कोई दो राय नहीं कि तकनीकी तरक्की से जिंदगी सुविधाजनक बनी है। एआई, चैटजीपीटी या गूगल में एक क्लिक पर हर सवाल का जवाब हमारे सामने होता है। लेकिन इससे स्वाभाविक रहस्यात्मकता समाप्त होती प्रतीत हो रही है। हमारे भीतर किसी अनजान चीज के प्रति जिज्ञासा, तलाश, रोमांच या सहज आकर्षण होता था, वो भाव गायब से हो रहे हैं। भावनाओं की जगह अब विश्लेषण ले रहा है। अज्ञात को खुद के प्रयासों से जान-खोज लेने का सुख अब नहीं मिलता।
हाल के एक दशक में डिजिटल टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी एआई ने जिस रफ्तार से हमारी दुनिया को बदला है, उसने हमारे सोचने, देखने और महसूस करने के ढंग को बहुत गहराई तक प्रभावित किया है। इंटरनेट, सोशल मीडिया, गूगल सर्च, चैटबॉट, कैमरे, जीपीएस सिस्टम और डेटा एनालिटिक्स ने मिलकर हमारी दुनिया को ऐसी खुली किताब बना दिया है, जहां किसी अंजान या रहस्यमय धारणा के लिए कोई जगह नहीं बची। जो कभी मनुष्य की जिज्ञासा का स्रोत हुआ करती थी यानी यह धारणा कि यह सब कैसे हुआ या फिर यह प्रश्न कि वह कौन था अथवा ऐसी चिंता कि क्या था और कहां गायब हो गया? अब ऐसे सारे प्रश्न हमारे लिए उत्तर की जिज्ञासा नहीं रखते। क्योंकि अब ये किसी खोज का नहीं बल्कि महज क्लिक का विषय बनकर रह गये हैं। एआई, चैटजीपीटी या गूगल में क्लिक कीजिए और हर रहस्य का जवाब हमारे सामने होता है। यह वास्तव में हमारी जिज्ञासा की मौत और सहजता का अंत है। कभी ऑल्विन ट्रॉफ्लर ने कहा था, ‘रहस्य वही है, जो हमें जानने के लिए विवश करे और हमें एक दायरे का इंसान बनाये रखे।’ लेकिन अब एआई हमारे ऐसा सहज इंसान बने रहने में एक बाधा है। क्योंकि उसके पास हर सवाल का जवाब है, वह कुछ भी रहस्य नहीं रहने देना चाहती।
जिज्ञासा, आकर्षण और आशंका
एक जमाना था जब हमारे फिक्शन राइटर चाहे वह कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद रहे हों, रहस्यगाथाओं की महारानी अगाथा क्रिस्टी हों या रोमांच के राजकुमार रस्किन बॉन्ड। इन सबकी कहानियों में एक रहस्य होता था, जो हमें कहानियों से गोंद की माफिक चिपकाकर रखता था। क्योंकि इन सबकी कहानियां अज्ञात की आशंकाओं या संभावनाओं पर टिकी होती थीं। लेकिन आज के डिजिटल युग ने हर चीज को ज्ञात बना डाला है। अज्ञात का अब अंत हो चुका है। अब हर घटना, हर जगह और हर संभावना की जानकारी गूगल पर मौजूद है। अब अंधेरे गांव, खोये हुए खत, भूतहा हवेली या रहस्यमयी यात्री जैसी कोई चीज या चीजें नहीं होतीं, जो पाठकों की कल्पना को झकझोरें। आज गूगल सर्च, चैटजीपीटी और जीपीएस ने सब तरह की रहस्यमयताओं को खत्म कर दिया है। वह हवेली कहां हैं, जिसे भूतहा हवेली कहते हैं? अब जीपीएस मैप में उसे पलक झपकते देख सकते हैं और उसके इर्दगिर्द में मौजूद दूसरी चीजों से उसके इतिहास, भूगोल को पलक झपकते ही जान सकते हैं। हो सकता है, कभी-कभी यह अच्छी बात लगती हो, लेकिन गहराई से सोचें तो इस जानकारी में भूतहा हवेली के सारे आकर्षण को खो गए। क्योंकि कैमरा साफ-साफ दिखा देता है कि भईया, कहीं भूत नहीं है। अंजान और अज्ञात यात्री अब कहीं नहीं आते, सोशल मीडिया ट्रैकिंग पलक झपकते ही बता देती है कि वह यात्री कौन था, कहां से आया था और कहां जा रहा था?
