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संवादों के बीच उनकी खामोशियां भी कुछ कहती हैं...

‘टैगोर थिएटर में जैसे ही नसीरुद्दीन शाह ‘इस्मत आपा के नाम’ नाटक में अभिनय करने के लिए मंच पर आये उन्होंने उनके शब्दों में जान फूंक दी, जहां उनकी खामोशी हज़ारों-हजार भावनाओं को व्यक्त कर रही थी। स्टारडम का असली...
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‘टैगोर थिएटर में जैसे ही नसीरुद्दीन शाह ‘इस्मत आपा के नाम’ नाटक में अभिनय करने के लिए मंच पर आये उन्होंने उनके शब्दों में जान फूंक दी, जहां उनकी खामोशी हज़ारों-हजार भावनाओं को व्यक्त कर रही थी।

स्टारडम का असली पैमाना क्या है? चंडीगढ़ का टैगोर थिएटर उस वक्त जीवंत हो उठे, गेट तक लोगों की कतार लगी हो और दर्शक कुर्सियों से खड़े होकर तालियां बजाते न थकें, न केवल प्रस्तुति खत्म होने के बाद... बल्कि उस वक्त भी, जैसे ही जीवित किंवदंती बन चुके नसीरुद्दीन शाह मंच पर कदम रखते हैं... बस यही इसका जवाब है!

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वो शाम रंगमंच प्रेमियों के लिए एक तोहफ़ा थी क्योंकि न सिर्फ़ नसीर, बल्कि रत्ना पाठक शाह और हीबा शाह भी रानी ब्रेस्ट कैंसर ट्रस्ट द्वारा पेश नाटक, ‘इस्मत आपा के नाम’ के लिए मंच पर थे। नाटक का परिचय देने को, मंच पर आए नसीर, काले कुर्ते में फब रहे थे, प्रसिद्ध लेखिका इस्मत चुगताई को श्रद्धांजलि देते हुए, चंद मिनटों में उन्होंने उनके लेखन को संदर्भ में रख दिया!

हालांकि कहानी ‘लिहाफ़’ (रजाई) बीसवीं सदी में उर्दू साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण आवाज़ों में से एक बन गई थी, लेकिन चुगताई ने इससे पहले और बाद में जो कुछ भी लिखा, वह इसकी छाया में ही रहा। ‘इस्मत चुगताई और सआदत हसन मंटो पर लाहौर में चल रहे अदालती मुकदमे, पुरुष वर्चस्व को चुनौती देने वाली आवाज़ों को चुप कराने के तरीके मात्र थे’। क्या आज कुछ बदला है?

नाटक की शुरुआत हीबा ने की, जो हमें सीधे चुगताई के ज़माने की दिल्ली ले गईं - रेलगाड़ी, हवेली और प्लेटफार्म। कहानी, ‘छुई मुई’ में दो महिलाओं को दिखाया गया है, जो बच्चे को जन्म देने वाली थीं, लेकिन बिल्कुल अलग ज़िंदगी में जी रही थीं। जहां भाभीजान के गर्भकाल में उनकी सारी देखभाल और लाड़-प्यार के बावजूद परिवार को उनका वारिस नहीं मिला; वहीं किसान महिला ने रेलगाड़ी में सफ़र करते हुए, उनके पैरों के पास ही बच्चे को जन्म दिया। विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की एक महिला और वंचित तबके से एक औरत के बीच गहरे अंतर और उनकी भूमिकाओं को दर्शाते हुए, नाटक सामाजिक पदानुक्रम पर एक कटाक्ष करता है। हीबा के स्पष्ट उच्चारण और अभिनय की गति ने लेखिका के शब्दों को जीवित कर दिया!

इसके बाद, रत्ना ने कहानी ‘मुगल बच्चा’ को जीवंत करके मंच पर जोश और चुस्ती-फुर्ती का अभिनय किया। सफ़ेद और गहरे सुर्ख शरारे में, काफ़ी अदाएं दर्शायीं, ठीक ऐसे ही ‘गोरी बी और ‘काले मियां’ की कहानी में किया। यह कहानी, जिसका शीर्षक ‘घूंघट’ भी है,केवल‘गोरी बी और काले मियां’ की कहानी नहीं है, यह सामान्य पति-पत्नी की, इच्छाओं और नियंत्रण की कहानी है, और बदलते समाज और उसकी पदानुक्रमिक व्यवस्था पर एक करारी चोट भी है। कुछ गुदगुदाती, थोड़ी सी मज़ेदार, भावुक और कुछ दुखद भी... इसे पढ़कर कई बार हंसी आती है।

