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सुहाने सफर में हादसों का खौफ

स्लीपर बसों में अग्निकांड

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शुरुआत में आरामदेह सफर की पर्याय बनी स्लीपर बसों में जानलेवा हादसों की संख्या लगातार बढ़ रही है। लाखों की तादाद में देश में सड़कों पर दौड़ रही इन बसों पर प्रतिबंध लगाने की मांग के बावजूद इनका परिचालन जारी है। इसकी प्रमुख वजह है वैकल्पिक परिवहन संसाधनों की कमी। इन बसों के लिए मौजूद एआईएस मानकों को लागू किया जा सके, तो हादसे काफी कम हो सकते हैं। 

महज एक पखवाड़े के भीतर दूसरी बार एक स्लीपर बस 20 से ज्यादा लोगों की धू-धू करके सामूहिक चिता बन गई और यह कोई पहली बार दिखा डरावना मंजर नहीं है। साल-दर-साल स्लीपर बसें इसी तरीके से खौफनाक दृश्य दिखा रही हैं। कई देशों द्वारा स्लीपर बसों पर बैन लगा दिये जाने के बावजूद भारत में हर दिन चेन्नई से लेकर शिमला तक 2 लाख से ज्यादा बसें दौड़ती हैं और इनमें 80 फीसदी बसें रात में अपना ज्यादातर सफर पूरा करती है, जो अब धीरे-धीरे सड़कों पर गंभीर व जानलेवा हादसों की शिकार हो रही हैं। इन बसों की शुरुआत लंबी दूरी के सफर को आरामदायक बनाने के लिए हुई थी। पहले 1930 के दशक में ब्रिटेन और जर्मनी में बसों में चारपाई में लेटने वाली सुविधा यात्रियों को दी गई। अगले 20 सालों में यूरोप और अमेरिका में स्लीपर बसें यातायात का स्टेट्स सिंबल बन गईं।

सुविधा के सफर में जानलेवा जोखिम

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हमारे यहां स्लीपर बसों का सिलसिला 1990 के दशक में महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात में शुरू हुआ। बॉम्बे टू गोवा और बॉम्बे टू पुणे स्लीपर बसें चलने लगीं। फिर 2000 के दशक में दक्षिण भारत में स्लीपर बसों का सिलसिला बढ़ने लगा। शुरुआत में ये सुविधा काफी सस्ती थी और भरपूर आराम भी दे रही थी। अब आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और गुजरात आदि की सड़कों की ये शानदार सवारियां बन गई हैं। लेकिन वक्त के साथ स्लीपर बसों के व्यवसाय में भारी कंपटीशन उभरकर सामने आया, तो इनमें निरंतर हादसों की संख्या भी बढ़ने लगी। साल 2018 से 2024 के बीच ऐसा कोई साल नहीं गुजरा, जब करीब 4 दर्जन हादसें न हुए हों और इन हादसों में औसतन डेढ़ सौ से दो सौ लोग मौत के मुंह में न समाएं हों। एक तरह से देखें तो भारत में स्लीपर बसें यातायात की नजर से खतरनाक हैं।

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हादसे बने विदेशों में बैन की वजह

हवाई जहाजों और लंबी दूरी की रेलगाड़ियों के मुकाबले इन बसों में कहीं ज्यादा हादसे होते हैं या हादसे ज्यादा न होते हों तो भी मरने वाले लोगों की संख्या ज्यादा रहती है। अगर साल 2018 से ही देखा जाए तो 2018 में 118, 2019 में 145, 2020 में 97, 2021 में 162, 2022 में 208, 2023 में 241 और जनवरी से सितंबर 2024 के बीच भी 189 लोग इन हादसों में मारे गये थे और इस साल अभी तक करीब 81 लोग इन हादसों में जान गंवा चुके हैं। मौजूदा पखवाड़े के दौरान राजस्थान और हैदराबाद के इन दो हादसों में ही 41 लोगों की जान चली गई है। अगर 2018 से अभी तक इन हादसों में गंभीर घायल लोगों पर नजर डालें, तो वे करीब 1800 हैं। इससे साफ है कि भारत में भी स्लीपर बसों का सफर बेहद खतरनाक है। हाल के सालों में दुनिया के 18 देशों में स्लीपर बसों पर प्रतिबंध लगा है, उसी तरह भारत में भी बैन की मांग हो रही है।

