हल्की ठंड के मौसम में रोगों से खुद को रखें सुरक्षित
सुबह-शाम की हल्की सर्दी के इस मौसम में वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस हमारे शरीर में पहुंच कर हमारे इम्यून सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। सर्दी-जुकाम, गले में खराश, डायरिया, डिहाइड्रेशन, वायरल, अस्थमा व फ्लू जैसी संक्रामक बीमारियां...
सुबह-शाम की हल्की सर्दी के इस मौसम में वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस हमारे शरीर में पहुंच कर हमारे इम्यून सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। सर्दी-जुकाम, गले में खराश, डायरिया, डिहाइड्रेशन, वायरल, अस्थमा व फ्लू जैसी संक्रामक बीमारियां खासकर बुजुर्गों व बच्चों को चपेट में ले लेती हैं। क्रॉनिक रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इन बीमारियों से सुरक्षा व उपचार को लेकर दिल्ली स्थित सीनियर फिजीशियन डॉ. जे रावत से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
दस्तक देता सर्दी का मौसम अपने साथ लाता है - सुबह-शाम धीरे-धीरे बढ़ती हल्की ठंड और दिन में ह्यूमिडिटी से भरा वातावरण। हवा शुष्क होती जाती है। जो वातावरण में मौजूद जहरीली गैसों, डस्ट पार्टिकल्स, फूलों के परागकणों, पराली के धुएं के कारण प्रदूषित भी हो जाती है। वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस हमारे शरीर में पहुंच कर हमारे इम्यून सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। सर्दी-जुकाम, गले में खराश, डायरिया, डिहाइड्रेशन, वायरल, फ्लू, निमोनिया जैसी संक्रामक बीमारियां देखने को मिलती हैं। डेंगू, स्वाइन फ्लू, चिकनगुनिया जैसी बीमारियां भी बड़ी तादाद में लोगों को होती हैं। जिनसे अस्थमा जैसी सांस संबंधी बीमारियों, डायबिटीज, हृदय रोग, ऑस्टियोपोरोसिस, थॉयरायड जैसे क्रॉनिक डिजीज के पेशंट को इस दौरान काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
सर्दी-जुकाम या फ्लू
वातावरण में मौजूद वायरस से या फिर संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से किसी व्यक्ति को फ्लू होता है। जैसे राइनोवायरस से वायरल राइनाइटिस इंफेक्शन। आम सर्दी-जुकाम जहां एक सप्ताह में ठीक हो जाता है, वहीं वायरल राइनाइटिस लंबे समय तक रहता है और हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है। अचानक बुखार आना, नाक ब्लॉक होने से सांस लेने में तकलीफ, नाक से पानी बहना, गले में खराश, सिर दर्द आदि हो सकता है। वायरल के लिए पेशंट को पैरासिटामोल, एस्पिरीन जैसी दवाइयां दी जा सकती हैं, लेकिन तकलीफ ज्यादा होने पर डॉक्टरी परामर्श लेना ही बेहतर है। फ्लू या निमोनिया वैक्सीन लगाया जाता है। डॉक्टर हाईजीन का ध्यान रखने, खाना बनाने या खाने से पहले हाथ धोने, प्रोटीन, मिनरल्स से भरपूर डाइट लेने के लिए कहते हैं।
डायरिया
वातावरण में ह्यूमिडिटी होने से इस मौसम में पनपने वाले रोटावायरस और नोरोवायरस खाने-पीने की चीजों को दूषित कर देते हैं। ऐसा भोजन या पानी पीने से पेट में गैस्ट्रोइंटेराइटिस इंफेक्शन यानी डायरिया हो जाता है। मरीज को लूज मोशन या उल्टियां आती हैं, डिहाइड्रेशन हो जाता है। पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द, मरोड़ के साथ दस्त, तेज बुखार जैसी समस्याएं होती हैं। ऐसे में पीड़ित को ओआरएस का घोल या नमक-चीनी की शिकंजी लगातार देते रहें। प्रोबॉयोटिक्स दही लें। उल्टी रोकने के लिए डॉमपेरिडॉन और लूज मोशन रोकने के लिए रेसेसाडोट्रिल दवाई दी जाती है। आधा-एक घंटे के गैप में नारियल पानी, नींबू पानी, दाल का पानी के साथ-साथ खिचड़ी, दलिया जैसा हल्का-फुल्का खाना ले सकते हैं।
श्वास संबंधी बीमारियां
