समय रहते संपूर्ण उपचार से कुष्ठ रोग मुक्त बचपन
दुनियाभर में कुष्ठ रोगियों का बड़ा हिस्सा भारत में रहता है। इनमें बाल कुष्ठ रोगी भी शामिल हैं। यह रोग माइकोबैक्टीरियम लेप्री बैक्टीरिया से होता है जो संक्रमित व्यक्ति के खांसने-छींकने से फैलता है। बच्चों की इम्यूनिटी कम होने के कारण वे जल्दी संक्रमित हो जाते हैं। कुष्ठ रोग के लिए प्रभावी मल्टी ड्रग थेरैपी (एमडीटी) उपलब्ध है। दवा का पूरा कोर्स लेने से रोगी स्वस्थ हो जाते हैं।
विश्व भर के संक्रामक रोगों में कुष्ठ रोग उपेक्षित रोगों की श्रेणी में गिना जाता है। यह दुखद स्थिति है कि जितना यह रोग उपेक्षित है उतने ही इसके रोगी और इनमें सबमें अधिक उपेक्षित हैं बच्चे। वर्ष 2024 में दर्ज कुष्ठ रोग के 1,73,000 नये मामलों में से 58 फीसदी भारत में थे और बच्चों में कुष्ठ रोग के 9,397 मामलों में हर दूसरा बच्चा भारतीय था। बच्चों में कुष्ठ रोग आस-पड़ोस में चल रहे संक्रमण को दर्शाता है। इसलिए बच्चों में कुष्ठ रोग का रोकना इसे हर जगह से खत्म करने की कुंजी है।
कुष्ठ रोग केवल चिकित्सा समस्या ही नहीं बल्कि सामाजिक समस्या भी है। रोगियों को अक्सर कलंक, भेदभाव और बहिष्कार झेलना पड़ता है, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। गरीबी, अस्वच्छता और शिक्षा की कमी इस रोग के प्रसार को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ाते हैं। समाज में यह भ्रांति आज भी बनी हुई है कि कुष्ठ रोग ईश्वरीय दंड या शाप है, जबकि यह पूरी तरह इलाज योग्य जीवाणु जनित रोग है।
संक्रमण और कारण
कुष्ठ रोग माइकोबैक्टीरियम लेप्री नामक बैक्टीरिया से होता है जो कुष्ठ रोग संक्रमित व्यक्ति की नाक या मुंह से खांसने-छींकने के दौरान निकली सूक्ष्म बूंदों के जरिए फैलता है। बिना इलाज वाले रोगी के साथ लम्बे समय तक नज़दीकी संपर्क रहने से संक्रमण की संभावना बढ़ती है। बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम होने और परिवार में अधिक समय तक संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहने के कारण वे जल्दी संक्रमित हो जाते हैं। कई बार बच्चे बिना किसी लक्षण के संक्रमित रहते हैं, जिससे रोग की पहचान और उपचार में कठिनाई होती है। भारत में अभी तक ऐसा आसान परीक्षण उपलब्ध नहीं है जो लक्षणहीन संक्रमण को पहचान सके। बच्चों में इस संक्रमण के पहले लक्षण औसतन पांच से दस वर्ष के अंतराल में दिखाई देने लगते हैं। उनकी आयु उस समय लगभग दस से चौदह वर्ष की होती है।
लक्षण और प्रभाव
त्वचा पर हल्के पीले या गुलाबी धब्बे दिखना, उनमें संवेदना का कम होना तथा नसों की क्षति से मांसपेशियों की कमजोरी और विकृति होना इसके प्रमुख लक्षण हैं। इलाज न मिलने पर हाथ-पैरों में स्थायी विकलांगता हो सकती है, परंतु समय रहते उपचार मिलने पर रोग पूरी तरह ठीक हो सकता है।
उपचार और बचाव
