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दीप पर्व पर उज्ज्वल भावों से भी जगमग हो स्त्रीमन

दीपोत्सव की चमक-दमक में भीतरी जगमग को कायम रखने की सोचें। यह त्योहार सुख-समृद्धि के हर पहलू से जुड़ा है। निरोगी काया से लेकर धन-दौलत और रिश्तों तक, सकारात्मक सोच से अपनी झोली में उजाला भर लेने का उत्सव है।...
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दीपोत्सव की चमक-दमक में भीतरी जगमग को कायम रखने की सोचें। यह त्योहार सुख-समृद्धि के हर पहलू से जुड़ा है। निरोगी काया से लेकर धन-दौलत और रिश्तों तक, सकारात्मक सोच से अपनी झोली में उजाला भर लेने का उत्सव है। जो हर तरह के अंधकार पर विजय का संदेश लिए है। फिर क्यों ना दीयों की चमक के बीच अनुभूतियां भी प्रकाशित हों? निराशा या भविष्य की चिंता से स्त्री मन उलझनों से घिर जाये तो सकारात्मकता व उत्साह की रोशनी से जिंदगी जगमग करें।

दीपावली, घर-आंगन को जगमगाने का ही पर्व नहीं, अपनी जिंदगी में प्रकाश पोसने का भी उत्सव है। लोक में फैले आलोक के बीच थोड़ी सी आभा अपने लिए सहेज लेने का का वक्त है। झिलमिल सजावट और दीयों की जगमगाहट के उजाले में अपनी सज-धज के लिए सजग रहने का समय है। इसीलिए प्रकाश पर्व की जगमग वाली त्योहारी शृंखला की शुरुआत पर मन के माहौल को भी समझो। अपने व्यक्तित्व की आभा को आंकते हुए निखार-संवार की सोचो। भावनाओं की ज्योति से भविष्य की बेहतर संभावनाओं का मार्ग तलाशो। मत भूलो कि उम्र के हर पड़ाव पर मन-जीवन का उजास और उल्लास से भरे रहना जरूरी है।

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भीतर हो जगमग

दीप पर्व की चमक-दमक में भीतरी जगमग को कायम रखने की सोचें। दीपपर्व बाहरी ही नहीं, भीतरी प्रसन्नता को खुलकर जीने की चमक साथ लाता है। अपना आंगन हो या आस-पड़ोस, स्वच्छता और परम्परागत संस्कारों की रोशन रिवायतों के बीच मन के कोने-कोने को उज्ज्वल बनाने की ठानें। मन को संयत रखने से जो आंतरिक चमक आती है, वह त्योहारी मौसम के बाद भी आपको खुशी की दीप्ति से लबरेज रखेगी। सोचिए कि सब कुछ संवारते-सजाते हुए आप ही टूटी बिखरी सी हैं तो आंगन की चमक के मायने? उत्सव के उल्लास का क्या अर्थ? दीपावली का त्योहार तो सुख-समृद्धि के हर पहलू से जुड़ा है। निरोगी काया से लेकर धन-दौलत और रिश्तों के रंग बनाये रखने तक, सकारात्मक सोच से अपनी झोली में उजाला भर लेने का उत्सव है। जो हर तरह के अंधकार पर विजय पाने का संदेश लिए है। फिर क्यों ना दीयों की बाती से बिखरती चमक के बीच अनुभूतियां भी प्रकाशित हों? आज के उलझते-बिखरते जीवन में उत्साह की इस रोशनी से अपनी जिंदगी को भी जगमग करने की राह चुनें। हर तरह की साज सज्जा में अपने प्रति स्वस्ति कामना का भाव भी जरूर हो।

