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ठंड में खानपान के साथ व्यायाम का खास ध्यान

हेमन्त ऋतु में सेहत की देखभाल

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हेमन्त ऋतु में वातावरण रूखा, ठंडा व स्थिर हो जाता है। सुबह भूख खूब लगती है। ऐसे में शरीर को तैलयुक्त और पोषक आहार की आवश्यकता होती है जिससे शरीर को ऊष्मा, ऊर्जा और स्थिरता मिले। गेहूं, चावल से बने पदार्थ, उड़द की दाल, दूध-घी, गन्ना, गुड़ तथा तेल से बने व्यंजन लाभकारी हैं। वहीं नियमित व्यायाम भी जरूरी है। 

हेमन्त ऋतु दक्षिणायन की अंतिम एवं सौम्य अवस्था है, जहां प्रकृति विश्राम की ओर अग्रसर होती है और वातावरण स्थिरता, शांति और शीतलता से भर जाता है। भारतीय संवत्सर में मार्गशीर्ष और पौष मास के बीच मध्य नवम्बर से मध्य जनवरी के बीच इस ऋतु का आगमन होता है। ठंडी हवाएं, धुंधभरी सुबह, लंबे रात्रिकाल और जमी हुई जलराशि इस ऋतु की प्राकृतिक छवि को स्पष्ट करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति स्वयं चादर ओढ़कर मौन ध्यान में बैठ गई हो।

मौसम ठंडा होता है और भूख तेज़

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इस ऋतु में वातावरण शुष्क, ठंडा और स्थिर हो जाता है। सूर्य की किरणें कोमल और मंद होती हैं। रातें लंबी और दिन छोटे होते हैं। हवा की गति धीरे-धीरे तीक्ष्ण और उत्तर दिशा की ओर से आने वाली प्रतीत होती है। रोमकूप संकुचित हो जाते हैं और शरीर की ऊष्मा बाहर नहीं निकल पाती। इसके कारण जठराग्नि तीव्र हो जाती है, जिससे स्वाभाविक रूप से भूख अधिक लगती है। इस ऋतु में पाचन की क्षमता वर्ष के अन्य काल की अपेक्षा अधिक प्रबल होती है, इसलिए शरीर पौष्टिक एवं भारी भोजन को भी सहजता से पचा सकता है। इस समय कफ का संचय प्रारम्भ होता है, किंतु यदि जीवनचर्या संतुलित हो तो यह कफ भविष्य में रोगों का कारण बनने के बजाय शरीर में बल, ओज और स्थिरता उत्पन्न करता है।

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भोजन सिर्फ स्वाद नहीं

सुबह जागने के पश्चात् नित्यकर्म के बाद उत्पन्न होने वाली स्वाभाविक भूख का सम्मान करना चाहिए। यह संकेत है कि शरीर भोजन ग्रहण करने के लिए पूर्ण रूप से तैयार है। इस समय का भोजन स्निग्ध, ऊर्जावान और तृप्तिकारक होना चाहिए। नवीन गेहूं और चावल से बने पदार्थ, उड़द की दाल, गन्ना एवं उससे बने पदार्थ जैसे गुड़, शक्कर तथा तिल, सरसों के तेल से बने व्यंजन इस ऋतु में अत्यंत लाभकारी हैं। दूध, दही, मक्खन, रबड़ी, खीर और मावा जैसे दुग्धोत्पाद शरीर को बल, ऊष्मा एवं पोषण प्रदान करते हैं। पीने हेतु गुनगुना जल श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि यह पाचन को सहयोग देता है और शरीर को शीत प्रभाव से बचाता है। हेमन्त ऋतु का भोजन केवल शरीर को नहीं, बल्कि मन को भी तृप्त करता है। यह वह समय है जब भोजन स्वाद, सुगंध और भावनात्मक संतुष्टि का माध्यम बन जाता है।

कैसे रहें गर्म, सशक्त

इस ऋतु में शरीर को संरक्षण और स्नेह की आवश्यकता होती है। प्रतिदिन प्रातःकाल तिल के तेल से अभ्यंग ;शरीर मालिश करना अत्यंत हितकारी है। अभ्यंग के पश्चात् उबटन लगाने से त्वचा को पोषण, कोमलता और शक्ति प्राप्त होती है। नियमित व्यायाम आवश्यक है क्योंकि इस समय शरीर की सहनशक्ति और बलसंचय क्षमता सर्वोत्तम होती है। स्नान, मुख प्रक्षालन तथा हाथ-पांव धोने के लिए गुनगुने जल का उपयोग करना चाहिए। लेकिन सिर पर कभी भी गर्म जल से स्नान नहीं करें। ऊन, रेशम या मोटे वस्त्र शरीर की ऊष्मा को बनाए रखते हैं और शीतलता से सुरक्षा प्रदान करते हैं। दिन के समय हल्की धूप में बैठना इस ऋतु की श्रेष्ठ औषधि कही गई है।

शरीर कहता है- मुझे पोषण दो

इस ऋतु में जठराग्नि स्वाभाविक रूप से तीव्र हो जाती है, इसलिए सामान्य से अधिक भूख लगना बिल्कुल स्वाभाविक है। यह शरीर का संकेत है कि उसे ऊर्जा, स्निग्धता और पोषण की आवश्यकता है। ऐसे समय भोजन को टालना या लंबे समय तक खाली पेट रहना शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है। यदि पर्याप्त और पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, तो प्रबल अग्नि स्वयं शरीर की धातुओं को खाना प्रारंभ कर देती है। इसके परिणामस्वरूप शरीर में रूखापन बढ़ता है, त्वचा शुष्क होने लगती है और कमजोरी तथा असंतुलन अनुभव होने लगता है। इसलिए हेमन्त ऋतु में शरीर को स्नेहयुक्त, तैलयुक्त और पोषक आहार की आवश्यकता होती है। यह भोजन न केवल भूख को शांत करता है, अपितु शरीर को ऊष्मा,शक्ति और स्थिरता भी प्रदान करता है।

बचाव रखें

इस ऋतु में रूक्ष और हल्के भोजन से बचना चाहिए क्योंकि यह वातदोष को बढ़ाता है। भूख से कम भोजन लेने से शरीर की अग्नि धातुओं को ही जलाना प्रारम्भ कर देती है, जिससे दुर्बलता और रोग बढ़ सकते हैं। ठंडी हवाओं, ठंडे पानी और दिन में सोने की आदत से भी बचना चाहिए।

इस ऋतु का सरल नियम

गरम रहो, पौष्टिक खाओ और संतुलित जियो। जो व्यक्ति इस काल में शरीर की सही देखभाल करता है, वह न केवल वर्षभर आरोग्य बनाए रखता है, बल्कि पोषण के माध्यम से मज़बूत प्रतिरोधक शक्ति भी अर्जित करता है।

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