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जॉब पाने में मददगार छोटे-छोटे कोर्स

माइक्रो-क्रेडेंशियल्स
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कंपनियां आजकल नियुक्ति करते समय देखती हैं कि उम्मीदवार अपने काम में कितना दक्ष है, क्या उसे नई तकनीक की समझ है। पेशेवरों को ऐसी काबिलियत दे रहे हैं माइक्रो-क्रेडेंशियल्स। यानी किसी खास स्किल से जुड़े छोटे कोर्सेज। जॉब पाने या अपग्रेड करने के अब डिग्री काफी नहीं। ऑनलाइन लर्निंग इसमें मददगार है।

माइक्रो-क्रेडेंशियल्स वे छोटे-छोटे सर्टिफिकेशन या स्किल बेस्ड कोर्स होते हैं, जिन्हें पारंपरिक डिग्री की तरह सालों तक करने की जरूरत नहीं होती, ये किसी स्पेसिफिक स्किल टूल या प्रैक्टिकल नॉलेज पर केंद्रित होते हैं। जैसे- डाटा एनालिटिक्स विद एक्सेल, एआई प्रॉम्ट इंजीनियरिंग, ग्रीन फाइनेंस और डिजिटल मार्केटिंग आदि। इन्हें कोई भी कुछ हफ्तों या महीनों में ऑनलाइन या ऑफलाइन तरीके से पूरा कर सकता है। आमतौर पर ये मॉड्यूलर होते हैं यानी इन कुशलताओं या स्किल्स को एक-एक करके जोड़ते जाओ और चाहो तो बाद में डिग्री या एडवांस कोर्स में क्रेडिट के तौरपर भी इस्तेमाल कर लो।

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बहरहाल आज माइक्रो-क्रेडेंशियल्स का प्रभाव कैरियर की दुनिया में लगातार बढ़ता जा रहा है। केवल डिग्री सब कुछ नहीं रह गई। कंपनियां और नियोक्ता आजकल यह देखते हैं कि वह जिसे भर्ती कर रहे हैं या जॉब दे रहे हैं, वह अपने काम में कितना दक्ष है, उसे नई तकनीक या ज्ञान की समझ है या नहीं। अगर नहीं है, तो भी वह कितनी जल्दी यह समझ हासिल कर सकता है। माइक्रो-क्रेडेंशियल्स की अवधारणा बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रही है।

इसलिए बढ़ रही है मांग

कैरियर बाजार बड़ी तेजी से बदल रहा है। पहले जहां कंपनियां डिग्रियों को पहली प्राथमिकता देती थीं, वहीं अब ये सीधे सीधे स्किल्स को महत्व दे रही हैं। रिज़्यूमे में किसी माइक्रो-क्रेडेंशियल्स का उल्लेख उम्मीदवार को यह वजन देता है कि वह विशेष कौशल से युक्त है और उद्योग की मौजूदा जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, ब्लॉकचेन, साइबर सिक्योरिटी और ग्रीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में हर महीने कुछ न कुछ नये तकनीकी परिवर्तन हो रहे हैं। नये नये टूल्स और सॉफ्टवेयर आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में चार साल की डिग्री पूरी होने तक पूरा सिलेबस ही अप्रासंगिक हो सकता है। ऐसे में माइक्रो-क्रेडेंशियल्स उपयोगी साबित हो रहे हैं।

मिड-कैरियर अपस्किलिंग

यह सिर्फ नये नौकरी ढूंढ़ रहे उम्मीदवारों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि ऐसे पेशेवर जो लंबे समय से काम कर रहे हैं, मगर इनके कामकाज का तरीका पुराना हो चुका है, तो उन्हें खुद को नई तकनीक और कार्यसंस्कृति में एडजेस्ट करने के लिए समय पर कर लिए जाने वाले माइक्रो-क्रेडेंशियल्स या सर्टिफिकेशन मजबूत सहारा देते हैं। माइक्रो-क्रेडेंशियल्स की बदौलत अधेड़ लोग भी अपने मिड-कैरियर में यह अपस्किलिंग कर सकते हैं। इससे उन्हें बेहतर पोजीशन या नई इंडस्ट्री में जगह बनाना आसान होता है। नई कार्यसंस्कृति में पढ़ने और सीखने की लाइफ लांग कल्चर बन चुकी है।

भारत में बढ़ती मांग

भारत में यह ट्रेंड तेजी से अपने पांव पसार रहा है। ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म जैसे कोरसेरा, ईडीएक्स, यूडेमी, लिंक्ड इन लर्निंग और भारत सरकार का स्वयं पोर्टल इस ट्रेंड को लोकप्रिय बनाने में बेहद मददगार साबित हो रहा है। ये सभी प्लेटफॉर्म जरूरतमंदों को माइक्रो-क्रेडेंशियल्स उपलब्ध करा रहे हैं। यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन ने भी ‘अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ और ‘मॉड्यूलर डिग्री’ की अवधारणा को मान्यता दी है। कंपनियां अब भर्ती और प्रमोशन में माइक्रो-क्रेडेंशियल्स को स्किल्ड प्रूफ की तरह मान्यता दे रही है।

मिड-कैरियर प्रोफेशनल को अपनी जॉब में प्रमोशन के लिए इसकी जबर्दस्त जरूरत महसूस हो रही है। फ्रीलांसर और उद्यमियों के लिए यह बहुत कारगर है। इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य का कैरियर पाथ डिग्री माइक्रो-क्रेडेंशियल्स के कॉम्बिनेशन से ही बनेगा।

चुनौतियां भी कम नहीं

यह अवधारणा सुनने और समझने में बेहद आकर्षक है, पर कुछ चुनौतियां भी सामने हैं। हर प्लेटफॉर्म पर माइक्रो-क्रेडेंशियल्स एक स्तर के ही नहीं होते, कई जगहों पर गुणवत्ता की मांग उससे कहीं ज्यादा होती है। इसलिए यह नहीं सोचा जा सकता कि सिर्फ माइक्रो-क्रेडेंशियल्स से ही काम चल जायेगा। कई कंपनियां अभी भी डिग्री पर ही जोर दे रही हैं। वहीं कई बार एक डिग्री करने के बजाय अगर हम कई छोटे छोटे कोर्स करते हैं तो उनकी लागत कहीं ज्यादा आ जाती है। दरअसल माइक्रो-क्रेडेंशियल्स एक नये युग की शुरुआत हैं और उन युवाओं तथा पेशेवरों को मदद कर रहे हैं जो तेजी से बदलते कैरियर बाजार में खुद को अपडेट रखना चाहते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले पांच सालों में भारतीय कैरियर परिदृश्य का सबसे ताकतवर पहलू माइक्रो-क्रेडेंशियल्स ही होंगे। -इ.रि.सें.

 

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