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नौ देवी रूपों की उपासना से सद‍्गुण आत्मसात‍् करने का पर्व

शारदीय नवरात्रि

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नवरात्रि का पावन पर्व जहां धार्मिक कर्मकांड और सामाजिक उत्सव का जीवंत उदाहरण है, वहीं आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक जागरण का महापर्व भी है। ये नौ दिन साधक को आत्मनिरीक्षण, तप, संयम और ध्यान की दिशा में प्रेरित करते हैं। नवरात्रि में पूजनीय शक्ति केवल बाहरी देवी नहीं बल्कि अंतर्चेतना की शक्ति भी है। वेदों और उपनिषदों में यह शक्ति प्राण और चेतन ऊर्जा के रूप में वर्णित है। यह समय भक्त की सुप्त आंतरिक शक्तियों को जाग्रत करने का भी है।

भारतीय संस्कृति में पर्व और त्योहार केवल उत्सव का माध्यम नहीं होते। ये आत्मशुद्धि, सामूहिक जीवन को ऊर्जावान बनाने आदि का अवसर भी होते हैं। शारदीय नवरात्रि इन्हीं में से एक हैं। शारदीय नवरात्रि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक यानी नौ दिन के होते हैं। जाे इस बार 22 सितंबर से शुरू होंगे। धार्मिक दृष्टि से यह त्योहार मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की उपासना का विशेष पर्व है, जिसे शक्ति की साधना का चरम अवसर माना गया है।

प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है आधार

शारदीय नवरात्रि की जड़ें हमारे प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलती हैं। मार्कंडेय पुराण में वर्णित ‘देवी महात्म्य’ या ‘दुर्गा सप्तशती’ इसके आधार हैं। एक कथा है कि महिषासुर नामक असुर ने तीनों लोकों को अपने आतंक से त्रस्त कर रखा था। तब देवताओं की प्रार्थना पर तीनों यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की संयुक्त शक्तियों से देवी दुर्गा प्रकट हुईं और नौ दिनों तक महिषासुर तथा उसके असुर सैनिकों से भीषण युद्ध कर दसवीं के दिन उन्होंने महिषासुर का वध कर दिया। इसीलिए शारदीय नवरात्रि के बाद आने वाले दशहरे को विजय पर्व कहा जाता है। एक अन्य धार्मिक मान्यता यह भी है कि श्रीराम ने लंका विजय से पूर्व मां दुर्गा की आराधना इसी समय की थी। अकाल बोधन के रूप में की गई उनकी उपासना से उन्हें विजय प्राप्त हुई, इसीलिए बंगाल में नवरात्रि का विशेष स्वरूप दुर्गा पूजा के रूप में देखने को मिलता है।

नौ रूपों की पूजा का उद्देश्य

वास्तव में शारदीय नवरात्रि मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना है और नवरात्रि का प्रत्येक दिन किसी एक रूप की आराधना को समर्पित है। एक, शैलपुत्री- पर्वतराज हिमालय की पुत्री आरंभ और स्थिरता का प्रतीक है। दूसरा, ब्रह्मचारिणी- तपस्या और संयम का संदेश देने वाली। तीन, चंद्रघटा- साहस और पराक्रम देने वाली। चार, कुषमाण्डा- सृष्टि की अधिष्ठात्री। पांच, स्कंदमाता- मातृत्व और करुणा का रूप। छठवां, कात्यायनी- शक्ति और साहस की देवी। सातवां, कालरात्रि- अंधकार का नाश कर प्रकाश लाने वाली। आठवां, महागौरी- पवित्रता और शक्ति की प्रतिमूर्ति। नौवां, सिद्धिदात्रि- सिद्धियों और दिव्य शक्तियों को देने वाली। शारदीय नवरात्रि में इन नौ रूपों की पूजा केवल देवी स्तुति नहीं है बल्कि जीवन में आवश्यक गुणों को आत्मसात करने का प्रतीक भी है।

