर्स को समझना, इन तमाम तकनीकों ने लाइब्रेरियन के कार्यक्षेत्र को बढ़ाया है।
डिजिटल स्किल्स ने खोले नये रोजगार क्षेत्र
डिजिटल कुशल लाइब्रेरियन अब केवल स्कूल, कॉलेज तक सीमित नहीं बल्कि कई कंपनियां अब नॉलेज मैनेजमेंट सिस्टम चलाती हैं। यहां लाइब्रेरियन डिजिटल दक्षता, डेटा इंडेक्सिंग, कंटेंट क्यूरेशन, डॉक्यूमेंट मैनेजमेंट आदि बहुत काम आती हैं। लाइब्रेरियन आज ई-लर्निंग कंटेंट स्पेशलिस्ट बन चुके हैं। वो ऑनलाइन शिक्षा, एलएमएस प्लेटफॉर्म आदि के बढ़ने से कंटेंट टैगिंग,डिजिटल लर्निंग रिसोर्सेस की मैपिंग और यूजर बिहेवियर एनालिसिस आदि का भी काम करते हैं। आजकल लाइब्रेरियन को डिजिटल आर्किविस्ट भी कहा जाता है। ये अखबारों, सरकारी दफ्तरों और संग्रहालयों आदि में महत्वपूर्ण दस्तावेजों को डिजिटाइज करने का काम करते हैं। यहां लाइब्रेरियन की मेटा डेटा और डॉक्यूमेंट पिजर्वेशन स्कीम काम आती है। रिसर्च डेटा मैनेजर जैसी पोस्ट भी आजकल लाइब्रेरियन को मिल रही हैं, जिससे वो शोध संस्थानों में डेटा संग्रह, वर्गीकरण, सांख्यिकीय दस्तावेजों को सुरक्षित रखना और ओपन एक्सेस नीतियों का पालन कराते हैं।
शिक्षण सहायक भी
नई शिक्षा नीति 2020 के बाद उच्च शिक्षा संस्थानों में लाइब्रेरियन छात्रों को डिजिटल साक्षरता, रिसर्च मेथ्डोलॉजी, प्लेजरिज्म अवेयरनेस और डेटा बेस नेविगेशन जैसे विषयों पर मुख्य मार्गदर्शक बनकर उभरे हैं। ये परिवर्तन लाइब्रेरियन को शिक्षा व्यवस्था का सक्रिय सहयोगी बनाते हैं। इससे लाइब्रेरियन की प्रतिष्ठा और भूमिका दोनों मजबूत हुई हैं। डिजिटल इंडिया और स्मार्ट लाइब्रेरी के इस नये युग में स्मार्ट सिटी मिशन, डिजिटल ग्राम लाइब्रेरी आदि के बढ़ने से लाइब्रेरियन के रोजगार में क्षेत्रीय विस्तार हुआ है। ग्रामीण और शहरी दोनों स्तरों पर लाइब्रेरियन का रूप बदल गया है। आईटी आधारित, सेल्फ चेक इन/आउट स्टेशन, क्लाउड कैटलॉग और मोबाइल ऐप-बेस्ड लाइब्रेरी सेवाएं- ये सब डिजिटल दक्षता की वजह से संभव हुआ है।
कौशल और तकनीक का संगम
आज भारतीय लाइब्रेरियन कई तरह के डिजिटल दक्षताओं के बिना आगे नहीं बढ़ सकता। मसलन कोहा, डी-स्पेस, ई-ग्रंथालय जैसे सॉफ्टवेयर का उपयोग करता है। मसलन -मेटा डेटा की विशेषज्ञता, डिजिटल प्रिजर्वेशन, वेब डिजाइन की समझ, साइबर सुरक्षा और गोपनीयता व कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम का संचालन। ये कुशलताएं आज लाइब्रेरियन में होनी ही चाहिए। लाइब्रेरियन का वेतन भी अब पहले से बेहतर हुआ है। सरकारी विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षण संस्थान 45 हजार से 1 लाख 20 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन देते हैं। कारपोरेट सेक्टर में यह 60 हजार से 1 लाख 50 हजार रुपये प्रतिमाह हो सकता है। डिजिटल आर्किविस्ट/कंटेंट क्यूरेटर को 40 हजार से 1 लाख रुपये प्रतिमाह और रिसर्च डेटा मैनेजर को 70 से 1 लाख 40 हजार रुपये तक का प्रतिमाह वेतन आसानी से मिल जाता है। इस तरह डिजिटल तकनीक ने लाइब्रेरियन का प्रोफेशन विकसित, प्रतिष्ठित और बहुआयामी बना दिया है। -इ.रि.सें.
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