बदलते मौसम में इम्यूनिटी कमजोर पड़ने से अस्थमा या दमा , ब्रोंकाइटिस जैसी श्वास संबंधी क्रॉनिक बीमारियां ज्यादा देखी जाती हैं। कमजोर फेफड़ों पर ज्यादा असर होता है। सांस की नली में सूजन होने से सांस लेने में तकलीफ होती है। इसे क्रॉनिक पल्मोनरी डिजीज कहा जाता है। बार-बार खांसी आना, सांस लेने में तकलीफ होना, दम फूलना, पसीना आना, बेचैनी होना, सिर भारी होना जैसे लक्षण होते हैं।
अस्थमा के अटैक से बचने के लिए धूम्रपान और धुएं से बचें। इन्हेलर हमेशा पास रखें ताकि जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल कर सकें। ब्रोंकोडाइलेटर जैसी दवाएं दी जाती हैं जिन्हें इन्हेल किया जाता है।
हृदय रोग
बदलते मौसम में हार्ट पेशंट को सुबह 4-5 बजे के करीब ज्यादा खतरा रहता है। सुबह के समय टेम्परेचर काफी कम होता है जिसका सबसे ज्यादा असर हृदय की कोरोनरी धमनियों या मांसपेशियों पर पड़ता है। धमनियां सिकुड़ कर ब्लॉक होने लगती हैं जिससे ऑक्सीजन, ब्लड और पोषक तत्वों की सप्लाई में रुकावट आती है। इससे हार्ट पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है जिससे उन्हें चेस्ट पेन और हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ जाता है। एनजाइना कहलाने वाला यह दर्द छाती के अलावा हाथों, कंधों, गर्दन, जबड़ों -कहीं भी हो सकता है। बुजुर्गों को सांस लेने में परेशानी हो सकती है, चक्कर, घबराहट, तेज धड़कन जैसे लक्षण भी हो सकते हैं।
हृदय रोग के खतरे से बचने के लिए जरूरी है, एक्टिव रहें। रोजाना 30 मिनट वॉक करें। योग या हल्का व्यायाम कर सकते हैं। समय-समय पर अपना ब्लड प्रेशर चेक कराएं। सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर 140 मिमी से और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर 90 मिमी से कम होना चाहिए। नियमित मेडिसिन लेते रहें। संतुलित और पौष्टिक भोजन लें। ऑयली भोजन खाने से बचें। कच्चे फल, सब्जियां, अंकुरित अनाज, सूखे मेवे भोजन में शामिल करें।
जोड़ों का दर्द या ऑस्टियो आर्थराइटिस
इस मौसम में अक्सर बाहर वॉक पर जाना कम हो जाता है जिससे हमारे जोड़ स्टिफ हो जाते हैं और उनमें दर्द रहने लगता है। व्यक्ति मूवमेंट नहीं कर पाता। शरीर के जोड़ और मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं और सूज जाती है। जोड़ों का दर्द कम करने के लिए पेनकिलर दी जाती हैं। सिंकाई की जाती है। फिजियोथैरेपी करने की सलाह दी जाती है।
बच्चों व बुजुर्गों पर ज्यादा असर
बदलते मौसम के दौरान किसी भी उम्र के लोग बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं लेकिन नवजात शिशु या बुजुर्ग ज्यादा प्रभावित होते हैं।
नवजात शिशु या बच्चे : बच्चों खासकर नवजात शिशु को विशेष सुरक्षा की जरूरत होती है। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास पूरी तरह नहीं होता जिससे वे सर्दी-जुकाम, बंद नाक, नाक से पानी बहना, चेस्ट इंफेक्शन की चपेट में ज्यादा आते हैं। वे निमोनिया, वायरल बुखार की गिरफ्त में आ जाते हैं। सांस में दिक्कत होने पर वे कभी-कभी दूध पीना बंद कर देते हैं। चेस्ट, नेजल, स्किन जैसी कई तरह की एलर्जी हो जाती है। स्किन पर रैशेज होने लगते हैं। ऐसे में नवजात शिशु का पूरा ध्यान रखना चाहिए। पूरी तरह ढक कर रखना व चेस्ट पर गर्म तेल से मालिश करनी चाहिए, विक्स लगानी चाहिए। ब्रेस्ट फीडिंग नहीं छुड़वानी चाहिए क्योंकि मां का दूध उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचना चाहिए व संक्रमित व्यक्ति से दूरी बना कर रखनी चाहिए।
बड़े-बुजुर्ग : बुजुर्गों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और बदलते मौसम में वे इंफेक्शन की चपेट में आ जाते हैं। जरूरी है कि वे भी न्यूट्रीशन से भरपूर हेल्दी डाइट लें और डिहाइड्रेशन से बचने के लिए रोजाना करीब 8-10 गिलास पानी या सूप जैसे गर्म पेय पिएं। आहार में हर रंग की सब्जियां और फल शामिल करें। नियमित चेकअप कराएं और मेडिसिन लेते रहें। जब भी घर से बाहर जाएं, अपने को पूरी तरह कवर करके जाएं। रोजाना करीब 30 मिनट व्यायाम करें या वॉक करें।