व्रत से मन और इंद्रियों पर नियंत्रण

नवरात्रि के दौरान उपवास का विशेष स्थान है। उपवास केवल भोजन का त्याग नहीं है बल्कि मन और इंद्रियों पर नियंत्रण का साधन है। धार्मिक दृष्टि से माना जाता है कि इस समय तपस्या और संयम करने से वांछित मनोकामना पूरी होती है। शारदीय नवरात्रि के नौ दिन व्रत रखने वाले लोग फलाहार, दुग्धाहार लेते हैं या सिर्फ पानी पीते हैं। इस संयम से जहां शरीर शुद्ध होता है वहीं भक्त का मन एकाग्र होता है।

मंदिरों में कर्मकांडीय आयोजन

नवरात्रि के दौरान देशभर के देवी मंदिरों में विशेष रूप से सजावट की जाती है और फिर तरह-तरह के कर्मकांडीय आयोजन होते हैं। भक्त मंडपों में देवी मां की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और लोग यहां दिन-रात आरती, भजन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। गुजरात में इस अवसर पर गरबा और डांडिया की परंपरा है, जो पूरे देश में प्रसिद्ध है। डांडिया और गरबा शारदीय नवरात्रि को लोकनृत्य और सामूहिक आनंद की पराकाष्ठा में ले जाते हैं।

सत्य-धर्म की जीत का प्रतीक दशहरा

नवरात्रि के अंतिम दिन दशहरा या विजय दशमी का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से यह असत्य पर सत्य की विजय है। अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय का यह प्रतीक माना जाता है। इस दिन नवरात्रि पर शुरू होने वाली रामलीलाओं का समापन होता है और रावण दहन के साथ लोग एक दूसरे को बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देते हैं। इस तरह शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों का धार्मिक और कर्मकांडीय उत्सव पूर्ण होता है।

घट स्थापना और अखंड ज्योति

नवरात्रि में विधिपूर्वक घट स्थापना की जाती है। घट या कलश को देवी का प्रतीक मानकर उसमें नारियल, आम के पत्ते और जल भरकर रखा जाता है। घर के पवित्र स्थान पर घट की स्थापना करके अखंड ज्योति जलायी जाती है, जो नौ दिनों तक निरंतर प्रज्वलित रहती है। यह ज्योति भक्त की आस्था और साधना का द्योतक है। पूरे नौ दिनों तक देवी मां की आराधना, दुर्गा सप्तशती का पाठ, भजन कीर्तन और उपवास किये जाने का विधान है। कहीं-कहीं गंध, पुष्प, अक्षत, धूप-दीप आदि से देवी की प्रतिमा या चित्र की पूजा की जाती है। आठवें दिन भक्तों द्वारा कन्याओं को घर में आमंत्रित करके कंजक पूजन किया जाता है। परंपरा के अनुसार कंजिकाओं यानी कन्याओं को देवी का साक्षात स्वरूप मानकर भोजन कराया जाता है और उपहार दिये जाते हैं।

लोक अनुष्ठान और अंतर्साधना का जागरण

रौशन सांकृत्यायन

भारतीय जीवन दर्शन में बाह्य अनुष्ठान और आंतरिक साधना के बीच गहरा संबंध है। शारदीय नवरात्रि इस विशेष स्थिति का अनुपम उदाहरण हैं। जहां एक ओर यह पर्व धार्मिक कर्मकांड और सामाजिक उत्सव का जीवंत उदाहरण होता है, वहीं दूसरी ओर आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक जागरण का महापर्व भी होता है। शारदीय नवरात्रि का नौ दिनों का समय साधक को आत्मनिरीक्षण, तप, संयम और ध्यान की दिशा में प्रेरित करता है। इस नवरात्रि में जिस शक्ति की पूजा होती है, वह केवल बाहरी देवी नहीं बल्कि अंतर्चेतना की शक्ति भी है। वेदों और उपनिषदों में शक्ति को प्राण और चेतन ऊर्जा के रूप में देखा गया है। प्रत्येक मनुष्य के भीतर अनेक सुप्त शक्तियां होती हैं, जैसे- ज्ञान की शक्ति, साहस की शक्ति, करुणा की शक्ति और विवेक की शक्ति। शारदीय नवरात्रि दरअसल इन्हीं आंतरिक शक्तियों को जाग्रत करने का चरम अवसर होता है।

