दुर्लभ कला धरोहर की देश वापसी का अभियान
आजादी के बाद देश से विश्व प्रसिद्ध प्राचीन दुर्लभ मूर्तियां धीरे-धीरे गायब होने लगी थीं। दरअसल देश में सक्रिय मूर्ति माफिया तस्करी कर इन्हें कई दशकों तक विदेशों में ले जाकर बेचता रहा। यूनेस्को का अनुमान है, 1947 से 1989 तक 50 हजार कला धरोहरें जिनमें ज्यादातर मूर्तियां थीं, देश से बाहर ले जायी गयी। लेकिन बीते कुछ सालों से इनकी तलाश व वापसी की सजगता आयी। बहुत सी ऐसी धरोहरों को भारत वापस लाया गया लेकिन ज्यादातर काम अभी बाकी है।
आजादी के बाद जहां नई-नई बनी आजाद भारत की सरकार कई अलग-अलग तरह की समस्याओं में उलझी हुई थी, ठीक उसी समय देश में एक मूर्ति माफिया सक्रिय हुआ और धीरे-धीरे करके देश की सांस्कृतिक धरोहरों को चुपचाप विदेशों को बेचता रहा। इस तरह सदियों से देश की पहचान रहीं मूर्तियां धीरे-धीरे यहां से गायब होने लगीं। हालांकि लंबे समय तक इन मूर्तियों और दूसरी कला धरोहरों के संबंध में बहुत सारे व्यापक डाटा उपलब्ध नहीं थे और आज भी पूरी तरह से नहीं हैं। क्योंकि देश की इन कला धरोहरों का पहले से कोई डॉक्यूमेंटेशन नहीं हुआ था। ऐसे में यह कह पाना मुश्किल है कि आजादी के बाद से अब तक कुल कितनी कला धरोहरें विशेषकर मूर्तियां देश से गायब होकर विदेश पहुंच गई हैं। मगर यूनेस्को के लगाये गये एक अनुमान के मुताबिक, भारत से 1947 से 1989 तक 50 हजार से ज्यादा कला धरोहरें जिनमें ज्यादातर मूर्तियां थीं, चोरी या तस्करी के जरिये देश से बाहर चली गई थीं, जिनमें अभी भी बहुत बड़े पैमाने पर यह नहीं पता कि वह कहां हैं। हालांकि पिछले कुछ सालों से अब देश-समाज के स्तर पर अपनी कला धरोहरों के प्रति एक तरह की सजगता आयी है जिससे अब बाहर गईं इन कला धरोहरों के बारे में पता लगने लगा है। उनमें से बहुत सी धरोहरों को सरकार और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की कोशिशों से भारत वापस लाया गया है और बहुत सी कला धरोहरों के वापस लाये जाने की कोशिशें हो रही हैं।
Advertisementचोरी गईं कुछेक कला धरोहरें आयी वापस
आजादी के बाद के पिछले आठ दशकों में चोरी हो गईं विश्व प्रसिद्ध भारतीय कला धरोहरों विशेषकर मूर्तियों में एक से एक नामी मूर्तियां शामिल रही हैं। मसलन 1970 के दशक में नटराज की प्रसिद्ध मूर्ति, जो चोलकालीन कांस्य प्रतिमा है, तमिलनाडु के चिदंबरम के मंदिर से चोरी हो गई और 1970 के दशक में यह ऑस्ट्रेलिया की नेशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया पहुंच गई, जिसे 2014 से 2016 के बीच किये गये सक्रिय प्रयासों के तहत वापस लाया गया। इसी तरह तमिलनाडु से ही चोलकालीन अर्द्धनारीश्वर की कांस्य प्रतिमा यहां के विरुद्धाचल क्षेत्र से चोरी होकर ऑस्ट्रेलिया कब पहुंची, ठीक-ठीक पता नहीं है, पर 2015 में भारत सरकार के सक्रिय प्रयासों से ऑस्ट्रेलिया ने इसे हमें लौटाया है। बहरहाल आजादी के बाद जो मशहूर मूर्तियां भारत से गायब हुई हैं, उनमें तमिलनाडु से ही महिषासुर मर्दनी की मूर्ति व उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के लोहारी गांव से योगिनी की मूर्तियां 1980 के दशक में गायब हो गईं, ये दसवीं शताब्दी की दुर्लभ मूर्तियां थीं। इनमें से कुछ अमेरिका और कुछ यूरोप के संग्रहालयों में मिलीं और 2021-22 के बाद इन्हें भारत वापस लाया गया।
मूर्तियों का बड़ा तस्कर अब जेल में
इसी तरह मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र में स्थित लक्ष्मी-नृसिंह मूर्ति, बिहार की कई जगहों से बुद्ध की मूर्तियां, तमिलनाडु के तिरुमंके आलवार की 16वीं शताब्दी में बनी कांस्य प्रतिमा आदि सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों कला धरोहरें चुपके-चुपके देश से गायब हो गईं। बीते उन्नीस सौ साठ से नब्बे के दशक में ‘मूर्तियों का वीरप्पन’ के नाम से मशहूर हुआ आर्ट डीलर सुभाष कपूर एक खूंखार मूर्ति तस्कर के रूप में उभरा, जो मूलतः आर्ट डीलर था। माना जाता है कि वह चोरों, तस्करों आदि के जरिये हजारों मूर्तियां देश से बाहर पहुंचाने का जिम्मेदार रहा। फिलहाल यह तमिलनाडु की तंजावुर की एक जेल में बंद है। लेकिन इस एक व्यक्ति ने अकेले ही भारत की कला धरोहरों को इस कदर चोरी और तस्करी के जरिये नुकसान पहुंचाया है कि भारत की कला विरासत खोखली पड़ गई।
अधिकांश कार्य अभी शेष
