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शिमला के सेब की बर्फी खास, पहुंच रही दिलों के पास

हिमाचल के एक स्वयं सहायता समूह का अनूठा प्रयास
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सेब की बर्फी
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शिमला जहां अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है, वहीं सेब उत्पादन के लिए भी यह जिला अपनी विशेष पहचान रखता है। हिल क्वीन कहलाने वाला शिमला अब सेब की बर्फी के लिए भी मशहूर होने लगा है। जिले के आकांक्षी खंड छोहारा के तहत एक स्वयं सहायता समूह ‘जय देवता जाबल नारायण’ सेब की अनूठी बर्फी लोगों तक पहुंचा रहा है। समूह का दावा है कि ऑर्गेनिक तौर पर तैयार इस बर्फी का स्वाद लोगों को बेहद भा रहा है।

समूह की प्रधान आशु ठाकुर के अनुसार, उनकी सेब की बर्फी की मांग काफी बढ़ रही है। हर महीने करीब 25 हजार रुपये की बर्फी कुल्लु जिले में भेजी जाती है। स्थानीय स्तर पर यह बर्फी बेची जा रही है। समय-समय पर मेलों और कार्यक्रमों में स्टॉल लगाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि सेब की बर्फी बनाने में काफी मेहनत लगती है। ऐसे में दाम भी उसी तरह तय किए गए हैं।

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स्वयं सहायता समूह जय देवता जाबल नारायण के अनुसार यह सेब की बर्फी एक साल तक भी खराब नहीं होती। इसमें फंगस नहीं लगती और इसका स्वाद एकदम ताजा रहता है।

उपायुक्त शिमला अनुपम कश्यप का कहना है कि जिले भर में स्वयं सहायता समूह बहुत ही अच्छा कार्य कर रहे हैं। उनके कई उत्पादों की मांग देश, दुनिया में भी होने लगी है। स्वयं सहायता समूहों को मूलभूत सुविधाएं, प्रशिक्षण मुहैया करवाना प्राथमिकता है। इसके अलावा समय-समय पर उनके लिए स्टॉल लगाने की सुविधा मुहैया करवाई जाती है। एनआरएलएम मिशन छौहारा के एग्जीक्यूटिव कुशाल सिंह ने कहा कि स्वयं सहायता समूहों के लिए नये अवसर मुहैया करवाए जा रहे हैं, ताकि ग्रामीण महिलाएं आत्मनिर्भर बनकर नयी पहचान बना सकें।

आकांक्षी हाट से खरीद सकते हैं : अगर आप सेब की बर्फी का स्वाद चखना चाहते हैं तो शिमला के रिज मैदान के साथ पदमदेव परिसर में छौहारा और कुपवी आकांक्षी विकास खंड की ओर से लगाए गये ‘आकांक्षी हाट’ में जय देवता जाबल नारायण स्वयं सहायता समूह के स्टॉल से खरीद सकते हैं। इसका एक डिब्बा 325 रुपये का बेचा जा रहा है। समूह इसे आॅनलाइन भी भिजवा देता है।

ऐसी बनाते हैं : समूह की सदस्य सपना के अनुसार हम सबसे अच्छे सेब एकत्रित करते हैं। पहले चरण में इन्हें तीन चार-बार धोया जाता है। दूसरे चरण में सेब से पल्प निकाला जाता है और उसे काफी देर तक पकाया जाता है। इसके बाद ड्राई फ्रूट मिलाकर रंग गहरा भूरा होने तक पकाया जाता है। इसके बाद इसे प्लेट में तीन से चार दिनों तक रखा जाता है। इसके बाद तैयार बर्फी को छोटे-छोटे पीस में काटकर पैकिंग की जाती है।

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