नवरात्रि में साधना के तीन भाग

शारदीय नवरात्रि की साधना को अध्यात्म की दृष्टि से तीन हिस्सों में बांटा गया है। सत्व की शुद्धि, पहले तीन दिन साधक अपने भीतर की आसुरी वृत्तियों का नाश करता है। यह काली स्वरूप की उपासना है, जो अज्ञान और भय को नष्ट करती है। फिर अगले तीन दिन व्यक्ति शक्ति का संचयन करता है यानी बाद के तीन दिन लक्ष्मी स्वरूप साधना की जाती है। यह साधना हमें साहस, समृद्धि और आत्मबल देती है, जबकि अंतिम तीन दिनों तक शारदीय नवरात्रि की आराधना वास्तव में ज्ञान का जागरण होती है। इन अंतिम तीन दिनों में भक्त, देवी मां के सरस्वती स्वरूप की उपासना करते हैं। इससे साधक के भीतर ज्ञान, विवेक और आत्मबोध की धारा प्रवाहित होती है। इस प्रकार नवरात्रि साधक को अंधकार से प्रकाश, अशक्ति से शक्ति और अज्ञान से ज्ञान की यात्रा पर ले जाता है।

दुर्गा सप्तशती के मंत्र जप का महत्व

शारदीय नवरात्रि के दौरान देवी सुक्त और दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जप विशेष महत्व रखता है। यह जप केवल ध्वनि नहीं बल्कि मानसिक एकाग्रता और कंपन का साधन है। आधुनिक वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि मंत्रोच्चार से मस्तिष्क की तरंगें संतुलित होती हैं और मन में शांति आती है। ध्यान की दृष्टि से भी नवरात्रि श्रेष्ठ काल माना जाता है। साधक दीपक की लौ, देवी के स्वरूप या अपने भीतर स्थित चक्रों अर्थात मूलाधार से सहस्रार तक ध्यान करता है। यह साधना धीरे-धीरे मनुष्य को आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर ले जाती है। शारदीय नवरात्रि का उपवास भी केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं है बल्कि एक तरह का आध्यात्मिक तप भी है। भोजन में संयम रखने से इंद्रियां शांत होती हैं और मन ध्यान की ओर उन्मुख होता है। आयुर्वेद के मुताबिक, शारदीय नवरात्रि का यह समय शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त कराने के लिए होता है। इस तरह नवरात्रों के उपवास बाहरी और भीतरी दोनों स्तरों पर शुद्धि का साधन बनते हैं।

कन्या पूजन की दिव्यता

अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन का प्रचलन है। बाहरी रूप से तो यह बालिकाओं का सम्मान है, पर आध्यात्मिक स्तर पर यह निर्मलता और निष्कपटता की आराधना है। बालिका ईश्वर का निकटतम रूप मानी जाती है। क्योंकि उसमें वासना, अहंकार और छल-कपट का अभाव होता है। साधक जब कन्या में देवी मां का रूप देखता है, तो उसे यह बोध होता है कि दिव्यता किसी बाहरी शक्ति में नहीं बल्कि शुद्ध और निर्मल चेतना में होती है।