आभार का प्रकाश

कभी-कभी दिल शिकायतों के अंधकार से भर जाता है। चाहे-अनचाहे मन डूबने लगता है। परिवेश में फैली त्योहारी रोनक की उजास में अपने जीवन से जुड़ी छोटी-बड़ी बातों को लेकर निराशा का अंधेरा घेरने लगता है। कभी बीते वक्त से जुड़ा अपराधबोध तो कभी भविष्य की चिंता। स्त्री मन उलझनों के स्याह दायरे में आ ही जाता है। कुछ कमी होने के ख्यालों के बीच हमारा मस्तिष्क जो कुछ है, उसे भी नहीं देख पाता। इस मनःस्थिति में घिरी हैं तो अपने आसपास देखने पर पाएंगी कि कहीं किसी जर्जर घर के द्वार पर दीपक की ज्योत मुस्कुरा रही है। हर दिन अनगिनत उलझनों को जीने वाले लोगों की बस्तियां भी झिलमिल उजास की सजावट लिए हैं। अभावों से जूझ रहे लोगों के आंगन में भी रंगोली उकेरी जा रही हैं। सालभर अपनों से दूर रहने वाले लोग गांव-घर लौट रहे हैं। यह अवलोकन आपके मन में नयी ऊर्जा की ज्योति जलायेगा। आप हर परेशानी को भूल जीवन में मिली ब्लेसिंग्स को देख पाएंगी। दीप्ति बिखेरते दीयों की कतारों के बीच अपने मन को बोझिल होने से बचाने लिए आभार का यह भाव आवश्यक है। प्रकाश पर्व मनाने की सबसे सुंदर और सार्थक रीत यही है कि मन में पॉजिटिविटी की छटा बिखर जाए।

सजधज का ख्याल

मां लक्ष्मी की उपासना का पर्व अपने व्यक्तित्व को सजाने-संवारने से भी जुड़ा है। रूप को आलोकित करने के लिए बाकायदा रूप चौदस का दिन एक के बाद एक मनाये जाने वाली इस त्योहारी कतार का हिस्सा है। आप तो खुद गृहलक्ष्मी हैं। सेहत की संभाल हो या निखार-संवार, खुद की अनदेखी कभी ना करें। सुख-समृद्धि को बटोरते जाने के बजाय उसे जीने का भाव लाएं। आमतौर पर स्त्रियां सब कुछ जुटाती जाती है। सहेजकर रखने का भाव अच्छा है पर जीवन की सहजता में कटौती करना उचित नहीं। खुशी, सुकून और सौभाग्य का प्रकाश हर ओर फैलाने वाले दिवाली पर्व पर धन की देवी लक्ष्मी और ज्ञान की देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है। साथ बुद्धि के देवता गणेश भी पूजे जाते हैं। जिसका अर्थ यह है कि गृहलक्ष्मी के रूप में हर स्त्री दायित्व निर्वहन की भागदौड़ में ही गुम ना रहे बल्कि विवेकशील सोच भी रखे। आपाधापी भरे जीवन को ज्ञान के साथ संभाले। अपनी प्रतिभा से उलझनों को सुलझाए। दीपावली का त्योहार आध्यात्मिक, धार्मिक, परम्परागत और व्यावहारिक जीवन के हर पहलू को जगमग करने का उत्सव है। आपकी समझदारी और सूझबूझ से ही घर का आंगन जगमगाता है। याद रहे कि इसमें स्वयं आपके अस्तित्व और व्यक्तित्व की सुघड़ता और सुंदरता भी शामिल है।

अप्पो दीपो भव का संदेश भी

अमावस्या की रात्रि को दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। अंधेरी रात को प्रकाश पूरित करने की परम्परा ही बहुत कुछ कहती है। दीपक भी संदेश है कि -अप्पो दीपो भव, स्वयं दीप बनो। वहीं दीपावली शब्द का अर्थ ही है ‘प्रकाश की पंक्ति’ ऐसे में हर स्त्री को समझना होगा कि अपने भीतर प्रकाश पोसने के प्रयास खुद को ही करने हैं। साथ ही एक महिला के सकारात्मक मनोभावों की उजास किसी न किसी रूप में दूसरी स्त्री तक भी पहुंचती है। सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में यों स्त्रियों के उल्लासित चेहरों की पंक्ति बनते जाने से सुखद क्या हो सकता है? सही मायनों में यही तो अंधकार पर प्रकाश, नाउम्मीदी पर उम्मीद और अज्ञान पर ज्ञान की विजय है।

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