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महज एक पड़ाव है हाइब्रिड वर्क कल्चर

ऑफिस कार्य-संस्कृति

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दफ्तरों में वर्क कल्चर हमेशा समाज, टेक्नोलॉजी और अर्थव्यवस्था के हिसाब से बनती, बिगड़ती या बदलती रहती है। विशेषज्ञों के मुताबिक हाईब्रिड कार्य-संस्कृति भी ऑफिस वर्क कल्चर का अंतिम मंजिल नहीं। अब महज 2030 तक जिस नई वर्क कल्चर आएगी वह है- फुली वर्चुअल वर्क कल्चर या मेटावर्स वर्कस्पेस।

कार्य-संस्कृति या वर्क कल्चर की अवधारणा जिस 18वीं 19वीं सदी की औद्योगिक क्रांति से जन्मी है, क्या अब वह अपने विकास का सफर पूरा कर चुकी है? इन दिनों दुनिया के औद्योगिक और कारोबारी शहरों में जिस हाईब्रिड वर्क कल्चर ने डेरा जमाया हुआ है, क्या वह कुछ-कुछ दशकों बाद बार-बार बदलने वाली वर्क कल्चर का आखिरी पड़ाव है? सवाल है कि क्या हाईब्रिड वर्क कल्चर वास्तव में कामकाजी मनुष्य की अल्टीमेट कार्य-संस्कृति है या फिर जैसे औद्योगिक क्रांति के बाद 20वीं सदी में टेलीफोन-टाइपराइटर वर्क कल्चर ने फैक्टरी वर्क कल्चर को गायब होने के लिए मजबूर कर दिया था। फिर टेलीफोन टाइपराइटर कार्य-संस्कृति को कंप्यूटर ऑफिस वर्क की संस्कृति खा गई थी। वह बाद में इंटरनेट और आईटी बूम के बाद गायब हुई और रिमोट वर्क कल्चर ने जन्म लिया। उसके बाद आयी कोविड महामारी में वर्क फ्रॉम होम की परिणति हाईब्रिड वर्क कल्चर में हुई। तो क्या कार्य-संस्कृति का यह लंबा सफर अब खत्म हो चुका है या इसके बाद भी हमें अभी कई कार्य-संस्कृतियां देखने को मिलेंगी?

काम का लचीला और उत्पादक तरीका

अगर विशेषज्ञों की मानें तो यह हाइब्रिड वर्क कल्चर यानी आंशिक रूप से ऑफिस और आंशिक रूप से घर से रिमोट तरीके से किया जाने वाला ऑफिस का काम अंतिम दफ्तरी कार्य-संस्कृति नहीं है। हालांकि फिलहाल इसे भविष्य की वर्क कल्चर के रूप में पेश किया हुआ है। इस संतुलन में बहुत कुछ ऐसा है जैसा अभी तक की कार्य-संस्कृतियों में नहीं था। मसलन यह लचीली कार्य-संस्कृति है। कर्मचारियों को कहीं से भी काम करने की आजादी होती है। साथ ही जरूरी सहयोग यानी कोलेबरेशन मीटिंग्स के लिए ये सब लोग दफ्तरों में भी हाजिर हैं। उत्पादकता के लिहाज से सबसे शानदार कार्य-संस्कृति है। क्योंकि घर से कर्मचारी दफ्तर के मुकाबले ज्यादा काम करते हैं।

ज्यादा प्रोडक्टिविटी और कम खर्च

हाईब्रिड कार्य-संस्कृति जहां कर्मचारियों को दफ्तर आने-जाने की आजादी देती है, वहीं एम्प्लॉयर को ज्यादा प्रोडक्टिविटी और कम खर्च की सुविधा मुहैया करवाती है। दफ्तरों को चलाने में बिल्कुल मामूली खर्च होता है और नियमित ऑफिस आने के मुकाबले इस तरीके में 15 से 20 फीसदी ज्यादा काम किया मिलता है, जिससे कंपनी की आय भी बढ़ती है। एंप्लॉयर इस तरीके से देश और दुनिया के किसी भी कोने में बैठे कर्मचारियों को अपने यहां रख सकते हैं। हाईब्रिड वर्क कल्चर वर्क-लाइफ बैलेंस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे कर्मचारियों का निजी जीवन भी बेहतर होता है।

दूर नहीं नई वर्क कल्चर का आगमन

विशेषज्ञों के मुताबिक, इतनी सारी सुविधाओं या फायदों के भी यह दुनिया की आखिरी वर्क कल्चर नहीं है। वे मानते हैं कि बहुत ही जल्द एक नई वर्क कल्चर से दुनिया रूबरू होने जा रही है। दरअसल वर्क कल्चर हमेशा समाज, टेक्नोलॉजी और अर्थव्यवस्था के हिसाब से बनती, बिगड़ती या बदलती रहती है। विशेषज्ञों के मुताबिक बहुत जल्द महज 2030 तक जिस नई वर्क कल्चर से दुनिया का सामना होने जा रहा है, वह है- फुली वर्चुअल वर्क कल्चर या मेटावर्स वर्कस्पेस। जी हां, थ्रीडी वर्चुअल रिएलिटी के जरिये लोग कहीं बिना यात्रा किये भी भविष्य के कामकाजी जीवन में इस तरह एक-दूसरे से मिलेंगे जैसे वे आमने-सामने बैठे हों। वर्क टास्क इंसानों की बजाय एआई पूरा करेगा और इंसान उसका सुपर विजन करेगा। बहस जारी है कि भविष्य का कार्य सप्ताह चार दिनों का हो या पांच दिनों का। इस तरह भविष्य में कामकाजी घंटे कम हो सकते हैं।

अब दिमागी कमांड से होगा काम!

इसलिए हाईब्रिड वर्क कल्चर को भी ट्राजिशनल स्टेज समझना चाहिए। भविष्य में तकनीकी, प्रगति, सामाजिक जरूरतें और तब के आर्थिक दबाव, नई नई तरह की कार्य-संस्कृतियों को जन्म देंगी। लेकिन फिलहाल किसी भी तरह की कार्य-संस्कृति भौतिक कार्य-संस्कृति ही है, जिसमें इंसान की मौजूदगी होती है और काम किये जाने से सम्पन्न होता है। लेकिन भविष्य में कल्पना की जा रही है कि बहुत से काम सिर्फ सोच लेने से या दिमागी कमांड दे देने से ही पूरे हो जाएंगे, जो जाहिर है आज के किसी भी वर्क कल्चर मॉडल से सूट नहीं करता। इसलिए भविष्य की कार्य-संस्कृति जल्द ही सामने आयेगी और वह इस हाईब्रिड वर्क कल्चर से भी इतनी ज्यादा भिन्न होगी कि हाईब्रिड वर्क कल्चर भी उसे अजनबियों की तरह देखती रह जायेगी। -इ.रि.सें.

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