ध्यान में उतरने का अवसर

नवरात्रि शब्द का शाब्दिक अर्थ है- नौ रातें। भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में रात्रि का विशेष महत्व होता है। चूंकि दिन के समय बाहरी कोलाहल मन को विचलित करता है, पर रात का एकांत मौन और गहराई का अनुभव कराता है। नवरात्रि की रातें साधक को आत्म चिंतन व ध्यान में उतरने का अवसर देती हैं। इसलिए साधु-संत इस अवधि में जप, तप और ध्यान में लीन रहते हैं।

आत्मबोध का लक्ष्य

शारदीय नवरात्रि की आध्यात्मिक साधना का अंतिम लक्ष्य आत्मबोध है। जब साधक देवी मां के नौ रूपों की उपासना करता है, तो वह अपने भीतर के गुणों को जाग्रत करता है- धैर्य, करुणा, साहस, तप, विवेक, विनम्रता, शांति, पवित्रता और ज्ञान। ये गुण जीवन को संतुलित करते हैं और आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप से परिचित कराते हैं। आज की तेज गति वाली जीवनशैली में तनाव, भय और असंतुलन बढ़ता ही जा रहा है। नवरात्रि की आध्यात्मिक साधना आधुनिक मनुष्य को आंतरिक स्थिरता और शांति का मार्ग दिखाती है। कुछ पल मंत्र, जप, ध्यान और मौन में बिताना हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और जीवन को नई दिशा देता है। इस तरह शारदीय नवरात्रि का आध्यात्मिक संदेश यह है कि शक्ति, बाहर कहीं नहीं बल्कि हमारे भीतर ही सुप्त अवस्था में है। आवश्यकता केवल उसे जाग्रत करने की है। नौ दिन की साधना, हमें बाहरी कर्मकांड से भीतर की यात्रा पर ले जाती है, जहां आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है। इसलिए शारदीय नवरात्रि की वास्तविक साधना आध्यात्मिक साधना ही है।

धार्मिक आस्था और पर्यावरणीय संतुलन का सुमेल

नरेंद्र शर्मा

हमारे देश में त्योहारों की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि वह केवल कर्मकांड या धार्मिक अनुष्ठानों तक ही सीमित नहीं रह सकते बल्कि जीवन के हर क्षेत्र से जुड़े हैं। शारदीय नवरात्रि इसका खूबसूरत उदाहरण है। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक साधना, धार्मिक आस्था का अवसर है बल्कि पर्यावरणीय संतुलन, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक एकता के दृष्टिकोण से भी यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। आधुनिक विज्ञान इन पहलुओं को बहुत गहराई से प्रमाणित करता है। नवरात्रि में पूजा-पाठ के लिए प्रयुक्त सामग्री जैसे तुलसी, बेलपत्र, धूप, कपूर, नीम और गंगा जल, ये केवल आस्था के प्रतीक नहीं हैं, इनमें प्राकृतिक रूप से रोगनाशक और वातावरण को शुद्ध करने वाले गुण होते हैं। कपूर और धूप के धुएं में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं, जो वायु में फैले कीटाणुओं को नष्ट करते हैं। इसके अतिरिक्त नवरात्रि में कलश स्थापना का अर्थ भी प्रकृति से जुड़ा होता है। मिट्टी का कलश, उसमें अंकुरित होते जवारे और जल से भरा पात्र धरती तथा जीवनदायी शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। यह परंपरा हमें पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के साथ सामंजस्य का संदेश देती है। आज जब प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती हैं, ऐसे समय पर हमें शारदीय नवरात्रि से सीखना चाहिए कि प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान और उनका संतुलित उपयोग कैसे हमें इस संकट से बचा सकता है।

