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विधानसभा की रिपोर्टिंग में संयम और सजगता अनिवार्य : हरविंद्र कल्याण

पहली बार विधानसभा कवर करने वाले पत्रकारों के लिए ऐतिहासिक कार्यशाला
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चंडीगढ़ में मंगलवार को हरियाणा विस की कार्यशाला में स्पीकर हरविंद्र कल्याण के साथ विस सचिव राजीव प्रसाद, दैनिक टि्रब्यून के संपादक नरेश कौशल, पूर्व मुख्य सचिव केशनी आनंद अरोड़ा, हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के निदेशक डॉ. चंद्र त्रिखा। 
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हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष हरविंद्र कल्याण ने कहा कि सदन की कार्यवाही की रिपोर्टिंग पत्रकारिता का बेहद जिम्मेदार और संवेदनशील क्षेत्र है, जिसमें संयम और सजगता दोनों जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि विधानसभा में एक ही मंच पर विभिन्न राजनीतिक दलों के जनप्रतिनिधि अपनी-अपनी नीतियों व दृष्टिकोण के तहत बहस करते हैं। ऐसे में पत्रकारों को संतुलित दृष्टिकोण अपनाकर, जनहित की बात को सटीक और निष्पक्ष तरीके से जनता तक पहुंचाना चाहिए।

स्पीकर मंगलवार को हरियाणा विधानसभा की ओर से आयोजित एक दिवसीय क्षमता निर्माण कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। यह कार्यशाला खासतौर पर उन पत्रकारों के लिए आयोजित की गई थी, जो पहली बार विधानसभा की कार्यवाही को कवर कर रहे हैं। विशेष बात यह रही कि पहली नवंबर, 1966 को हरियाणा के गठन के बाद यह पहला अवसर था, जब विधानसभा में विधायकों, कर्मचारियों, अधिकारियों और पत्रकारों को सदन की कार्यप्रणाली में आए बदलावों की जानकारी देने के लिए इस तरह का प्रशिक्षण सत्र आयोजित हुआ।

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हरविंद्र कल्याण ने कहा कि विधानसभा केवल कानून बनाने वाली संस्था नहीं, बल्कि यह ऐसा लोकतांत्रिक मंच है जहां सभी राजनीतिक दल अपने-अपने दायरे में रहकर राज्यहित में चर्चा करते हैं। उन्होंने कहा कि सदन में पारित होने वाले विधेयकों की भाषा अक्सर संक्षिप्त और तकनीकी होती है। मीडिया का दायित्व है कि वह इन विधेयकों को सरल भाषा में जनता के सामने रखे, ताकि आम नागरिक उसकी वास्तविकता और प्रभाव को समझ सके। उन्होंने चेताया कि कई बार सदन में तत्कालिक घटनाओं से जुड़े विधेयक पेश होते हैं, ऐसे में पत्रकारों को बेहद जागरूक रहना चाहिए।

डिजिटल युग में बढ़ा दबाव : केशनी आनंद अरोड़ा

1983 बैच की पूर्व आईएएस और हरियाणा की पूर्व मुख्य सचिव केशनी आनंद अरोड़ा ने अपने कार्यकाल के अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर डिजिटल मीडिया का दबाव लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने पत्रकारों से आग्रह किया कि वे खबरों के लिए नियमित लक्ष्य तय करें और तथ्यों पर आधारित, अध्ययनशील पत्रकारिता को प्राथमिकता दें। अरोड़ा ने अपने कार्यकाल में शुरू की गई ‘ई-गवर्नेंस’ और ‘यूआईडी प्रोजेक्ट’ के अनुभव साझा करते किए। उन्होंने कहा कि मीडिया में आ रही नई पीढ़ी हर सवाल का तुरंत जवाब तलाशने में सक्षम है, लेकिन इस क्षेत्र में धैर्य, गहराई से अध्ययन और तथ्यपरक दृष्टिकोण की अहम भूमिका है। कार्यशाला में आईएएस व पब्लिक रिलेशन डिपार्टमेंट की एडिशनल डायरेक्टर वर्षा खंगवाल, पीआरएस लेजिस्टलेटिव रिसर्च से चक्षु राय, विधानसभा सचिव राजीव प्रसाद, स्पीकर के एडवाइजर रामनारायण यादव, वरिष्ठ अधिकारी नवीन भारद्वाज, मीडिया एवं जनसंचार अधिकारी दिनेश कुमार, पीआरओ संदीप साहिल समेत कई वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।

चक्षु राय ने बताए नियम

कार्यशाला में पीआरएस लेजिस्लेचर रिसर्च के चक्षु राय और यशिका केडिया ने उपस्थित मीडिया कर्मियों के समक्ष संसद एवं विधानसभा की कार्रवाई की कवरेज के दौरान ध्यान रखे जाने वाले विभिन्न पहलुओं के बारे में अपनी बात रखी। चक्षु राय ने विधायिका के विशेषाधिकार की बारीकियों को सांझा किया। उन्होंने कहा कि सत्र के दौरान अगर अध्यक्ष किसी बात को या विषय को सत्र की कार्रवाई से हटा देते हैं, तो वो कवर होना एक तरह से विशेषाधिकार का उल्लंघन है। सत्र के पटल पर आने से पहले अगर कोई डॉक्यूमेंट आदि पब्लिश होता है तो वह भी विशेषाधिकार हनन में आएगा।

