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नौनिहालों को दें सेहत से भरपूर खाने का उपहार

जंक फूड की चुनौती
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जंक फूड का भोजन हमारे नौनिहालों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा है। उनका झुकाव ‘रियल फूड’ की जगह फास्ट फूड की तरफ बढ़ रहा है। रीयल फ़ूड में सब्ज़ियां, फल, अनाज, दालें, मेवे, बीज, और डेयरी उत्पाद शामिल हैं। ऐसा आहार उनकी पढ़ाई में एकाग्रता, स्मरणशक्ति से जुड़ा होता है। ऐसे में उनके खानपान में पौष्टिक विकल्पों को आकर्षक बनाया जाए। घर पर कुकिंग गतिविधियों से बच्चों को जोड़ें।

प्रिया के घर गई उसकी दोस्त पूर्वी को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उसका बेटा रोहन हरी सब्जियां बड़े चाव से खाता है। जबकि उसकी बेटी रिया को हर दिन कोई न कोई फास्ट फूड चाहिए होता है। यह समस्या देखा जाए तो आज प्रायः हर मां की हो चुकी है। क्योंकि आज की तेज़ रफ़्तार जीवनशैली में जहां सुविधा, स्वाद और चीजों की तात्कालिक उपलब्धता हमारे खान-पान के निर्णयों को तय करती है, वहां स्वस्थ और टिकाऊ भोजन की आदतें अपनाना किसी चुनौती से कम नहीं। लेकिन ये आदतें बच्चों को तेजी से अपनी गिरफ्त में ले रही हैं। टीवी पर लगातार आते फास्ट फूड के विज्ञापन और दोस्तों से होने वाली बातचीत से भी उनके खाने-पीने की आदतें प्रभावित होती हैं।

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याद रखें कि कोई भी बच्चा जंक फूड के प्रति लालसा और हेल्दी फूड के लिए नफरत लेकर पैदा नहीं होता। इस चुनौती को पार करना ही आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य की गारंटी बन सकता है। क्योंकि अस्वास्थ्यकर भोजन हमारे नौनिहालों को तेजी से प्रभावित कर रहा है। उनके स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा है। क्योंकि आज की पीढ़ी का झुकाव ‘रियल फूड’ की जगह फास्ट फूड की तरफ बढ़ रहा है।

रीयल फ़ूड क्या है और क्यों ज़रूरी है?

रीयल फ़ूड या वास्तविक भोजन का अर्थ ऐसे खाद्य पदार्थों से है जो अपने प्राकृतिक रूप के अधिकतम निकट हों। ये न तो अत्यधिक पैक्ड होते हैं, न ही इनमें प्रिजर्वेटिव, रंग या स्वाद मिलाए जाते हैं। इसमें प्रमुख रूप से ताज़ी सब्ज़ियां, फल, अनाज, दालें, मेवे, बीज, और डेयरी उत्पाद शामिल होते हैं। इस तरह का भोजन न केवल शरीर को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है, बल्कि मानसिक एकाग्रता, ऊर्जा स्तर और रोग-प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। बच्चों के लिए यह और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि संतुलित व स्वच्छ आहार सीधे तौर पर उनकी पढ़ाई में एकाग्रता, स्मरणशक्ति और समग्र प्रदर्शन से जुड़ा होता है और उन्हें एक बेहतर जिंदगी जीने में मदद करता है।

औद्योगिक भोजन प्रणाली और उसका असर

बीते कुछ दशकों में हमारे भोजन की आदतें बाज़ार-प्रधान होती चली गई हैं। जिसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ा है। रेडी टू इट पैकेट, फ्रोजन फ़ूड, इंस्टेंट नूडल्स, और कोल्ड ड्रिंक्स जैसी चीज़ें हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी हैं। सुविधा के नाम पर हमने धीरे-धीरे अपने पारंपरिक, पौष्टिक और मौसमी भोजन को पीछे छोड़ दिया। जबकि यह स्वस्थ आहार आपके बच्चे के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है, जिससे अवसाद, चिंता, बाइपोलर डिसऑर्डर, सिज़ोफ्रेनिया और एडीएचडी जैसी स्थितियों को रोकने में मदद मिलती है। इन औद्योगिक खाद्य प्रणालियों का असर केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि पर्यावरण पर भी गंभीर रूप से पड़ता है। इसलिए जितनी जल्दी आप खान-पान की इन आदतों से अपने बच्चों को दूर करेंगी उतना ही अच्छा होगा… उतनी ही आसानी से वे भोजन के साथ एक स्वस्थ रिश्ता बना पाएंगे जो जीवन भर उनके साथ रहेगा। यह आपकी कल्पना से कहीं ज़्यादा आसान और जल्दी हो सकता है।

