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सावधानी से टालें सेरेब्रल पाल्सी का खतरा

बच्चों में शारीरिक-मानसिक रोग

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देश में बड़ी संख्या में बच्चे सेरेब्रल पाल्सी रोग की चपेट में हैं। यह विकार गर्भावस्था में या जन्म के समय शिशु के ब्रेन को कोई क्षति पहुंचने के कारण होता है। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कुछ एहतियात बरतें तो इसके खतरे को कम किया जा सकता है। इस बारे में नोएडा स्थित वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रियंका जैन से रजनी अरोड़ा की बातचीत।

आपको अपने आसपास ऐसे कई बच्चे मिल जाएंगे-जन्म से ही जिनका विकास अपनी उम्र के दूसरे बच्चों से काफी धीरे होता हैं। उनके हाथ-पैरों में काफी अकड़न रहती है जिसकी वजह से देर से चलना शुरू करते हैं। उनका चलना-फिरना कठिन हो जाता है, पंजों के बल चलते हैं। ध्यान न दिए जाने पर यह विकार विकलांगता का रूप ले लेता है। मेडिकल भाषा में कहा जाए तो ऐसे बच्चे सेरेब्रल पाल्सी डिजीज के शिकार होते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनिया भर में 500 बच्चों में 1 बच्चा सेरेब्रल पाल्सी डिजीज का शिकार होता है।

सेरेब्रल पाल्सी न्यूरोलॉजिकल जीरो-डेवलपमेंट डिसआर्डर है। बच्चे में यह शारीरिक विकार गर्भावस्था में या जन्म के समय बच्चे के ब्रेन को किसी भी तरह की क्षति पहुंचने के कारण होता है। इससे बच्चे के ब्रेन में जरूरी ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती। ब्रेन के कुछ टिशूज क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। क्षतिग्रस्त ब्रेन शरीर के विभिन्न अंगों को ऑक्सीजन सप्लाई करने में असफल रहता है जिससे वह मसल्स तक अपना मैसेज ठीक तरह पहुंचा नहीं पाता। बच्चे का विकास बहुत धीमा हो जाता है और मसल्स में संकुचन और खिंचाव से विकार आने लगते हैं। ये उम्र के लिहाज से विकास के नियत मानदंडों को प्राप्त नहीं कर पाता है। ऐसे कई बच्चे मानसिक विकलांगता का भी शिकार हो जाते हैं। इनमें बोलने-सुनने संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं। आंखों की मसल्स कमजोर होने के कारण इधर-उधर हिलती रहती हैं या भैंगापन आ जाता है।

रोग के दो प्रकार

मस्कुलर मूवमेंट्स के आधार पर सेरेब्रल पाल्सी डिजीज दो तरह की होती है : स्पास्टिक सेरेब्रल पाल्सी- ब्रेन के क्षतिग्रस्त होने जाने से शरीर की मसल्स तक अपना मैसेज ठीक तरह नहीं पहुंचा पाता। बच्चे के मसल्स एक-दूसरे से जुड़-से जाते हैं और सख्त हो जाते हैं। बच्चा ठीक से चल-फिर नहीं पाता। ज्यादातर बच्चे स्पास्टिक सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित होते हैं। हाइपोटोनिक सेरेब्रल पाल्सी-कुछ मामलों में बच्चे की मसल्स काफी ढीली और लोचदार हो जाती हैं। जिससे बच्चा अपने अंगों पर नियंत्रण नहीं रख पाता।

ये हैं संकेत

सेरेब्रल पाल्सी ग्रस्त बच्चों को उठने-बैठने के तरीकों और अनियंत्रित मस्कुलर मूवमेंट्स से पहचाना जा सकता है। पांच-छह महीने तक अपनी गर्दन नहीं संभाल पाते, 10-11 महीने तक खड़ा होना तो दूर, पाल्थी मारकर नहीं बैठ पाते। हाथों की मसल्स में अकड़न रहने से ज्यादातर मुट्ठियां बांधे रखते हैं। खड़े होने पर टांगें एक-दूसरे को क्रॉस करती हैं। अक्सर पंजे के बल चलते हैं। लेटते वक्त भी हाथ-पैर टेढ़े रहते हैं।