फिर मंच पर अवतरण हुआ दिग्गज का- नसीर साहब का, कहानी ‘घरवाली’ के साथ। कामवाली बाई लज्जो पर मिर्जा जी अपना दिल और घर हार बैठे। इसमें सब कुछ था - साहस, ईमानदारी, प्यार, वासना और लालसा। क्या इस्मत चुगताई का लेखन ‘अश्लील’ था? नसीर ने नाटक से पहले दर्शकों को चुनौती के रूप में इसका जवाब ढूंढ़कर देने को कहा। नाटक सिवाय ‘अश्लील’ के सब कुछ निकला। लज्जो की मासूमियत, खिलंदड़ी अदाएं, मिर्जा जी की प्रतिष्ठा से लेकर मिठुआ के साहसिक डोरों तक, यह दिल व चूल्हे (पेट की मजबूरी) की सच्ची कहानी थी।

बीते युग को फिर से कैसे शाह परिवार ने सामने ला दिया, वाकई काबिले तारीफ है, सिर्फ़ कहानी के माध्यम से उस दौर के हालात को जीवंत कर देना। उन लघु पलों में नसीर ने भावनाओं को जिया - ईर्ष्या, मासूमियत, वासना और कोमलता।

अगर हीबा ने इस्मत की अमीरी पर चुटकी ली, तो रत्ना ने उसे उड़ान दी और नसीर के अभिनय ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। दर्शक कहानी और विषय के साथ एकाकार हो गए। सिर्फ़ शब्द ही नहीं, बल्कि वाक्य के बीच के विरामों में भी, उनकी खामोशी हज़ारों-हजार भावनाओं को व्यक्त कर रही थी।

आरबीसीटी का मिशन ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता

रानी ब्रेस्ट कैंसर ट्रस्ट (आरबीसीटी) ने चंडीगढ़ में अपने12वें वार्षिक फंडरेज़र कार्यक्रम का समापन मोटली प्रोडक्शंस की प्रसिद्ध कृति ‘इस्मत आपा के नाम’ की भावपूर्ण प्रस्तुति के साथ किया। नसीरुद्दीन शाह के नेतृत्व में, रत्ना पाठक शाह और हीबा शाह के साथ, इस प्रदर्शन ने इस्मत चुगताई की कहानियों को अपनी कला से जीवंत किया। इस प्रदर्शन ने ‘डरें नहीं, जागरूक रहें’ के बैनर तले ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने के आरबीसीटी के मिशन को भी मजबूती दी। इस कार्यक्रम ने कला, समुदाय और उद्देश्य के सम्मिश्रण की आरबीसीटी की विरासत को आगे बढ़ाया है। आरबीसीटी 18 वर्ष की सेवा पूरी कर रहा है और इस प्रदर्शन में कला जगत की कुछ नामी हस्तियों की मेजबानी की है, मसलन : गुरदास मान, हरभजन मान, सतिंदर सरताज, रेखा भारद्वाज, जस्सी गिल और बब्बल राय, नूरां सिस्टर्स व जूही बब्बर। आरबीसीटी महिलाओं के स्वास्थ्य, शीघ्र पहचान और सामुदायिक जागरूकता पर सार्थक संवाद को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।

और वो गंभीरता के पल...

उस शाम एक ग़मगीन पल भी आया, जब बिट्टू सफ़ीना संधू ने मंच पर आकर खचाखच हॉल में बैठे लोगों को अपने ‘दुःख’ में शामिल होने के लिए धन्यवाद दिया। रानी ब्रेस्ट कैंसर ट्रस्ट के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने के निमित्त इस कार्यक्रम में, जिसमें देश में उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ कलाकारों की नाटक प्रस्तुति पेश की गई, अग्रिम पंक्ति के दर्शकों में गुरदास मान सहित शहर के जाने-माने लोग बैठे थे। अपनी बहन रानी की स्मृति में स्थापित इस कार्यक्रम में, बिट्टू संधू ने अपने भाई गुरदास मान और भाभी मंजीत मान, डॉक्टरों की टीम और ट्रस्ट को निरंतर सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। जब उन्होंने अपने बेटे, डॉ. करण को याद किया, जिसे भाग्य ने असमय छीन लिया, तो हॉल में हर किसी की आंखें छलक आईं।

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