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मानसून के बाद अब संवारें अपनी बगिया

मानसून सीजन में लगातार पानी थमने के कारण गार्डन या गमलों में लगे कई पौधे खराब हो जाते हैं। ऐसे में इन दिनों घर की बगिया को खास देखभाल की जरूरत होती है। आजकल उनकी जलनिकासी, मिट्टी की देखभाल,...

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मानसून सीजन में लगातार पानी थमने के कारण गार्डन या गमलों में लगे कई पौधे खराब हो जाते हैं। ऐसे में इन दिनों घर की बगिया को खास देखभाल की जरूरत होती है। आजकल उनकी जलनिकासी, मिट्टी की देखभाल, कीट-फफूंदी नियंत्रण के अलावा खाद-पानी देना जरूरी हो जाता है। वहीं खराब प्लांट्स निकालकर नये रोपे जाते हैं।

उत्तर भारत में मानसून लगभग खत्म हो चुका है। बारिश के दिनों में ज्यादा बारिश से पौधों को होने वाले नुकसान और उनके रख-रखाव के लिए अब आपको नये सिरे से देखभाल करने की जरूरत होती है। बारिश के दिनों में ज्यादा पानी के कारण कई पौधे खराब हो जाते हैं, कई सूख चुके होते हैं और जिनके दोबारा हरे होने की संभावना कम होती है। ऐसे में अब उनकी जलनिकासी का ध्यान रखना, पौधों की मिट्टी की देखभाल, उनमें कीट व फफूंदी को नियंत्रित करना जरूरी हो जाता है।

बारिश के बाद पौधों में जलनिकासी में सुधार के लिए गमलों में लगे पौधों या जिन्हें मिट्टी में लगाया गया है, उनकी अच्छी तरह से जांच करें, जिनके ड्रेनेज होल नीचे से बंद हो गये हैं, उन्हें खोल दें ताकि उनकी जड़ों को हवा लग सके। क्योंकि लगातार जड़ों में पानी भरे रहने से पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं।

गुड़ाई करें

कुछ दिनों तक जिन पौधों को जरूरी हो, जिनकी मिट्टी सूखी दिख रही हो, उन्हीं में ही पानी डालें। मिट्टी को ढीला करने के लिए उनमें गुड़ाई करें ताकि पौधों की जड़ों को हवा मिल सके। अगर आपने गार्डन में जमीन पर पौधे लगाए हैं तो पौधों के आसपास की गीली मिट्टी को न तो हाथों से दबाएं और न ही उस मिट्टी पर चलें, क्योंकि चलने से मिट्टी दब जाती है और पौधों की जड़ों को ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती।

साफ-सफाई

गार्डन में गमलों में लगे सारे पौधों की ऐसी टहनियों को हटा दें, जो पीली पड़ चुकी हैं और दोबारा जिनके हरा होने की उम्मीद न हो। मिट्टी गुड़ाई करने के बाद पीली हो चुकी पत्तियों को अलग करें। जमीन पर लगे पौधों में टूटी हुई टहनियों और सड़े पौधों को हटाकर उस जगह की सफाई कर दें ताकि मिट्टी के जरिये पौधों को ऑक्सीजन और सूरज की सीधी धूप मिल सके। ज्यादा बारिश से अगर पौधों से मिट्टी कम हो गई है, बह गई है और उनकी जड़ें दिखने लगी हैं, तो जड़ों को पोषण देने के लिए उनमें खाद मिली मिट्टी अच्छी तरह से भर दें, ताकि जड़ें खुली न दिखें। बारिश के बाद खरपतवार की भी अच्छी तरह सफाई करें, क्योंकि मिट्टी गीली होने के कारण उसकी अच्छी तरह सफाई हो जाती है। खरपतवार को काटें नहीं बल्कि जड़ सहित उखाड़ें। जिन पौधों के इर्दगिर्द ज्यादा पानी जमा है, उसे भी अच्छी तरह से हटा दें। धूप के कारण जिन पौधों की मिट्टी कठोर हो गई है, उस मिट्टी को धीरे-धीरे ढीला करें और पौधों की गुड़ाई करें ताकि उनको हवा लग सके।

कीट नियंत्रण

बारिश के बाद पौधों में कीटों की संख्या बढ़ जाती है, जो उनको नुकसान पहुंचा सकते हैं। जिस दिन खिला मौसम हो यानी धूप निकली हो, नीम का तेल और पानी का घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करें, जो पौधे सड़ गये हैं, उन्हें उखाड़कर कंपोस्ट बिन में खाद बनाने के लिए डाल दें।

सिंचाई व खाद का इंतजाम

यूं तो बारिश के दिनों में पौधों को पानी देने की जरूरत नहीं होती। लेकिन बारिश के बाद कई बार तेज धूप के कारण भी पौधों की मिट्टी सूख जाती है और उनमें पानी की कमी के कारण पत्तियां मुरझा जाती हैं। जब तक मिट्टी गीली है, पौधों को पानी न दें, मिट्टी अच्छी तरह सूखने के बाद ही उनमें पानी डालें। जिस दिन अच्छी धूप हो, मिट्टी सूखी हो, तो मिट्टी में खाद डालें। दरअसल बारिश के दिनों में खाद कम दी जाती है। क्योंकि ज्यादा समय तक खाद वाली मिट्टी में रहकर पौधे खराब हो जाते हैं।

नये पौधे लगाना

बारिश के बाद मिट्टी को अच्छी तरह सूखने में कई दिन लगते हैं। आने वाले दिनों के लिए अपने बगीचे को तैयार करने के लिए पहले मिट्टी को अच्छी तरह सुखाएं और उसके बाद ही उसके आसपास की गीली घास को हटाकर मिट्टी में दो या तीन इंच गड्ढा खोदकर उस मिट्टी की जांच करें। ध्यान रखें कि वह मिट्टी आपके हाथों में अगर चिपकती है तो इसे और सुखाने की जरूरत है। इसे नये पौधे के लिए तैयार करने को और ज्यादा समय के लिए छोड़ दें ताकि यह भुरभुरी हो जाए। इसके बाद पौधे को गड्ढे में डाल दें और थोड़ा पानी देकर नया पौधा लगाएं। गमले में पौधे लगाने की भी यही प्रक्रिया है।

मच्छरों की ब्रीडिंग रोकें

अगर आपने घर में पड़े खाली कंटेनरों में पौधे लगाएं हैं और जिनमें नीचे छोटे ड्रेनेज होल नहीं हैं, उनमें जमा पानी में मच्छर पैदा होने की आशंका रहती है। उन बर्तनों में लगे पौधे से पानी निकालकर जमीन पर डाल दें, ताकि मच्छर पैदा न हों। -इ.रि.सें.

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