Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

चांद जाने कहां खो गया...

संगीतकार चित्रगुप्त

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

संगीतकार चित्रगुप्त के संगीत में सौंदर्य भी है और माटी का अहसास भी। अपने साजों से उन्होंने लोकरंग में डूबी धुनें तैयार कीं। पश्चिमी संगीत की आती लहरों के बीच उनके साज भारतीय लोक जीवन के अनुरूप मधुर संगीत का अहसास कराते रहे। पचास और साठ के दशक में अपनी-अपनी शैलियों में विलक्षण संगीतकारों के बीच वह ऐसी धुनें फिल्म जगत को देते रहे कि आज सात-आठ दशक बाद भी लोग ‘चल उड़ जा रे पंछी’ गीत उसी अहसास के साथ सुनते हैं। और यह चित्रगुप्त का ही कौशल था कि उसी दौर का एक चुलबुला-सा गीत मचलता हुआ आज के युवाओं के पास आता है, और देखते ही देखते रील बनने लगती हैं – ‘तड़पाओगे तड़पा लो हम मचल-मचल कर...’। आज कोई इस गीत पर अपनी छटा दिखा रहा है। शायद कितने ही लोग जान पाते होंगे कि यह गीत फिल्म अभिनेत्री नंदा पर फिल्माया गया। राजेंद्र कृष्ण ने इसे लिखा था। और कितने ही लोग जानते होंगे कि इस गीत की मधुर धुन चित्रगुप्त ने तैयार की थी।

सुशिक्षित संगीतकार

Advertisement

प्रसिद्ध संगीतकार आनंद-मिलिंद चित्रगुप्त के बेटे हैं। विजेता और सुलक्षणा पंडित उनकी बेटियां हैं। चित्रगुप्त ने अर्थशास्त्र व पत्रकारिता में एम.ए. किया। वह पटना में लेक्चरर भी बने। लेकिन उनका असली मन संगीत में ही रमा था। बिहार के गोपालगंज ज़िले के गांव सावरेजी में अपने ननिहाल में चित्रगुप्त का बचपन बीता। वहीं पंडित शिवप्रसाद से संगीत की शिक्षा ली। वह भातखंडे संगीत विद्यालय से संगीत के नोट्स मंगाकर रियाज़ करते थे। 1946 में वह बंबई आ गए थे।

Advertisement

‘भाभी’ फिल्म से मिला बड़ा अवसर

मुंबई आने पर किसी ने उनकी मुलाकात प्रसिद्ध संगीतकार एस.एन. त्रिपाठी से कराई जिनके संगीत सहायक के तौर पर उन्होंने फिल्म संगीत की कई बारीकियों को जाना-समझा। उन्हें कुछ शुरुआती फिल्में भी मिलीं। लेकिन खास लोकप्रियता नहीं मिली। फिर कुछ साल के संघर्ष के बाद 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘सिंदबाद द सेलर’ उनके सिने कैरियर की पहली हिट फिल्म थी। इसी समय दक्षिण के एक चर्चित बड़े बैनर ने एस.डी. बर्मन से संगीत के लिए संपर्क साधा था। लेकिन उन्होंने चित्रगुप्त का नाम सुझाया। मशहूर बैनर एवीएम में ‘शिवभक्त’ में उन्हें संगीत देने का अवसर मिल गया। लेकिन इससे बड़ा अवसर ‘भाभी’ फिल्म में मिला। इस फिल्म के तराने लोगों को भा गए। ‘चल उड़ जा रे पंछी’ गीत की कालजयी धुन बनी। ‘काले-काले बदरा’ और ‘उड़ी-उड़ी रे पतंग’ जैसे मनभावन गीत लोक जीवन में छाए।

‘भाभी’ फिल्म से मिली लोकप्रियता

चित्रगुप्त को ‘भाभी’ फिल्म से लोकप्रियता मिली। भारतीय फिल्म संगीत में तब शंकर-जयकिशन, एस.डी. बर्मन, नौशाद, मदन मोहन, कल्याणजी-आनंदजी, रोशन, खैय्याम जैसे दिग्गज छाए थे। चित्रगुप्त ने जिन फिल्मों में संगीत दिया, वह यादगार बना। ‘बरखा’, ‘भाभी’, ‘काली टोपी लाल रुमाल’, ‘नागपंचमी’, ‘पतंग’, ‘ओपेरा हाउस’, ‘आंख मिचौली’ जैसी कई फिल्मों का यादगार संगीत उनके साजों से खिला है। चित्रगुप्त वे बिहार के लोक गीत सुने जिनका असर उनके संगीत पर आया। उनकी धुनों में सरलता और माधुर्य रहा है। ‘... उड़ी रे पतंग’, ‘लागी छूटे ना सनम’, ‘तड़पाओगे तड़पा लो’ जैसे गीतों में इसका अहसास होता है। लेकिन संजीदा धुनों की बात हो तो ‘तेरी दुनिया से होके मजबूर चला’, ‘दिल जला के गया’, ‘चल उड़ जा रे पंछी’ जैसे गीत यादगार हैं। वहीं ‘एक रात में दो-दो चांद खिले’, ‘देखो मौसम क्या बहार है’ जैसे गीत लुभावने हैं।

भक्ति गीतों के साथ भोजपुरी गीत भी

चित्रगुप्त ने जहां एक ओर कई भक्ति गीतों की रसधारा बहाई, वहीं भोजपुरी गीत जगत को अपने संगीत से समृद्ध किया। ‘मुझे अपनी शरण में ले लो राम’, ‘अंबे तू है जगदंबे’, ‘तुम्हीं हो माता-पिता तुम्हीं’ जैसे भजन उनके संगीत में ही जन-जन तक पहुंचे। कवि प्रदीप के भजन ‘कभी धूप तो कभी छांव’ का संगीत भी चित्रगुप्त ने दिया। हिंदी फिल्मों में आनंद बख्शी, राजेंद्र कृष्ण, मजरूह, शैलेन्द्र, अनजान के गीतों के साथ उनका सामंजस्य रहा। लेकिन भोजपुरी फिल्मों में चित्रगुप्त व शैलेन्द्र का सामंजस्य अद्भुत है।

मेलोडी और शब्दों को दिया महत्व

चित्रगुप्त ने मेलोडी और शब्दों को सबसे ज़्यादा महत्व दिया है। हारमोनियम, सितार, बांसुरी, वायलिन संग ढोलक उनके संगीत में खूबी से बजी। बाबू छेल छबीला, चांद जाने कहां खो गया, काली टोपी वाले जैसे गीतों में पश्चिम सगीत का प्रभाव नजर आया। लेकिन मूलत: उनका संगीत लोक धुन के प्रभाव में ही रहा। पचास और साठ के दशक में अनमोल फिल्मी गीत-संगीत देने वाले चित्रगुप्त को उनके स्तर का सम्मान नहीं मिल पाया। ‘चल उड़ जा रे पंछी’ की धुन रचने वाला यह संगीतकार तो चुपचाप उड़ गया, लेकिन उसका गीत-संगीत यहीं रह गया।

Advertisement
×