हृदय रोग देश-दुनिया में बहुत बड़ा स्वास्थ्य संकट है। वहीं यह आर्थिक और सामाजिक संकट बनकर भी उभर रहा है, क्योंकि यह युवा और कामकाजी आबादी को भी शिकार बना रहा है। दरअसल ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और बेड कोलेस्ट्रोल जैसे रोग इस बीमारी की वजह बन रहे हैं। हृदय रोग के लक्षणों की पहचान, नियमित स्वास्थ्य चेकअप, चेतावनियों के प्रति गंभीरता, खानपान-जीवनशैली में सुधार और एक्सरसाइज करना इससे बचाव का सबसे बड़ा जरिया है।
भारत में कार्डियोवेस्कुलर डिजीज (सीवीडीएस) यानी हृदय रोग सबसे बड़ा हत्यारा है। देश में हर साल विभिन्न रोगों से जितनी मौतें होती हैं, उनमें से अकेले हृदय रोगों से 30-32 फीसदी लोगों की मौत हार्ट अटैक और हार्ट स्ट्रोक से होती है। लगभग 62 लाख लोग हर साल हृदय रोगों से जान गंवाते हैं। हृदय रोगों से मौतों की संख्या टीबी, मलेरिया और एड्स जैसी महामारियों द्वारा साझी मौतों से भी कहीं ज्यादा होती है। यहां हृदय रोगों से होने वाली 40 फीसदी मौतें 70 साल से पहले होती हैं। वहीं हर साल 50 अरब रुपये का नुकसान कम उम्र के लोगों की हृदय रोगों से मर जाने के कारण होता है।
बड़ी संख्या में युवाओं और गांवों तक प्रसार
हालांकि पहले हृदय रोग को शहरों की बीमारी ही माना जाता था, लेकिन आजकल बड़े पैमाने पर गांवों में भी हृदय रोग के कारण लोग दम तोड़ रहे हैं। यह सिर्फ स्वास्थ्य संकट नहीं है बल्कि बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामाजिक संकट बनकर भी उभर रहा है, क्योंकि यह बीमारी सबसे ज्यादा युवा और कामकाजी आबादी को अपना शिकार बना रही है। हाई ब्लड प्रेशर ने इसके एक सहायक विस्तार के रूप में देश की युवा आबादी को अपनी चपेट में लिया है। देश के 25 फीसदी से ज्यादा वयस्कों को 18 साल के बाद ही हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत हो रही है। युवाओं को बड़े पैमाने पर हाइपर टेंशन ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। भारत अकेला ऐसा देश है, जहां हर साल 18 लाख से ज्यादा लोग स्ट्रोक का शिकार होते हैं, इनमें से 25 से 30 फीसदी लोगों की मौत हो जाती है और इतने ही हमेशा हमेशा के लिए अपाहिज हो जाते हैं।
सजगता का लक्ष्य
हृदय रोग पूरी दुनिया के लिए हाल के दशकों में बड़ी समस्या के रूप में उभरा है। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्ल्ड हार्ट फाउंडेशन ने साल 2000 से वर्ल्ड हार्ट डे मनाने की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य लोगों को इस बारे में सजग बनाना है । लेकिन खानपान, जीवनशैली और तनाव के कारण हृदय रोग से होने वाली मौतों का आंकड़ा कम नहीं हो रहा। साल 2022 में करीब 2 करोड़ लोगों की मौत अकेले हृदय रोगों के कारण हुई थी। वर्ल्ड हार्ट डे 29 सितंबर को होता है। विश्व हृदय दिवस मनाये जाने का उद्देश्य लोगों को हृदय रोगों, उसके लक्षणों और जोखिम कारकों से आगाह करना है यानी उनकी गलत डाइट, असंतुलित जीवनशैली और तंबाकू के अंधाधुंध इस्तेमाल से रोका जाता है।
ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रोल हैं बड़े कारक
भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देशों में हृदय रोगों से होने वाली मौत का सबसे बड़ा कारण ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रोल को लेकर बरती जा रही लापरवाही है। इसलिए हृदय दिवस पर ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रोल की जांच पर सबसे ज्यादा जोर दिया जाता है। इस साल यानी साल 2025 हृदय दिवस की थीम है- डोंट मिस ए बीट यानी अपनी किसी भी धड़कन की अनदेखी न करें। हम नियमित स्वास्थ्य चेकअप के जरिये ही हृदय रोग की भयावहता से बच सकते हैं। समय-समय पर हृदय रोग संबंधी लक्षणों की जांच, चेतावनियों को गंभीरता से लेना, जीवनशैली में सुधार और एक्सरसाइज करना ही इससे बचाव का सबसे बड़ा जरिया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन हृदय दिवस के अवसर को विशेष तौरपर जागरूकता अभियान का हिस्सा बनाना चाहता है। हर साल दुनिया में सभी तरह की बीमारियों से जितने लोगों की मौत होती है, उनमें से 32 फीसदी लोगों की मौत अकेले हृदय रोगों से होना बेहद खतरनाक है। हम सभी को सजग हो जाना चाहिए। क्योंकि भारत में 35-40 साल के लोग भी बड़ी संख्या में हृदय रोगों के कारण मौत के मुंह में समा रहे हैं।
बढ़ती भयावहता के कारण
भारत में हृदय रोगों से बढ़ती मौतों का सबसे बड़ा कारण अस्वस्थ जीवनशैली है। लगातार खानपान के बारे में सजगताभरी बातें होने के बावजूद भारत में जंक फूड और तैलीय खानपान का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है। धूम्रपान, शराब की लत और कम व्यायाम भी एक बड़ी समस्या है। साथ ही देश में बढ़ता तनाव और प्रदूषण विशेषकर शहरी जीवन की बड़ी चुनौती बन गया है। लोग नियमित स्वास्थ्य जांच नहीं कराते। ग्रामीण इलाकों में दूर-दूर तक हार्ट स्पेशलिस्ट और हृदय रोग संबंधी बीमारियों के इलाज की सुविधा नहीं होती। भारत की युवा पीढ़ी में मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की समस्या भी बहुत तेजी से बढ़ रही है। इस कारण भी भारत में हृदय रोग देश का नंबर वन किलर बन चुका है। -इ.रि.सें.