सूचना की बहुलता ने छीना रोमांच
लब्बोलुआब यह कि रहस्य की दुनिया न केवल दिनोंदिन सिकुड़ती जा रही है बल्कि सच तो यह है कि यह दुनिया अब पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। सूचना की सर्वव्यापकता ने हमसे रोमांच छीन लिया है। वास्तव में अनुमानों की जगह अब एआई और डेटा ने ले ली है। कभी लेखक अपने पाठकों को अनुमान लगाने की छूट देते थे कि वह जो रहस्य की दुनिया गढ़ रहे हैं, पाठक अनुमान लगाएं कि वह दुनिया क्या है? लेकिन आज एआई एल्गोरिद्म हमें इसकी छूट नहीं देता। एआई एल्गोरिद्म हमें पहले से ही बता देता है कि कौन सी चीज क्या है और इससे भी ज्यादा कि हमें क्या चीज पसंद आयेगी, क्या नहीं। आज नेटफ्लिक्स या यू-ट्यूब हमें यूं ही चीजों को ढूंढ़ने या देखने, सुनने की छूट नहीं देते बल्कि ये दोनों पहले से ही तय कर लेते हैं कि हम क्या देखना चाहते हैं, क्या जानना चाहते हैं और फिर हमारे सामने उन्हीं चीजों की झड़ी लगा देते हैं। हमें लगता है कि यू-ट्यूब ने हमारे सामने सहजता से चीजें एक के बाद एक क्रम में प्रस्तुत की हैं, मगर ऐसा नहीं होता बल्कि वो चीजें जो हमारे सामने आयी होती हैं, वो उनके एल्गोरिद्म के मुताबिक उनके निर्णय से आयी होती हैं।
भावनाओं की जगह अब विश्लेषण
नेटफ्लिक्स या यू-ट्यूब ही तय करते हैं कि अब अगली कहानी, अगला ट्रेलर या गाना क्या होगा? इससे कहानी पढ़ने या देखने वालों में अप्रत्याशित का या सरप्राइज का रोमांच खत्म हो गया है बल्कि इसकी जगह पूर्वानुमेयता या प्रिडेक्टिबिल्टी ने ले ली है। क्योंकि भावनाओं की जगह अब विश्लेषण का जमाना है। एआई के युग में हर चीज पहले से तय है और डाटा के रूप में है। कभी प्रेम, भय या जिज्ञासा को हम अपने अनुभवों से समझते थे, अब इसे इमोशन एनालिसिस से नापा जा सकता है।
सहज स्वीकार्य विनम्रता का ह्रास
संवेदना को भी अब एक विशेष कोड में बांध दिया गया है, नतीजा निकला है मासूम रहस्य की मौत। जबकि मनोविज्ञान की गहराई से समझें तो मानव जीवन के लिए रहस्य बहुत जरूरी चीज है। यह जीवन जीने की सहजता के लिए ही नहीं बल्कि आध्यात्मिकता के बोध के लिए भी बहुत जरूरी है। जब हमें किसी बात का जवाब नहीं मिलता या नहीं पता होता, तब हम कल्पना करते हैं, खुद से प्रश्न करते हैं और खुद ही उसका जवाब पाने के लिए अपने अंदर की रचनात्मकता को जगाते हैं। पहले रहस्य का मतलब था, कुछ ऐसा जानने की खुशी, जिसे आज तक नहीं जानते और तब न जानना किसी अपराधबोध का बायस नहीं बल्कि इंसान की सहज स्वीकार्य विनम्रता थी। लेकिन अब किसी को यह स्वीकार्य नहीं है कि कोई जाने कि उसे इस सवाल का जवाब या इस बात का मतलब नहीं पता।
सहजता की जगह तत्काल प्रतिक्रिया
