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उमराव जान के किरदार में गहरे उतर गयी थीं रेखा

फिल्मकार मुजफ्फर अली से बातचीत
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बहुमुखी प्रतिभा के धनी फिल्मकार मुजफ्फर अली ने बॉलीवुड में ‘गमन’, ‘उमराव जान’, ‘आगमन’, ‘अंजुमन’ और ‘जांनिसार’ जैसी कई फिल्मों का निर्देशन किया। लेकिन इनमें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि उन्होंने उमराव जान के निर्माण-निर्देशन से पायी। फीमेल स्टार वाली इस फिल्म से अभिनेत्री रेखा ने भी बुलंदियों को छुआ। ‘उमराव जान’ का आगामी जेद्दा के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रदर्शन के लिए चयन हुआ है।

जाने-माने फिल्मकार मुजफ्फर अली नैनीताल में आयोजित नैनीताल लिट्रेचर फेस्टिवल में भाग लेने नैनीताल पहुंचे तो उनसे उनकी क्लासिक फिल्म ‘उमराव जान’ को लेकर एक लंबी गुफ्तगू हुई। बता दें कि ‘उमराव जान’ का जेद्दा के मशहूर अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में अगले माह प्रदर्शन के लिए चयन हुआ है। इस समारोह में स्क्रीनिंग के लिए दुनिया भर की सिर्फ छह क्लासिक फिल्में चुनी गई हैं। पेश हैं मुजफ्फर अली से बातचीत के चुनिंदा अंश :

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उमराव जान से रेखा ने छू लिया आसमान

बातचीत के दौरान फिल्मकार मुजफ्फर अली ने बताया कि उमराव जान के बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। दरअसल वो दौर राजेश खन्ना जैसे सुपरस्टार का दौर था। अमिताभ बच्चन आगे बढ़ चुके थे। मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि मेरी फिल्म में फीमेल स्टार थी। फिल्म बनाने के लिए सबसे बड़ी दिक्कत पैसे की थी। फिर प्रोड्यूसर और डिस्ट्रीब्यूटर ढूंढना था। मैंने तय किया था कि फिल्म लो-बजट में बनाऊंगा। आपको ताज्जुब होगा कि उमराव जान सिर्फ तीस लाख में बनी थी। अगर कोई बड़ा स्टार होता तो इसका बजट बढ़ जाता। ऐसे में उस वक्त भी यह कम से कम तीन करोड़ में बनती। तो मैंने रिस्क लेकर फिल्म बनाई। अपने विश्वसनीय लोगों से पैसा उधार लिया। अगर यह फिल्म नहीं चलती तो मैं सड़क पर आ गया होता।

मुजफ्फर अली ने आगे बताया कि सच तो यह है कि हमारे सामने एक्टरों की कोई वैल्यू नहीं थी। दरअसल मेरे दिमाग में स्टार की नहीं, किरदार की वैल्यू थी। वैसे भी फिल्म किरदार की ही होती है। फिल्म में फारूख शेख और नसीरुद्दीन शाह ने जो काम किया वो कॉमर्शियल फिल्मों की तरह का काम नहीं था। दोनों को किरदार को अपने अंदर से बाहर निकालना था। जब रेखा ने कहानी सुनी तो उसे लगा कि इस फिल्म से तो उसकी दुनिया बदल जाएगी। मैं यही सोच रहा था कि कोई ऐसा टैलेंट मिले जिसे मैं आसमान पर पहुंचा दूं तो रेखा ने मेरे सपने को सच साबित किया। अब इसके लिए उसे कितनी मेहनत करनी पड़ी यह तो वही जानती है। मुझे खुद कितनी मेहनत करनी पड़ी इसे मैं ही जानता हूं।