प्रेस ब्रीफिंग से अहम है सदन : गुरमीत सिंह

पंजाब यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ़ गुरमीत सिंह ने अपने मीडिया के पुराने अनुभव साझा किए। उन्होंने विधानसभा की कार्यवाही और इसी दौरान प्रेस लॉबी में होने वाली मीडिया ब्रीफिंग पर अपनी बात रखी। डॉ़ सिंह ने कहा कि चलते सदन के समय प्रेस ब्रीफिंग से महत्वपूर्ण सदन की कार्यवाही देखना होता है। हालांकि आज के दौरान में अधिकांश मीडिया हाउस में विधानसभा कवरेज के लिए एक से अधिक पत्रकार जाते हैं, ऐसे में यह दिक्कत भी अब कम हो गई है। प्रेस ब्रीफिंग को और अहम बनाने के गुर देते हुए उन्होंने कहा कि सभी पत्रकारों को चाहिए कि वे प्रेस कांफ्रेंस को रिले रेस की तरह आगे बढ़ाएं। किसी साथी ने अगर कोई सवाल किया है और सामने वाला उसे टाल रहा है तो दूसरे को चाहिए कि उसी सवाल पर फिर से कुरेदा जाए। डॉ़ गुरमीत सिंह ने कहा कि विधायिका की रिपोर्टिंग के लिये हमें पुराने दस्तावेजों का भी अध्ययन कर लेना चाहिए, ताकि तकनीकी तौर पर हम मजबूत हो सके।

कंट्रोल में रहे की-बोर्ड वाला स्टेयरिंग : नरेश कौशल

मीडिया वर्कशाप में दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल ने प्रिंट मीडिया के महत्व के साथ-साथ सोशल और डिजिटल मीडिया पर अपनी बात रखी। उन्होंने स्वीकारा कि डिजिटल मीडिया ने चुनौतियां बढ़ाई हैं, लेकिन प्रिंट मीडिया का महत्व बरकरार है। कौशल ने कहा कि मीडिया की भूमिका बहुआयामी है। जिस प्रकार से ड्राइविंग करते वक्त यातायात के नियमों के पालन करते हैं, उसी प्रकार से कलम अथवा की-बोर्ड वाला स्टेयरिंग पकड़ने वाले को तथ्यों को ध्यान में रखना होगा। समाज में शांति सौहार्द की भावना बरकरार रहे। उन्होंने कैमरे की भूमिका का जिक्र किया और कहा कि जैसे जो रिकॉर्ड होता हैं वो दिखता हैं ऐसे ही पत्रकार के लिए भी नियम होते है। नरेश कौशल ने विधानसभा से जुड़े अपने पुराने अनुभव भी साझा किए और इस दौरान पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब भी दिए। उन्होंने कहा कि पुराने समय में पत्रकारिता में बड़े चैलेंज थे। सुविधाओं का अभाव था। अब इंटरनेट और स्मार्ट मोबाइल फोन ने हर चीज आपकी मुट्ठी में ला दी है। बेशक, नई तकनीकी का इस्तेमाल करना चाहिए लेकिन पत्रकारों को सिद्धांत, गरिमा और तथ्यों को कभी नजर-अंदाज नहीं करन चाहिए। अस्सी-नब्बे के दशक की पत्रकारिता के तौर-तरीकों की तुलना उन्होंने आज 4जी और 5जी की चमक-धमक से भी की।

विश्वसनीयता सबसे बड़ा एथिक्स : डॉ़ त्रिखा

प्रशिक्षण कार्यशाला में वरिष्ठ पत्रकार एवं हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के निदेशक डॉ़ चंद्र त्रिखा ने कहा कि मीडिया के बदलते परिवेश में विश्वसनीयता ही सबसे बड़ा एथिक्स है। डिजिटल मीडिया के इस दौर में प्रस्तुति की भाषा, प्रस्तुति का तरीका सब बदल रहा है, लेकिन हमें हमेशा हमारे सिद्धांतों को जरूर ध्यान में रखना है। हमें संतुलन नहीं खोना चाहिए। उन्होंने 1965 में रिपोर्टिंग का सिलसिला शुरू किया था, बातचीत में अपने अनुभवों के साथ साथ विधानसभा सत्र के अनुभवों को भी सांझा किया। डॉ़ त्रिखा ने कहा कि वर्तमान में एआई की भूमिका के बढ़ते दौर में हमें समझना होगा कि किस प्रकार से विश्वसनीयता को बरकरार रखना है। इस दौरान उन्होंने ज्वाइंट पंजाब के साथ-साथ पार्लियामेंट में पंडित जवाहर लाल नेहरू और राममनोहर लोहिया के बीच हुई बहस के किस्से भी बताए। 1965 में पंजाब सीएम प्रताप सिंह कैरो, विपक्ष के नेता चौ़ देवीलाल और उस समय के मंत्री चौ़ लहरी सिंह के बीच का वह किस्सा भी बताया, जिसमें पांच हजार रुपये का कर्जा प्रताप सिंह कैरो ने लहरी सिंह के जरिये चौ़ देवीलाल की आढ़त की दुकान से लिया था।

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