हालांकि जितनी कला धरोहरें देश से बाहर जा चुकी हैं, उनका अभी 5 फीसदी हिस्सा भी लौटकर वापस नहीं आ सका, लेकिन आजादी के बाद से साल 2014 तक, जहां विदेश ले जायी गई कला धरोहरों को वापस लाना बहुत ही मुश्किल, लगभग असंभव जैसा काम था। मगर पिछले करीब दो दशकों में सरकार ने विदेश ले जायी गईं कलाकृतियों को वापस लाने के काम में रुचि ली है, जिस कारण हाल के सालों में बड़ी संख्या में ये कलाकृतियां वापस लायी जा सकी हैं। अगर प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो और संसद में पूछे गए सवालों के दिये गए जवाबों के आधार पर अनुमान लगाएं तो जहां आजादी के बाद से 2013 तक बमुश्किल 20 कला धरोहरें ही विदेशों से वापस लाई जा सकीं थीं, वहीं 2014 से अगस्त 2024 तक 600 से ज्यादा कला धरोहरें विशेषकर देश की मशहूर मूर्तियां वापस लायी जा चुकी हैं। करीब 300 ऐसी ही कला धरोहरों को लाये जाने की कोशिश हो रही है।
4 सालों में 600 कलाकृतियों की हुई वापसी
साल 2022-23 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया गया था कि 11 देशों से वापसी के लिए करीब 72 मूर्तियां वापसी की प्रक्रिया से गुजर रही हैं और 2020 से 2024 के बीच अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, इटली और थाइलैंड से कुल 600 कलाकृतियां वापस लायी जा चुकी हैं, जिनमें से कई कलाकृतियों की डिटेल अभी तैयार नहीं की गई। सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले दस सालों में सैकड़ों मूर्तियां गायब हो चुकी हैं, जिनमें कुल 31 से 35 मूर्तियों के बारे में ही विवरण उपलब्ध है। दरअसल, आजादी के बाद से हमारे यहां न तो इन महान कला धरोहरों के प्रति सजगता थी और न ही समय और सुविधा। दूसरी तरफ दूसरे विश्व युद्ध के बाद धनी हुए कई पश्चिमी देशों ने अपने यहां कलाकृतियों का जो संग्रह शुरू किया, उसके तहत हमारे यहां से हजारों कलाकृतियां चोरी-छुपे इन देशों के कला संग्रहों तक पहुंच गई।
सजगता के सकारात्मक परिणाम
इस तरह लगातार देश की सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति पसरी उदासीनता से देश का सांस्कृतिक खजाना लगातार खाली होता गया। इधर करीब दो दशकों से देश की सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति कुछ सजगता आयी है और इन्हें चोरों-तस्करों से बचाने के लिए तमिलनाडु जैसे राज्य में विशेष पुलिस बल का भी गठन किया गया है। साथ ही इस दौरान यानी 2014 से अगस्त 2024 तक दुनिया के विभिन्न देशों से 345 मूर्तियां वापस लायी जा सकी हैं। इनमें से 40 मूर्तियां ऑस्ट्रेलिया से, 283 अमेरिका से, 16 मूर्तियां ब्रिटेन से, 2 कनाडा से और 1-1 जर्मनी, सिंगापुर, इटली और थाइलैंड से वापस लायी गई हैं। साल 2014 से 2024 के अंत तक अमेरिका से 578 धरोहरें जिसमें बड़े पैमाने पर मूर्तियां शामिल हैं, वापस लायी गई हैं। लेकिन 2024 के एक सरकारी डाटा के मुताबिक 72 धरोहरें 11 देशों से लायी जानी थीं, जिनमें अभी भी 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं लायी जा सकी हैं।
विभाजन से हुई बड़ी क्षति
आजादी के बाद से अकेले पाकिस्तान में 10-15 हजार मूर्तियां, जिनमें 90 फीसदी से ज्यादा मंदिरों में रखी हुई मूर्तियां थीं, या तो तोड़ डाली गई हैं या तस्करों और चोरों के जरिये इन्हें बाहर ले जाकर बेच दिया गया है। इस तरह अगर देखा जाए तो आजादी के बाद बंटवारे के चलते सिर्फ देश के लोग ही इधर से उधर विभाजन की त्रासदी का शिकार नहीं हुए बल्कि बड़े पैमाने पर देश की कला धरोहरों के साथ भी बहुत बुरा सलूक हुआ है। सकारात्मक है कि विदेशों में चोरी गई कलाकृतियों को वापस लाये जाने के लिए सजगता और सक्रियता बढ़ी है। फिर भी देश से जितने बड़े पैमाने पर कला धरोहरों की चोरी और तस्करी हो चुकी है, उससे यह कहना निराशाजनक टिप्पणी नहीं होगी कि आज भी हमारे समाज में कला और सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति वह प्रेम देखने को नहीं मिलता, जो दूसरे कलाप्रेमी देशों में मिलता है।
आजादी के इतने साल गुजर जाने के बावजूद हम कलाकृतियों के प्रति कोई बहुत संवेदनशील रवैया नहीं विकसित कर पाए। यह अलग बात है कि अब राष्ट्रवादी भावना के चलते विदेश गई कला धरोहरों को वापस लाने के प्रयास में समाज व संगठन जुट गये हैं और इसमें सफलता भी मिल रही है। हालांकि इस सजगता को हम आगे कितना बरकरार रख पाएंगे और अपनी कितनी धरोहरों को बचा सकेंगे, इस सवाल का जवाब इसमें छिपा है कि हम देश के लोगों के अंदर अपनी इन कलाकृतियों के प्रति कितनी संवेदनशीलता और सम्मान विकसित कर पाते हैं। -इ.रि.सें.