साफ-सुथरी फिल्में भी लुभाती हैं दर्शकों को
जब भी पूरी ईमानदारी से बनी कोई सीधी-सादी फिल्म दर्शकों के सामने परोसी जाती है, वे उसका स्वागत करते हैं। हालिया हिट फिल्में छावा,रेड,सैयारा,महाअवतार नरसिंहा इसकी बानगी है। ऐसे में यह कहना गलत है कि दर्शक बोल्ड सीन देखने को बेताब रहते हैं। फिर भी आजकल कई निर्माता हैं,जो बोल्ड सीन रखते हैं।
हाल फिलहाल की कुछ हिट फिल्मों छावा, रेड, सैयारा, महाअवतार नरसिंहा,कुली आदि की विषयवस्तु और प्रस्तुति पर गौर फरमाएं,तो इनमें सादगी साफ झलकती हैं। इनमें जो कुछ बोल्डनेस दिखाई पड़ी है,उसे दर्शक आराम से नजरअंदाज कर देते हैं। इनमें न कोई बेवजह किसिंग सीन है,न ही कोई बोल्ड सीन। इनके निर्देशकों ने बहुत सावधानी बरतते हुए अपनी फिल्मों में ऐसे मसालों से काफी हद तक परहेज किया। वे सिर्फ एक कंटेंट के सहारे अपनी फिल्म को आगे बढ़ाते हैं।
शुरुआत ऐसे हुई
असल में इसकी शुरुआत बहुत पहले फिल्म बाहुबली से हो चुकी थी। पूरे 2000 करोड़ के भारी बजट में बनी इस सुपर डुपर सफल फिल्म के दोनों भागों में किसी बोल्ड सीन को आश्रय नहीं मिला था, शुरू से अंत तक अपने मूलविषय पर स्थिर थी। संदेश यह कि जब भी पूरी ईमानदारी से बनी कोई सीधी-सादी फिल्म दर्शकों के सामने परोसी जाती है, वे उसका स्वागत करते हैं। ऐसे में यह विरोधाभास ही लगता है कि दर्शक बोल्ड सीन देखने के लिए बेताब रहते हैं।
निर्माताओं का वहम
सच यह भी है कि आज भी मुंबइया फिल्मों के कई ऐसे निर्माता हैं,जो हीरो-हीरोइन के किसिंग सीन और हीरोइन के बोल्ड सीन को लेकर काफी सजग रहते हैं। कई ऐसी फिल्में आ रही हैं,जिनमें हीरोइन कम कपड़ों में दिखाई पड़ती है या फिर बेधड़क चुंबन दृश्य हैं। अभिनेत्री और सासंद कंगना रनौत कहती हैं,‘ ऐसे सीन कोई जरूरी नहीं,पर कई बार फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने के नाम पर ऐसे सीन होते हैं। ऐसे सीन दर्शकों को बहुत ज्यादा आकर्षित नहीं करते। दर्शक सिर्फ अच्छी फिल्म देखना चाहता है।’
खुल्लम-खुल्ला प्यार
ताजा रिलीज ‘सैयारा’ के निर्देशक मोहित सूरी भी कुछ ऐसा मानते हैं। वह कहते हैं,‘ यह कहना कि दर्शक ऐसे सीन एंजॉय करता है,एक गलत धारणा है। मैं ऐसे सीन के विरोध में नहीं हूं पर मानता हूं कि ऐसे सीन बेवजह नहीं रखे जाने चाहिए। ‘टु स्टेट्स’ की तरह मेरी इस फिल्म में भी कुछेक इंटीमेट सीन हैं,पर मैंने इन्हें वल्गर नहीं बनने दिया है। बेशक पुराने दौर की फिल्मों में बेहद खूबसूरती के साथ इंटीमेट सीन फिल्माए जाते थे। पर न्यू जेनरेशन ऐसे सीन को पचा नहीं पाती है। वह परदे पर खुल्लम-खुल्ला प्यार देखना चाहती है।’ इसका दूसरा पक्ष यह है कि ढेरों दर्शक ऐसे हैं,जो ऐसे सीन को महज टाइमपास मानते हैं,कहानी का हिस्सा नहीं।
नई पीढ़ी को तो कहानी चाहिए
मशहूर लेखक सलीम कहते हैं,‘ नई पीढ़ी का बहाना बनाकर ऐसे सीन मत परोसिए। नई पीढ़ी ऐसे सीन देखने के लिए जरा भी क्रेजी नहीं है। कई बार तो उसे हीरो-हीरोइन का किसिंग सीन फिल्म के सब्जेक्ट में एक रुकावट लगता है।’ दरअसल फिल्मों के कई गंभीर लेखक इस बात के हिमायती हैं कि नयी जेनरेशन को सिर्फ अच्छी कहानी चाहिए।
फिल्म ‘शैयारा’ की मिसाल
आश्चर्य ही कहेंगे कि इस बार यशराज फिल्म्स की फिल्म ‘शैयारा’ में मामले में यशराज ने कोई दखलअंदाजी नहीं की। न अपने बैनर की इस फिल्म की कहानी लिखी, न ही किसी फिल्मी मसाले को पेश करने का दबाव डाला। सुफल यह मिला कि यह सीधी-सादी फिल्म दर्शकों के दिलो-दिमाग पर छा गई। वैसे आदि बोल्डनेस के मामले में खासे लोकप्रिय रहे हैं।
हीरोइन का ग्लैमर
इसमें दो राय नहीं है कि दर्शक परदे पर हीरोइन को ग्लैमरस देखना चाहता है। लेखक-निर्देशक नीरज पांडे के मुताबिक,‘परदे पर हीरोइन के ग्लैमर का अपना क्रेज होता है और इसे यदि शालीनता से पेश किया जाये,तो दर्शक इसे बार-बार देखना भी पसंद करते हैं। इसलिए पुराने दौर की कपड़ों में ढकी हीरोइन ज्यादा ग्लमर्स दिखाई पड़ती थी।’ फिल्म पीकू में कपड़ों में ढकी दिखी दीपिका पादुकोण कहती हैं,‘ स्टोरी की मांग हो तो इस तरह के ड्रेस कैरेक्टर के लिए तार्किक लगते हैं। ऐसा हरगिज नहीं कि दर्शक हमेशा हमें बोल्ड ड्रेस में ही देखना चाहते हैं।’ अक्सर सिर्फ दर्शकों के नाम पर फिल्मों के आत्मीय दृश्यों में भी खूब लिपटा-चिपटी के दृश्य फिल्माए जाते हैं। फिल्म समीक्षक राजगोपाल नांबियार बताते हैं,‘ ज्यादातर दर्शकों की हीरो-हीरोइन के इंटीमेट सीन में कोई दिलचस्पी नहीं होती है। पर कई फिल्मों में कहानी के नाम पर कुछ नहीं होता है। वहीं कई बार दर्शकों का एक छोटा-सा वर्ग ऐसे दृश्य देखने के लिए ही थियेटर की तरफ रुख करता है।’
‘कर्म’ का वो दृश्य
कई दशक बीत गए फिल्म ‘कर्म’ के उस चर्चित किसिंग सीन की यादें आज भी ताजा हैं जो देविका रानी और हिमांशु राय पर फिल्माया गया था। पर इसके निर्माता हिमांशु राय ने कभी नहीं कहा कि उन्होंने दर्शकों की डिमांड पर यह दृश्य रखा था।