यातायात का दबाव

14 देश जिनमें चीन, थाइलैंड, वियतनाम, मलेशिया, नेपाल, लाओस, अर्जेंटीना, ब्राजील, पेरू और केन्या शामिल हैं, में ये स्लीपर बसें लगभग पूरी तरह से बैन हो चुकी हैं। अपवाद के तौरपर अगर कुछ बसें चलती हैं, तो उनके लिए नियम-कानून बेहद सख्त हैं। अमेरिका, जर्मनी और इंग्लैंड में भी इन पर लगभग प्रतिबंध है। लेकिन भारत में साल 2013 से ही इन पर प्रतिबंध की मांग के बावजूद यह संभव नहीं हो रहा, तो शायद इसलिए कि भारत में यातायात का दबाव बहुत ज्यादा है और रेल तथा हवाई जहाज में सीटों की उपलब्धता मांग को देखते हुए काफी

कम है।

स्लीपर बस ऑपरेटरों की भूमिका

गौरतलब है कि भारत में हर दिन सड़कों पर 30 लाख से ज्यादा बसें दौड़ती हैं और इनमें करीब 2 लाख स्लीपर बसें होती हैं। पहली बार देश में स्लीपर बसों पर प्रतिबंध लगाने की गंभीर मांग तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में साल 2013 में उठी थी, जब हुए कुछ हादसों में 40 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। साल 2014 में कर्नाटक हाइकोर्ट में कुछ लोग इन बसों पर प्रतिबंध लगाने की मांग लेकर गये। हाईकोर्ट ने तो पूरी तरह से स्लीपर बसों पर प्रतिबंध नहीं लगाया, लेकिन अनधिकृत डिजाइन वाली बसों और जिनके पास फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं था, उनके परिचालन पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन देश में स्लीपर बस ऑपरेटरों का दबाव सरकारों पर कुछ इस तरह से है कि केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के तमाम हस्तक्षेप के बावजूद इन बसों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना संभव नहीं लगता। हालांकि साल 2018 में केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने एक स्लीपर कोच मानक (एआईएस-119) जारी किया था।

अपर्याप्त वैकल्पिक संसाधन

हादसों और मांग के बावजूद भी स्लीपर बसों पर बैन तो दूर की बात, हाल के सालों में भारत में इनके परिचालन में 300 फीसदी की वृद्धि हुई है। वजह है भारत में यातायात के संसाधनों में भारी तंगी होना। यहां सालभर में करीब 700 करोड़ लोग सफर करते हैं। भारत में हमेशा ढाई से पौने तीन करोड़ लोग ट्रेनों में सफर कर रहे होते हैं। इसके बावजूद हर तीसरे व्यक्ति को सुविधा मुताबिक ट्रेन में सीट नहीं मिलती। ऐसे में सड़क परिवहन पर दबाव बढ़ रहा है। देश में हर दिन 50 लाख से ज्यादा लोग बसों में यात्रा करते हैं। हादसों के बावजूद स्लीपर बसों की मांग बनी हुई है। वहीं इन बसों में टिकट पाना ज्यादा व्यवस्थित है। टिकट बुकिंग के कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म हैं।

स्लीपर बसों के परिचालन को सुरक्षित बनाने के लिए 2023 में जो संशोधित मानक (एआईएस-153) लागू किये गये थे, उनमें हर सीट पर सीट बैल्ट, फायर सेफ्टी सिस्टम, इमरजेंसी एग्जिट डोर व जीपीएस अनिवार्य था। लेकिन सही क्रियान्वयन व निगरानी के अभाव में निजी ऑपरेटर इन नियमों का पालन नहीं करते। अगर एआईएस मानकों को सही तरीके से लागू किया जा सके, तो हादसों की संख्या काफी कम हो सकती है।

                                                                                              -इ.रि.सें.

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