सावधानी ही बचाव जानलेवा रेबीज़ से
कुत्ते, बिल्ली आदि के काटने से जानलेवा रेबीज़ रोग हो सकता है जो अभी लाइलाज है। जानवर के काटने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लें। तय समय पर वैक्सीन लगवाई जाए तो रेबीज से बचाव संभव है। जानिये इस बारे में दिल्ली स्थित इंटरनल मेडिसिन फिजिशियन डॉ. राहुल नागर से रजनी अरोड़ा की हुई बातचीत।
रेबीज़ एक जानलेवा जूनोटिक वायरल बीमारी है जो लायसा न्यूरोट्रॉफिक वायरस संक्रमण से होती है। रेबीज कुत्ते, बिल्ली, बंदर, चमगादड़, गाय-भैंस, चूहों, लोमड़ी, भेड़िया जैसे वार्म ब्लडेड स्तनधारी जानवरों से होती है। इसके इलाज के लिए कोई एंटी-वायरल मेडिसिन अभी विकसित नहीं हुई। इसका मरीज 8-10 दिन तक ही जिंदा रह पाता है। लेकिन किसी जानवर के काटने पर तुरंत डॉक्टर को कंसल्ट किया जाए और वायरस के इंक्यूबेशन पीरियड में समुचित वैक्सीन लगवाई जाएं ,तो रेबीज से बचाव हो सकता है। भारत में ज्यादातर कुत्ते या बिल्ली के काटने से रेबीज होती है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के हिसाब से रेबीज़ से प्रतिवर्ष दुनिया में 55 हजार मौतें होती हैं।
Advertisementरेबीज होने की प्रक्रिया
जब उक्त वायरस से ग्रसित जानवर या रेबिड दूसरे जानवर को काटता है, तब ये वायरस उसके स्लाइवा या लार के माध्यम से दूसरे जानवर में ट्रांसमिट हो जाते हैं। रेबिड जानवर जब किसी मनुष्य को काटता है, या अपने नाखूनों से उनकी त्वचा पर स्क्रैच डालता है या फिर उसकी चोट, घाव, खरोंच को चाटता है तो उसके स्लाइवा, नाखूनों के माध्यम से रेबीज वायरस मानव शरीर में ट्रांसमिट हो जाते हैं। वायरस शरीर में मौजूद तंत्रिकाओं के माध्यम से स्टीमुलेट होकर ब्रेन तक पहुंचते हैं। वहां बड़ी तेजी से मल्टीप्लाई होकर तंत्रिका तंत्र यानी सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर अटैक करते हैं और व्यक्ति को रेबीज का शिकार बनाते हैं।
इंक्यूबेशन पीरियड होता है अलग
रेबिड जानवर के काटने और रेबीज के लक्षण आने के बीच का समय यानी इंक्यूबेशन पीरियड अलग-अलग होता है। आमतौर पर यह पीरियड 1-4 सप्ताह का होता है, कुछ मामलों में यह 6 महीने या उससे अधिक समय भी ले लेता है। रेबिड जानवर अगर मरीज के पैरों पर काटने के बजाय कंधे, मुंह या सिर के आसपास काटता है, तो मरीज रेबीज का जल्दी शिकार हो जाता है।
क्या हैं लक्षण
न्यूरो-इनवेसिव वायरल बीमारी होने के कारण पीड़ित व्यक्ति नॉर्मल नहीं रह पाता। एक बार जब रेबीज के लक्षण मरीज में दिखने शुरू हो जाते हैं, तो उसे बचाया नहीं जा सकता। मरीज को शुरू के एक-दो दिन में बुखार, भूख न लगना, कमजोरी, चिड़चिड़ापन होता है। जानवर काटने से हुए जख्म में तेज दर्द, जलन और इचिंग रहती है। फिर 2-3 दिन बाद न्यूरॉजिकल सिम्टम शुरू होते हैं जैसे- मानसिक परेशानी, मतिभ्रम, अनिद्रा, आक्रामक बिहेवियर, सांस लेने में परेशानी, हाइड्रोफोबिया। कुछ निगलना मुश्किल हो जाता है। आंशिक पक्षाघात, बेहोशी, हृदय काम करना बंद कर देता है, मरीज कोमा में चला जाता है और आखिर में 6-10 दिन में मौत हो जाती है।
क्या करना चाहिए
रेबिड जानवर के काटने पर कुछ लोग हल्दी, तेल या मिर्च जख्म पर लगा लेते हैं- जो गलत है। इसके बजाय सबसे पहले जख्म को साबुन और नल के बहते हुए पानी से 10-15 मिनट लगातार धोना चाहिए। वॉश करने के बाद जख्म को डिटोल या आफ्टर शेव से साफ कर लें। तुरंत मरीज को अस्पताल या डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए और 24 घंटे में वैक्सीनेशन करा लें।
ये है इलाज
सबसे पहले डॉक्टर जानवर और मरीज की हिस्ट्री जानते हैं। यह जानने के लिए कि जानवर रेबिड है या नहीं, तकरीबन 10 दिन तक उसे वॉच करने को कहते हैं। अगर वो जानवर रेस्टलैस होकर इधर-उधर घूमता है या बेवजह दूसरों को काटता है तो समझा जाता है कि रेबीज संक्रमित है और 10 दिन में उसकी मौत हो जाती है। लेकिन अगर वो जानवर 10 दिन बाद भी हैल्दी रहता है, तो माना जाता है कि मरीज को रेबीज संक्रमण नहीं हुआ है और उसको दी जा रही एंटी रेबीज वैक्सीन बंद कर दी जाती हैं।
रेबीज से बचाव के लिए मरीज को पोस्ट-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस वैक्सीन दी जाती हैं। सरकारी अस्पतालों में इन्हें मरीज के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है। इसमें दो तरह के इंजेक्शन लगाए जाते हैं
एंटी रेबीज वैक्सीन
यह वैक्सीन इंटरा मस्कुलर शेड्यूल और इंटरा डर्मल शेड्यूंल दो तरीके से मरीज की बांह के ऊपरी हिस्से और जांघ के सामने वाले हिस्से में लगाई जाती है। इंटरा डर्मल शेड्यूल में वैक्सीन जानवर के काटने वाले दिन यानी 0 डे पर स्किन में लगाई जाती है। उसके बाद मरीज को 3, 7, 14 और 28वें दिन वैक्सीन दी जाती है। एंटी रेबीज इम्युनोग्लोब्यूलिन सिरम- यह सिरम उन्हें दिया जाता है जिन्हें जानवर ने मुंह या आस-पास काटा है या बहुत गहरा घाव है। डॉक्टर वैक्सीन के साथ-साथ यह सिरम भी देते हैं। इनके अलावा पालतू जानवरों व ऐसे लोगों को जो रेबीज होने के हाई रिस्क में हों जैसे- वेटरनरी डॉक्टर, जानवर हैंडलर वर्कर्स, लेबोरेटरी पर्सनल, एनिमल लवर्स इन्हें भी प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस वैक्सीन जरूर लेनी चाहिए।