जागरूक रहकर निमाेनिया रोग से आसानी से बचा जा सकता है, लेकिन इससे हर साल लाखों लोग इसलिए मौत का शिकार होते हैं, क्योंकि वे लापरवाही बरतते हैं। दरअसल वैक्सीन, स्वच्छ पर्यावरण और पौष्टिक खानपान तथा जनजागरूकता की बदौलत निमोनिया से लड़ा जा सकता है। खासकर प्रत्येक बच्चे और बुजुर्ग की सजगता से देखरेख की जाए।
निमोनिया फेफड़ों की एक ऐसी बीमारी है, जिससे विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर साल 6.5 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित होते हैं और 25 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जिनमें लगभग 7 लाख बच्चे होते हैं। भारत में यह स्थिति इसलिए चिंताजनक है, क्योंकि पांच साल से कम उम्र के हजारों बच्चे हर साल इसकी वजह से असमय मौत का शिकार हो जाते हैं। निमोनिया संक्रामक बीमारी है, जो सजगता से रोकी जा सकती है। बावजूद इसके यह दशकों से दुनिया के लिए गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। निमोनिया रोग में फेफड़ों के एल्वियोली यानी वायु कोषों में पस भर जाती है, जिसके कारण शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती। यह संक्रमण बैक्टीरिया, वायरस या फंगस से हो सकता है। सबसे सामान्य कारण स्ट्रैपटोकोकस न्यूमोनिया नामक बैक्टीरिया है। बच्चों में यह रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस (आरएसवी) या इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण भी हो जाता है। कुछ साल पहले कोविड-19 के दौरान निमोनिया, कोविड के संक्रमण ने बेहद घातक रूप ले लिया था। हर साल 50 लाख से अधिक बच्चों की मौत होती है, जिनमें से 15 प्रतिशत बच्चे निमोनिया के कारण मर जाते हैं। निमोनिया से मरने वाले ज्यादातर बच्चे निम्म और मध्यम आय वाले देशों जैसे- भारत, पाकिस्तान, नाइजीरिया और कांगो के होते हैं।
दिवस मनाने का उद्देश्य जनजागरूकता
साल 2009 में विश्व निमोनिया दिवस मनाने की पहल विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसलिए की, क्योंकि यूनिसेफ ने स्पष्ट तौरपर यह साबित किया कि निमोनिया के सबसे ज्यादा शिकार बूढ़े और बच्चे होते हैं। हर साल 12 नवंबर को निमोनिया दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य दुनिया को यह समझाना होता है कि सर्दी, खांसी जैसे इस साधारण रोग पर भी अगर ध्यान न दिया जाए तो यह किस कदर जानलेवा हो सकता है। निमोनिया हमारे देश में दूसरे देशों के मुकाबले चिंता का कारण ज्यादा है, क्योंकि यहां वायु प्रदूषण बेहद ज्यादा है। इसके अलावा कुपोषण तथा धुएं के कारण भी निमोनिया होने की आशंका बढ़ जाती है।
बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल में सजगता
बहरहाल विश्व निमोनिया दिवस हमें यह याद दिलाता है कि जिस रोग से सचेत होकर आसानी से बचा जा सकता है, उससे भी हर साल लाखों लोग इसलिए मौत का शिकार होते हैं, क्योंकि लोग लापरवाही बरतते हैं। बहरहाल वैक्सीन, स्वच्छ पर्यावरण और पौष्टिक खानपान तथा जनजागरूकता की बदौलत निमोनिया से आसानी से लड़ा जा सकता है। लेकिन लोग अपनी रोजमर्रा की लापरवाही के चलते हर साल निमोनिया को जानलेवा बीमारी में बनाये रखते हैं। अगर प्रत्येक बच्चे और बुजुर्ग की सजगता से देखरेख की जाए तो उन्हें निमोनिया से बचाना बहुत आसान है, इसी बात को समझाने के लिए हर साल विश्व निमोनिया दिवस मनाया जाता है। यह अलग बात है कि फिर भी निमोनिया से होने वाली मौतों की संख्या घट नहीं रही।
निमोनिया के प्रारंभिक लक्षण
निमोनिया के लक्षण अकसर सर्दी या बुखार के रूप में हमारे सामने आते हैं। लेकिन अगर ध्यान न दिया गया तो यह धीरे धीरे गंभीर होने लगते हैं। निमोनिया के सामान्य लक्षण हैं- तेज बुखार, साथ में कंपकंपी आती है। लगातार खांसी बनी रहती है। सांस लेने में धीरे धीरे तकलीफ होनी शुरू होती है और फिर तेज तेज सांसें आने लगती हैं। छाती में लगातार दर्द या भारीपन रहना। थकान और कमजोरी। वहीं बच्चों में नाक फड़कना, पसीना आना, दूध या खाना छोड़ देना, निमोनिया के गंभीर होने की निशानी है। बुजुर्गों में यह भ्रम और मानसिक सुस्ती का कारण बनती है। बता दें कि निमोनिया के इन साधारण लक्षणों को हल्के में लेना खतरनाक होता है। क्योंकि ये कुछ ही दिनों में हमारे फेफड़ों की क्षमता को पूरी तरह खत्म कर देते हैं।
बचाव के उपाय
निमोनिया एक गंभीर मगर रोकथाम के योग्य बीमारी है, इससे बचा जा सकता है बशर्ते टीकाकरण कराया जाए, पीसीवी और एचआईवी वैक्सीन बच्चों को निमोनिया से बचाता है। इसी तरह इन्फ्लूएंजा वैक्सीन से बुजुर्गों की सेहत सुरक्षित रहती है। इसलिए उन्हें यह टीका हर साल लगवाना चाहिए। घर में धुआंरहित चूल्हों का इस्तेमाल किया जाए, प्रदूषण से बचा जाए, धूम्रपान से दूरी बनायी जाए और बच्चों को स्वच्छ तथा खुले वातावरण में रखा जाए। पर्याप्त पोषण विशेषकर बच्चों के मामले में जरूरी है। छोटे बच्चों को मांएं स्तनपान जरूर कराएं, वह बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करता है। विटामिन ए, सी और डी की कमी से बचना चाहिए। निमोनिया के शुरुआती लक्षणों पर डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए तथा उचित एंटीबायोटिक या एंटीवायरल इलाज शुरू कर देना चाहिए, जिससे मौत के खतरे से बचा जा सकता है। - इ.रि.सें.