नवरात्रि उत्सव के मनोवैज्ञानिक पक्ष

शारदीय नवरात्रि मानसिक स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ करने का समय होता है। आधुनिक जीवन की भागदौड़ और तनावभरी दिनचर्या में व्यक्ति अकेलापन, चिंता और अवसाद महसूस करता है। नवरात्रि के सामूहिक उत्सव जैसे गरबा, डांडिया, रामलीला और दुर्गा पूजा पंडाल लोगों को एक साथ लाते हैं। मनोविज्ञान कहता है कि सामूहिक गतिविधियां ऑक्सीटोसिन और डोपामाइन जैसे हार्मोन को बढ़ाती हैं, जिससे आनंद और सुकून की अनुभूति होती है। साथ ही देवी के नौ रूपों की यह आराधना मनोवैज्ञानिक स्तर पर आत्मविश्वास, साहस, करुणा और शांति जैसे गुणों को जगाती है। यह पर्व व्यक्ति को नकारात्मक भावनाओं से उबारकर सकारात्मक सोच की ओर ले जाता है। नवरात्रि समाज में एकता और सामूहिकता की भावना का भी प्रतीक है। इस समय सभी लोग गरीब-अमीर, ग्रामीण-शहरी, स्त्री-पुरुष आदि मिलकर उत्सव मनाते हैं। यह सामाजिक समानता का प्रतीक है। कन्या पूजन की परंपरा समाज में नारी की शक्ति और सम्मान को रेखांकित करती है।

आजीविका की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण

शारदीय नवरात्रि के समय देश के अनेक जगहों पर नवरात्रि मेले लगते हैं। समूचे पूर्वोत्तर भारत में दुर्गा पूजा पंडाल सजाये जाते हैं। उत्सव का माहौल होता है। यह आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण समय होता है। इसमें कारीगरों, कलाकारों, मूर्तिकारों, संगीतकारों और छोटे व्यापारियों को रोजगार मिलता है। पर्व न केवल संस्कृति को जीवित रखते हैं बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को भी सशक्त करते हैं। शारदीय नवरात्रि यही करते हैं। जब हम हंसी-खुशी मिलकर एक समुदाय के रूप में उत्सव मनाते हैं तो यह हमारी सामूहिक स्मृति और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करते हैं। शारदीय नवरात्रि के समय पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग अपने इतिहास, परंपराओं और मूल्यों को याद करते हैं। बच्चे रामलीला, दुर्गा पूजा और गरबा जैसे आयोजनों से सांस्कृतिक रूप से जुड़ते हैं। यह जुड़ाव नई पीढ़ी के मन में अपनी स्थायी जगह बनाता है।

परंपरा का पोषण और प्रकृति की सुरक्षा

आधुनिक समय में शारदीय नवरात्रि से जुड़ी कुछ गतिविधियां जैसे प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां या प्लास्टिक सजावट पर्यावरण को हानि पहुंचाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इसका समाधान यह है कि प्राकृतिक मिट्टी और रंगों से बनी प्रतिमाओं का उपयोग किया जाए और विसर्जन के लिए कृत्रिम तालाब बनाये जाएं। इस तरह परंपरा भी जीवित रहती है और प्रकृति भी सुरक्षित रहती है। आज की पीढ़ी विज्ञान और तकनीक के साथ जीती है। उनके लिए नवरात्रि का संदेश यह है कि आस्था और विज्ञान परस्पर विरोधी नहीं बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं। यह पर्व हमें बताता है कि पर्यावरण की रक्षा, मानसिक शांति और सामाजिक एकता आस्था के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है।

दरअसल, शारदीय नवरात्रि केवल पूजा और कर्मकांडीय उत्सवभर नहीं हैं बल्कि ये पर्यावरणीय संतुलन, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक एकता का संदेश देने वाला पर्व है। इसमें प्रकृति की रक्षा का विज्ञान है और मन की स्थिरता का मनोविज्ञान भी इसमें शामिल है। इसके साथ ही शारदीय नवरात्रि समाज को जोड़ने वाले समाजशास्त्र का भी आधार निर्मित करते हैं। यही कारण है कि शारदीय नवरात्रि भारतीय संस्कृति की सबसे वैज्ञानिक और समग्र परंपराओं में से एक है।

                                                                                                           -इ.रि.सें.

 

 

 

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