फिल्मों में अदालती दृश्यों का फलसफा
बॉलीवुड में अदालती कार्यवाही पर आधारित कई फिल्में बनीं। साल 1963 में फिल्म ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ , ‘अचानक’, ‘वक्त’ , ‘कानून’, ‘एतराज़’, ‘पिंक’ में कई दृश्य यादगार हैं। यह सिलसिला ‘जॉली एलएलबी-2’ व हाल ही में ‘द ताज स्टोरी’ और ‘हक’ तक जारी है। कोर्टरूम सीन दर्शक जिज्ञासा के साथ देखते हैं। खासकर चुस्त संवाद।
पिछले दिनों रिलीज निर्देशक सुभाष कपूर की तीसरी फ्रेंचाइज़ी फिल्म ‘जॉली एलएलबी-3’ में वकील जॉली जगदीश्वर मिश्रा बने अभिनेता अक्षय कुमार का कोर्टरूम ड्रामा दर्शकों को ज्यादा रास नहीं आया। मगर उसके बाद की दो फिल्में ‘द ताज स्टोरी’ और ‘हक’ अदालती कार्यवाही पर टिकी हुई हैं और सफल कही जा सकती हैं। ऐसे में कोर्टरूम वाली फिल्मों को याद करना लाज़िमी है। इसकी एक लंबी
Advertisementशृंखला है।
अदालती दृश्यों का रोमांच
खुद पर लिखी गई अपनी एक किताब में अभिनेता अशोक कुमार ने कहा है कि फिल्म के अदालती दृश्यों में अदालत के अंदर या उसके इर्द-गिर्द घूमने में उन्हें बहुत मज़ा आता रहा है। अतीत में जाएं, तो अशोक कुमार, मोतीलाल, इफ्तिखार जैसे अभिनेताओं ने कई अदालती दृश्यों से सबका मन मोह लिया था। साल 1963 में निर्देशक आर.के. नय्यर ने फिल्म ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ लीला नायडू, सुनील दत्त, अशोक कुमार, मोतीलाल, शशिकला आदि को लेकर बनाई थी। इस चर्चित फिल्म के कोर्टरूम सीन को आकर्षक माना जाता है। साल 1973 की गुलजार की फिल्म ‘अचानक’ भी इसी घटना पर आधारित थी। 2004 की अब्बास-मस्तान की ‘एतराज़’ में बैरिस्टर राम चोटरानी बने अन्नू कपूर और अक्षय कुमार अदालती चक्कर में फंस गए थे। इसी तरह ‘जॉली एलएलबी-2’ में अक्षय का यादगार अभिनय है।
‘पिंक’ के वकील अमिताभ
सच तो यह है कि अनिरुद्ध राय चौधरी की फिल्म ‘पिंक’ से उसके दो वकील का किरदार करने वाले एक्टर अमिताभ बच्चन और पीयूष मिश्रा की शानदार परफॉर्मेंस निकाल दी जाए, तो इस फिल्म को दर्शक पसंद नहीं करेंगे। इसकी वजह यह थी कि इसके कोर्टरूम सीन भी बहुत सुस्त चलते हैं। असल में कोर्टरूम सीन में दर्शक तेजी देखना चाहते हैं। कई फिल्मों में वकील का उम्दा रोल कर चुके अभिनेता अन्नू कपूर कहते हैं, ‘यदि आपकी फिल्म में अदालती दृश्य हैं, तो इनके संवाद-अदायगी पर आपको खास ध्यान देना होगा।’
‘हक’ और ‘द ताज स्टोरी’ की बातें
दो नई फिल्मों ‘हक’ और ‘द ताज स्टोरी’ के सब्जेक्ट को कोर्टरूम ड्रामा का बड़ा आधार मिला है। इसके अदालती दृश्यों को दर्शक जिज्ञासा के साथ देखते हैं। ‘हक’ शाह बानो जैसे मशहूर मामले पर बेस्ड है। नायिका यामी गौतम इसमें शाह बानो बनी हैं। उनकी वकील बनी हैं अभिनेत्री सीबा चड्ढा। शाह बानों के शौहर का रोल किया इमरान हाशमी ने, जो विपक्ष के वकील भी हैं। जबकि जज के तौर पर अभिनेता अनंग देसाई ने शानदार परफॉर्मेंस दी है। अभिनेता हरमन बावेजा इसके निर्माता हैं। मगर ‘द ताज स्टोरी’ में कमाल परेश रावल ने दिखाया है। फिल्म के अदालती दृश्यों में वह अपना पक्ष एक वकील के तौर पर रखते हैं।
वो यादगार अदालती दृश्य
पुराने सुनहरे दौर में हर तीसरी फिल्म का अंत कोर्टरूम ड्रामा के साथ होता था। अक्सर विलेन को सजा अदालती फैसले के जरिए ही मिलती थी। इस संदर्भ में 1965 की फिल्म ‘वक्त’ के अदालती दृश्यों को आज भी कई फिल्मकार प्रेरक मानते हैं। वकील बने सुनील दत्त रहमान को कातिल साबित करते हैं। इसमें विपक्षी वकील मोतीलाल के तर्क-वितर्क भी दिलचस्प थे।
‘कानून’ का सींखचा
न्याय-प्रक्रिया में मुल्ज़िम की तलाश में इसके शक की सुई किसी की तरफ भी घूम सकती है। 1960 की कल्ट क्लासिक बी.आर. चोपड़ा की ‘कानून’ में जज बद्री प्रसाद की भूमिका में मौजूद अशोक कुमार को ही कातिल समझ लिया जाता है। इसमें हर पल बदलती अदालती प्रक्रिया ने रोमांच क्रिएट किया था।
सफल वकील मोतीलाल और दादामणि
यूं तो अन्नू कपूर, बोमन ईरानी, पीयूष मिश्रा, नीना गुप्ता, सौरभ, अनंग देसाई जैसे कई एक्टर फिल्म के अदालती दृश्यों में खूब रोमांच भरते हैं। पर जब भी सफल फिल्मी वकील की चर्चा होगी अशोक कुमार, मोतीलाल, इफ्तिखार आदि का ही नाम लिया जाता है। असित सेन की फिल्म ‘ममता’ में अशोक कुमार की बतौर बैरिस्टर अभिनय-संपन्नता पर आप मुग्ध हो जाएंगे। धीमे-धीमे संवाद बोलकर अभिनेता मोतीलाल भी दर्शकों को वश में कर लेते थे।
संवाद के बिना रोमांच कहां
अदालती कार्यवाही में चुस्त संवादों का बहुत योगदान होता है। दो वकीलों की छोटी-छोटी चुटकी या तकरार अलग तरह का रोमांच लाती है। फिल्म ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ में आगा जानी कश्मीरी और वी.एस. थापा के संवादों ने दर्शकों को ठिठकने के लिए मजबूर कर दिया था। फिल्म ‘मेरी जंग’ के अदालती दृश्यों में अभिनेता अनिल कपूर का भी जावेद अख्तर के संवादों ने खूब साथ दिया था।