स्वस्थ खान-पान की आदतों को देते रहें प्रोत्साहन

चाहे बच्चे छोटे हों या किशोरावस्था में, बच्चों में उन खाद्य पदार्थों के प्रति स्वाभाविक रुचि विकसित हो जाती है जिनका वे सबसे अधिक आनंद लेते हैं। स्वस्थ खान-पान की आदतों को प्रोत्साहित करने के लिए, चुनौती यह है कि पौष्टिक विकल्पों को आकर्षक बनाया जाए। विशिष्ट खाद्य पदार्थों के बजाय समग्र आहार पर ध्यान केंद्रित करें। बच्चों को ज़्यादा संपूर्ण, कम से कम प्रसंस्कृत भोजन दें। यानी ऐसा भोजन जो यथासंभव अपने प्राकृतिक रूप के करीब हो। बचपन में नकल करने की प्रवृत्ति बहुत प्रबल होती है, इसलिए अपने बच्चे को आलू के चिप्स खाते समय सब्ज़ियां खाने के लिए न कहें। बल्कि, अपने बच्चे को दिखाएं कि आप तरह-तरह की सब्ज़ियां और विविध व्यंजन पसंद करते हैं, साथ ही स्क्रीन का समय भी कम रखते हैं और शारीरिक गतिविधियों में भाग लेते हैं।

कड़वी सब्ज़ियों जैसे स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों के स्वाद को छिपाएं। उनकी रुचि बढ़ाने के लिए सब्ज़ियों को किसी चटनी या चीज़ सॉस जैसे डिप्स के साथ परोसें। अपनी पसंदीदा सॉस या स्टू में ब्लेंड की हुई सब्ज़ियां मिलाएं। या फिर स्मूदी में पालक या एवोकाडो डालकर देखें।

घर पर ज़्यादा खाना पकाएं

रेस्टोरेंट और टेकअवे के खाने में ज़्यादा चीनी और अस्वास्थ्यकर वसा होती है, इसलिए घर पर खाना पकाने से आपके बच्चों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है। अगर आप ज़्यादा मात्रा में खाना बनाते हैं, तो बस कुछ बार खाना बनाना आपके परिवार के पूरे हफ़्ते के खाने के लिए काफ़ी हो सकता है। बच्चों को किराने का सामान खरीदने और खाना बनाने में शामिल करें। आप उन्हें अलग-अलग खाने-पीने की चीज़ों के बारे में और खाने के लेबल पढ़ना सिखा सकते हैं। स्वास्थ्यवर्धक नाश्ता उपलब्ध कराएं। पर्याप्त मात्रा में फल, सब्ज़ियां और स्वास्थ्यवर्धक पेय पदार्थ (पानी, दूध, शुद्ध फलों का रस) उपलब्ध कराएं ताकि बच्चे सोडा, चिप्स और कुकीज़ जैसे अस्वास्थ्यकर नाश्ते से बचें।

चीनी और परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट करें सीमित

सरल या परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट शर्करा और परिष्कृत अनाज होते हैं जिनमें से चोकर, रेशा और पोषक तत्व पूरी तरह से हटा दिए जाते हैं, जैसे सफेद ब्रेड, पिज्जा आटा, पास्ता, पेस्ट्री, मैदा, सफेद चावल और कई नाश्ते के अनाज। ये रक्त शर्करा में खतरनाक वृद्धि और मनोदशा व ऊर्जा में उतार-चढ़ाव का कारण बन सकते हैं। दूसरी ओर, जटिल कार्बोहाइड्रेट आमतौर पर पोषक तत्वों और फाइबर से भरपूर होते हैं और धीरे-धीरे पचते हैं, जिससे लंबे समय तक ऊर्जा मिलती रहती है। इनमें साबुत गेहूं या मल्टीग्रेन ब्रेड, उच्च फाइबर वाले अनाज, ब्राउन राइस, बीन्स, मेवे, फल और बिना स्टार्च वाली सब्ज़ियां शामिल हैं। एक बच्चे के शरीर को उसकी ज़रूरत की सारी चीनी भोजन में प्राकृतिक रूप से मौजूद चीनी से मिल जाती है। इसलिए अतिरिक्त चीनी का मतलब है अतिरिक्त कैलोरी! जो किशोरों में मोटापे, टाइप 2 मधुमेह और यहां तक कि आत्मघाती व्यवहार के जोखिम को भी बढ़ा सकती है।

बच्चे हमारे भविष्य हैं। उनके कंधों पर ही आने वाला कल निर्भर करता है इसलिए अभी से ही उनमें स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लानी चाहिए। उन्हें यह पता होना चाहिए कि क्या उनके व पर्यावरण के लिए सही है और क्या गलत। आज के समय में फास्ट फूड से बिल्कुल दूर रहना असंभव है लेकिन आप उन्हें उनके फायदे और नुकसान बताकर कम मात्रा में और कभी कभार दे सकती हैं। उनमें भोजन की स्वस्थ आदतों को विकसित करने की कोशिश करते रहें।

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