कुष्ठ रोग के लिए प्रभावी मल्टी ड्रग थेरैपी (एमडीटी) उपलब्ध है , इलाज शुरू होने के तीन दिनों में ही बैक्टीरिया मर जाते हैं, जिससे रोगी दूसरों को संक्रमित नहीं कर पाता। दवा का पूरा कोर्स लेने से 99 फीसदी रोगी पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं। संक्रमण से बचाव के लिए रोगी के परिवार या नज़दीकी संपर्क में रहने वालों को रिफैम्पिसिन की एक खुराक दी जाती है, जो लगभग दो वर्षों तक 60 फीसदी सुरक्षा देती है। इसके अलावा बीसीजी टीका लगभग 50 फीसदी और भारत में विकसित एमआईपी (एमआईपी) वैक्सीन बीसीजी से बेहतर व दीर्घकालिक प्रतिरक्षा प्रदान करती है।
बच्चों में उपचार की चुनौतियां
दस वर्ष से अधिक उम्र या 40 किलोग्राम से अधिक वज़न वाले बच्चों के लिए एमडीटी पैक उपलब्ध है, परंतु छोटे बच्चों के लिए दवा की खुराक उनके वजन के अनुसार निर्धारित करनी पड़ती है। गोलियां तोड़कर देना कठिन होता है और बच्चे दवा निगलने में कठिनाई महसूस करते हैं, जिसके कारण उनका इलाज अक्सर अधूरा रह जाता है। अतः बाल-अनुकूल दवा रूपांतरण की आवश्यकता है।
रोकथाम के प्रयास और लक्ष्य
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2030 तक कुष्ठ रोग के उन्मूलन का लक्ष्य रखा है, जबकि भारत ने 2027 तक इसे समाप्त करने का संकल्प लिया है। कुछ देशों ने उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है।
भविष्य की दिशा
कुष्ठ रोग को लेकर अपने 2027 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत के लिए आवश्यक है कि लक्षणहीन संक्रमण की पहचान हेतु आसान और सटीक टेस्ट उपलब्ध कराना चाहिए। बच्चों के लिए अनुकूल दवा की उपलब्धता सुनिश्चित हो। कुष्ठ रोग ग्रस्त क्षेत्रों में भारत में बनी एमआईपी वैक्सीन का भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए। जन-जागरूकता अभियान चलाना चाहिए ताकि अभिभावक बच्चों में प्रारंभिक लक्षण दिखने पर तुरंत चिकित्सकीय सहायता लें। कुष्ठ रोग से बचने के लिए ऐसी दवा/टीके का इस्तेमाल करना चाहिए जो अधिक प्रभावशाली हो।
कुष्ठ रोग को लेकर सामाजिक धारणा बदलना अत्यंत आवश्यक है। आज भी समाज में रोगियों के प्रति अस्वीकार और डर की भावना है। यह मानसिक कलंक अक्सर शारीरिक विकृति से भी अधिक पीड़ादायक होता है। स्वास्थ्यकर्मी, शिक्षक, समुदाय और मीडिया की भूमिका इसमें महत्वपूर्ण है ताकि यह संदेश फैले कि कुष्ठ रोग संक्रामक ज़रूर है, पर उपचार योग्य और पूर्णतः ठीक होने वाला रोग है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों की सदियों से चली आ रही छवि को बदलने और इनके प्रति हो रहे समाज विरोधी व्यवहार का खात्मा करने के प्रयास जारी हैं। परंतु इस दिशा में सफलता तभी संभव है जब समाज एकजुट होकर इस रोग से जुड़े भय और भेदभाव को समाप्त करे तथा प्रत्येक संक्रमित बच्चे को समय पर उपचार और सम्मान दोनों मिले।
-लेखक आईसीएमआर के महामारी विज्ञान एवं संचारी रोग विभाग के पूर्व प्रमुख हैं। वर्तमान में ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर ज़ीरो लेप्रोसी से जुड़े हैं।
