Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

जीवन रक्षक पहल

यूपी में हेलमेट नहीं तो पेट्रोल नहीं मुहिम
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

कैसी विडंबना है कि जो हेलमेट दुर्घटना में हमारे जीवन की रक्षा करता है, उसे पहनाने के लिये सरकार को सख्ती करनी पड़ रही है। जब तमाम दिशा-निर्देशों की अवहेलना तथा जुर्माने की अनदेखी करके लोग बिना हेलमेट का सफर करने की जिद दिखाते हैं तो निश्चय ही सरकारों को सख्ती करनी पड़ती है। ये आने वाला वक्त ही बताएगा कि उत्तर प्रदेश सरकार की ‘हेलमेट नहीं तो पेट्रोल नहीं’ मुहिम कितनी प्रभावी साबित होती है। हम यह जानते हैं कि दोपहिया वाहन पर चलना जितना सुविधाजनक है, उतना ही दुर्घटना की दृष्टि से बेहद संवेदनशील भी। कोई गिरता है तो चोट लगना निश्चित है। खतरा ये होता है कि हमारे गिरने पर पीछे से आ रहा तेज वाहन चाहकर भी गिरने वाले को बचा नहीं पाता। देश में हर साल लाखों दोपहिया वाहन चालक दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं, कुछ दुर्भाग्यशाली बच नहीं पाते। लेकिन यदि हेलमेट लगा हो तो जीवित बचने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। इस हकीकत को जानते हुए भी कि देश में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में तीस फीसदी शिकार दोपहिया वाहन चालक ही होते हैं, इस दिशा में लोग गंभीरता नहीं दिखाते। विडंबना यह भी है कि बहुत से लोग हेलमेट लगाते भी हैं तो सस्ते, और उसे भी टशन में लगाने से बचते हैं। विश्वास किया जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश सरकार की जीवन रक्षा की यह मुहिम रंग लाएगी। उम्मीद करें कि एक सितंबर से शुरू होने वाले इस अभियान को दोपहिया वाहन चालकों का सकारात्मक प्रतिसाद मिलेगा।

निस्संदेह, दोपहिया वाहन चालकों की सड़क दुर्घटना में होने वाली मौत की वजह हेलमेट न लगाना या फिर अच्छी गुणवत्ता का हेलमेट ठीक से न पहनना होता है। कई लोग चालान से बचने के लिये औपचारिकता के लिए सस्ता हेलमेट पहन लेते हैं, जो पहनने के बावजूद बचाव नहीं कर पाता। या फिर गिरने की स्थिति में खुलकर अन्यत्र गिर जाता है। सवाल उठता है कि यातायात नियमों के अनुसार अनिवार्य होने के बावजूद लोग हेलमेट को गंभीरता से क्यों नहीं लेते? ऐसी लापरवाही जिसकी कीमत उन्हें जान देकर चुकानी पड़ सकती है। कुछ लोग जीवनपर्यंत विकलांगता के शिकार भी हो जाते हैं। फिर भी ऐसी लापरवाही समझ से परे है। एक हकीकत यह भी है कि यातायात पुलिस भी शुरू से ही ऐसी सख्ती नहीं दिखाती कि कोई बिना हेलमेट के वाहन न चला सके। एक संकट यह भी है कि पिछली सीट पर बैठी महिलाएं हेलमेट नहीं पहनती हैं। जबकि हादसे होने की स्थिति में वे भी शिकार बनती हैं। कुछ को अपने बालों के खराब होने की चिंता होती है। क्या जीवन से बड़ी कोई चीज हो सकती है? लेकिन विडंबना यह कि तमाम प्रयासों के बावजूद हम हेलमेट पहनने को लेकर जिम्मेदारी का भाव जगाने में कामयाब नहीं हो पाते। एक आंकड़े के अनुसार, बीते साल तीस हजार लोगों की मौत हेलमेट न पहनने के कारण हुई। फिर भी हम हकीकत को नजरअंदाज करते हैं। उम्मीद है उत्तर प्रदेश सरकार की मुहिम रंग लाएगी।

Advertisement

Advertisement
×