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नूंह के मांडीखेड़ा अस्पताल में नवजात का हाथ कटा, HHRC की सख्त, 15 दिन में मांगी रिपोर्ट

Hospital Negligence: हरियाणा के नूंह ज़िले स्थित मांडीखेड़ा नागरिक अस्पताल में हुई एक दिल दहला देने वाली घटना ने प्रदेश की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 30 जुलाई को एक प्रसव के दौरान नवजात शिशु का...
सांकेतिक फोटो
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Hospital Negligence: हरियाणा के नूंह ज़िले स्थित मांडीखेड़ा नागरिक अस्पताल में हुई एक दिल दहला देने वाली घटना ने प्रदेश की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 30 जुलाई को एक प्रसव के दौरान नवजात शिशु का हाथ पूरी तरह कट गया। इस हृदयविदारक घटना पर हरियाणा मानव अधिकार आयोग ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सिविल सर्जन नूंह से 15 दिन में विस्तृत रिपोर्ट तलब की है।

नूंह निवासी सरजीना (पत्नी शकील) को प्रसव पीड़ा के चलते मांडीखेड़ा नागरिक अस्पताल में भर्ती किया गया था। परिवार का आरोप है कि डिलीवरी के दौरान डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की घोर लापरवाही के चलते नवजात का एक हाथ शरीर से पूरी तरह अलग हो गया। इस दर्दनाक स्थिति में भी जब परिवार ने सवाल उठाए, तो अस्पताल कर्मियों ने उनसे अभद्र व्यवहार किया और उन्हें वार्ड से बाहर निकाल दिया। बाद में शिशु को गंभीर स्थिति में नल्हड़ मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया।

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हरियाणा मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ललित बत्रा की अध्यक्षता में गठित पूर्ण आयोग (जिसमें सदस्य कुलदीप जैन व दीप भाटिया भी शामिल हैं) ने कहा है कि यह मामला संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार का सीधा उल्लंघन है। आयोग ने इस घटना को संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार सम्मेलन (यूएनसीआरसी) के अनुच्छेद 6 और 19 का भी उल्लंघन बताया है, जो बच्चों के जीवन, सुरक्षा और सम्मान के अधिकार की गारंटी देता है।

अस्पताल से मांगी इन 5 बिंदुओं पर रिपोर्ट

1. घटना की सटीक परिस्थितियां और शामिल डॉक्टरों/स्टाफ की जानकारी।

2. नवजात का अंग कटने के कारणों की स्पष्ट व्याख्या।

3. इलाज और पुनर्वास के लिए किए गए प्रयास।

4. विभागीय या आंतरिक जांच का विवरण।

5. पीड़ित परिवार से कथित दुर्व्यवहार पर स्पष्टीकरण।

राज्यभर में उठे सवाल

इस मामले ने राज्यभर में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और जवाबदेही पर बहस छेड़ दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह घटना केवल चिकित्सा लापरवाही का मामला नहीं है, बल्कि यह इस बात का भी संकेत है कि किस तरह गरीब और ग्रामीण परिवारों को स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है।

प्रशासनिक हलचल तेज, अगली सुनवाई 26 अगस्त को

आयोग ने अपने आदेश की प्रतिलिपि अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य), महानिदेशक स्वास्थ्य सेवाएं हरियाणा, और नागरिक सर्जन नूंह को भेज दी है। अगली सुनवाई 26 अगस्त 2025 को निर्धारित की गई है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि वह इस मामले में सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करेगा, ताकि राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली में भरोसा और उत्तरदायित्व बहाल हो सके।

“एक नवजात शिशु का जीवन शुरू होते ही ऐसी दुर्घटना होना न केवल चिकित्सा तंत्र की असफलता है, बल्कि यह मानवीय करुणा के अभाव का भी प्रतीक है। ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई ही भविष्य के लिए सबक बन सकती है।” -न्यायमूर्ति ललित बत्रा, अध्यक्ष, हरियाणा मानव अधिकार आयोग

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