क्योंकि आज हमारे पास हर बात और हर सवाल का एक मौजूद जवाब है। फिर भले चाहे इस जवाब में कई तरह की तकनीकी खामियां या कमियां हों। पर प्राथमिक स्तर का तो यह जवाब है ही और इसने हमारी सहज जिज्ञासा को खत्म कर दिया है। नतीजतन आज किसी भी इंसान के भीतर धैर्य बहुत कम बचा है। कल्पना सूख गई है और सहजता की जगह तात्कालिक प्रतिक्रिया ने ले ली है। 90 के दशक में ‘व्योमकेश बख्शी’ या ‘फेलूदा’ जैसे टीवी सीरियल देखकर दर्शक घंटों ये सोचते रहते थे कि आखिर अपराधी कौन है? लेकिन आज की तारीख में जटिल से जटिल क्राइम इन्वेस्टिगेशन सीरीज में फॉरेंसिक डेटा, सीसीटीवी फुटेज और एआई विश्लेषण अनुमान से भी पहले अपराधी को पकड़ लेते हैं। अब रहस्य का रोमांच महज डेटा रिकवरी तक सिमटकर रह गया है। कभी प्रेम पत्र हमारे अंदर अनगिनत बार प्रेम को जीने और दिल भरकर महसूसने की छूट देते थे। कभी प्रतीक्षा में गहरी और बेहद कोमल कहानियां हमारा मनोरंजन करती थीं और गलतफहमियां हमारे मानवीय मनोविज्ञान की रहस्यमयी परतों को उजागर करती थीं।
प्रेम और रोमांच भी तकनीक की जद में
मगर आज जीपीएस आधारित डेटिंग एप ने इंतजार और खोज दोनों को खत्म कर दिया है। एआई अब तय करता है कि आपका परफेक्ट मैच कौन है? मतलब यह कि अब प्रेम में भी जो सहज मानवीय रोमांच था, वह भी तकनीक के हवाले हो गया है। पहले भूत, हमारी आत्मा, हमारे सपनों और दैवीय अनुभवों की रहस्यमयी कहानियां कहते थे। आज थर्मल कैमरा, न्यूरोलॉजिकल स्टडी और डीपफेक तकनीक ने इस सबको महज भ्रम तक सीमित करके रख दिया है। आज कहानी की आत्मीय रहस्यमयता, वैज्ञानिक विश्लेषण के घने जंगल में विलीन हो गई है। दरअसल जीवन से जब रहस्य गायब हो जाता है, तो उसकी सहजता भी खत्म हो जाती है। क्योंकि जब सहजता नहीं बचती, तो कुछ जानने की जरूरत भी महसूस नहीं होती। आज हमारे सामने सबसे बड़ी विडंबना यही है कि जो सब कुछ जानना चाहता है, उसके अंदर भी कुछ जानने का रोमांच नहीं धड़कता। क्योंकि जानकारी की अधिकता ने हमारी खुशी को महज इंफोर्मेंशन एंजायटी में बदलकर रख दिया है। पहले जो सवाल रोमांचक प्रश्न हुआ करते थे, अब ऐसे सवाल कम जानकारी या हमारे बचकाना होने की निशानी बनकर रह गये हैं। पहले एक जवाब खोजने में दिन लगते थे, अब तीन सेकंड में भी जवाब न मिले तो हमें झुंझलाहट होती है, जैसे न जाने इस देरी से हम कितना कुछ खो रहे हैं।
कहने का मतलब यह कि डिजिटल टेक्नोलॉजी और एआई की धमक ने हमारे जीवन और फिक्शन दोनों से मासूम रहस्यों को बेदखल कर दिया है, जिससे जीवन में सब कुछ होने के बाद भी, कुछ न होने की निराशा भर गई। -लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
-इ.रि.सें.
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