मुजफ्फर अली के मुताबिक, आपको ताज्जुब होगा कि उमराव जान के लिए रेखा मेरे दिमाग में नहीं थी। उसकी तस्वीर कहीं देखी तो लगा इसे उमराव जान के रूप में ढाला जा सकता है। डबिंग में बहुत मेहनत करनी पड़ी रेखा के साथ। सबसे बड़ी चुनौती थी उन कपड़ों में उमराव जान की बॉडी लैंग्वेज। तो रेखा ने उसे कर दिखाया और फिल्म अमर हो गई। मैं समझता हूं औरतें जमाने को गहराई से देखती-समझती हैं। उनकी संवेदनशीलता पुरुषों से कहीं ज्यादा होती है। इसलिए भी रेखा उस किरदार की गहराई में चली गई। गीतकर शहरयार, संगीतकार खय्याम और गायिका आशा भोंसले के लिए भी यह फिल्म एक नयी यात्रा की तरह थी। तो इसने सबको अमर कर दिया। मुजफ्फर अली ने बताया कि उमराव जान जेद्दा अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रदर्शन के लिए दुनिया की छह सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में चुनी गई है।

गोवा में होगी ‘गमन’ की स्क्रीनिंग

फिल्मकार मुजफ्फर अली ने बताया कि इस माह गोवा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में उनकी फिल्म ‘गमन’ का डिजिटलाइज्ड संस्करण प्रदर्शित किया जा रहा है। इसे नेशनल आर्काइव ऑफ इंडिया ने डिजिटलाइज्ड किया है। इसी तरह ‘आगमन’, ‘अंजुमन’ और ‘जांनिसार’ भी डिजिटलाइज्ड हो चुकी हैं। गमन में पलायन का मुद्दा उठाया गया था।

देशभर के पलायन की कहानी

गमन पूरे देश के पलायन की कहानी है। गांव से एक नौजवान मुंबई महनगर पहुंचता है और फिर उसको क्या-क्या तकलीफें होती हैं यह फिल्म की थीम है।

जूनी की रिलीज

मुजफ्फर अली ने बताया कि उन्होंने अस्सी के दशक में कश्मीर में विनोद खन्ना और डिंपल कपाड़िया को लेकर ‘जूनी’ फिल्म का निर्माण शुरू किया था। आतंकवाद के चलते काम पूरा नहीं हो सका था। पर अब फिल्म तैयार है। अब यह बाप-बेटे की कहानी है। मुख्य कलाकार अब साइड रोल में दिखाई पड़ेंगे। फिल्म का वास्तविक कैरेक्टर कश्मीर है। ‘जूनी’ जल्द दर्शकों के सामने होगी।

‘नैनीताल को सबसे ज्यादा जानता हूं’

फिल्मकार मुजफ्फर अली ने कहा कि नैनीताल को लेकर एक कहानी उनके दिमाग में है। वे इसे लिख चुके हैं। नैनीताल को जितना गहराई से मैंने देखा-समझा है उतना किसी ने नहीं। यहां की पुरानी सभ्यता और एक खास किस्म का आर्किटेक्चर मुझे हमेशा लुभाता रहा। कॉमर्शियल मेकर्स ने नैनीताल को उस नजर से नहीं दिखाया जैसा दिखाया जाना चाहिए। मुझे मौका मिला तो उस कहानी को लेकर मैं नैनीताल में जरूर फिल्म का निर्माण करूंगा। मैं बचपन से नैनीताल आता रहा हूं। यहां हमारा पुश्तैनी घर है। मुजफ्फर अली ने कहा कि नैनीताल लिट्रेचर फेस्टिवल हर साल होना चाहिए। फेस्टिवल में उनकी उमराव जान की री-रिलीज के दौरान प्रकाशित किताब-‘मुजफ्फर्स उमराव जान’ के कुछ हिस्सों का पाठ किया गया और फिर दर्शकों ने उनसे उमराव जान को लेकर कई सवाल भी किए। इस तरह किताब के जरिए फिल्म प्रबुद्धजनों और नई पीढ़ी तक पहुंची। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी मौजूदा सवालों से जूझेगी और नए भारत का निर्माण करेगी।

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