क्या हैं वजहें

रिसर्च से साबित हो चुका है कि सेरेब्रल पाल्सी की वजह गर्भावस्था के दौरान यूटरस में इंफेक्शन से, जन्म के समय या जन्म के बाद लापरवाही बरतने से बच्चे के ब्रेन को किसी तरह का आघात पहुंचना है। अगर गर्भवती महिला को टार्च इंफेक्शन, रूबैला, दौरे पड़ने, खसरा जैसी बीमारी है या फिर ब्लीडिंग ज्यादा हुई हो तो शिशु को सेरेब्रल पाल्सी का खतरा रहता है। एक कारण है कि कई बच्चे जन्म के 5 मिनट बाद तक रो नहीं पाते। इससे ब्रेन डैमेज हो सकता है। वहीं ऐसे प्री-मैच्योर बच्चे जिनका जन्म के समय वजन बहुत कम हो या पीलिया की गिरफ्त में आ जाएं उन्हें खतरा रहता है।

सजगता जरूरी

सबसे जरूरी है कि पैरेंट्स अपने बच्चे के शारीरिक विकास और मस्कुलर मूवमेंट्स पर नजर रखें। अगर वे अपने बच्चे में दूसरे बच्चों की अपेक्षा कोई कमी या देरी नोटिस करते हैं, तो अनदेखी नहीं करनी चाहिए। पेरैंट्स अक्सर यह सोचकर टाल जाते हैं कि कुछ बच्चे देर से सीखते हैं, वो भी कर लेगा। लेकिन यह सोच रखना जोखिमभरा है। बच्चे के विकास और गतिविधियों के मानदंड हैं- तीन महीने तक अपनी गर्दन संभालना, 6 महीने तक बैठना या क्रॉल करना, 8-9 वें महीने में खड़ा होने लगना, 10-18 महीने तक चलना शुरू करना।

उपचार की प्रक्रिया

आशंका होने पर बच्चे के एक साल का होने से पहले ही बाल रोग विशेषज्ञ को कंसल्ट करना चाहिए। हालांकि उपचार से सेरेब्रल पाल्सी खत्म नहीं हो सकता। लेकिन गर्भावस्था और प्रसव के दौरान अगर कुछ एहतियात बरते जाएं, तो जोखिम या परेशानियों को कम किया जा सकता है। जैसे- समयपूर्व डिलीवरी होने का अंदेशा हो तो गर्भवती महिला को मैग्नीशियम सल्फेट दें। वहीं डॉक्टर बच्चे की मेडिकल हिस्ट्री, मूवमेंट्स और मसल्स का समुचित चेकअप करते हैं। जरूरत पड़ने पर ब्रेन का एमआरआई और सीटी स्कैन भी किया जाता है। टाइट मसल्स को थोड़ा लोचदार करने के लिए मेडिसिन दी जाती हैं। समुचित विकास के लिए उसे कैल्शियम, मल्टी विटामिन और आयरन मेडिसिन भी दी जाती है। फिजियोथेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी व स्पीच या विज़ुलाइज थेरेपी की जाती है। किया जरते है। इसमें थेरेपिस्ट बच्चों को कार्ड, फोटोग्राफ, पिक्टोरियल बुक्स दिखाते हैं और उसे बोलने के लिए प्रेरित करते हैं। स्थिति गंभीर हो तो उसकी आर्थोपैडिक सर्जरी या सिलेक्टिव डोरसेल राइजोटॉमी सर्जरी भी की जाती है। पेरेंट्स को धीरज रखना और बच्चे की स्पेशल केयर करना बहुत जरूरी है।

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