मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

Artificial Rain Experiment : दिल्ली में तीसरी बार किया गया कृत्रिम वर्षा संबंधी प्रयोग, 1957 में किया गया था पहला परीक्षण

Artificial Rain Experiment : दिल्ली में करीब 53 साल के अंतराल के बाद एक बार फिर कृत्रिम वर्षा का प्रयोग किया गया। इस बार यह प्रयोग राष्ट्रीय राजधानी के वायु प्रदूषण संकट को कम करने के उद्देश्य से किया गया।...
Advertisement

Artificial Rain Experiment : दिल्ली में करीब 53 साल के अंतराल के बाद एक बार फिर कृत्रिम वर्षा का प्रयोग किया गया। इस बार यह प्रयोग राष्ट्रीय राजधानी के वायु प्रदूषण संकट को कम करने के उद्देश्य से किया गया। भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया कि दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का पहला परीक्षण 1957 के मानसून के दौरान किया गया था।

जबकि दूसरा प्रयास 1970 के दशक की शुरुआत की सर्दियों में किया गया था। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि दिल्ली सरकार ने मंगलवार को आईआईटी-कानपुर के सहयोग से राष्ट्रीय राजधानी के कुछ हिस्सों में कृत्रिम वर्षा कराने के लिए मंगलवार को परीक्षण किया जो इस तरह का तीसरा प्रयोग था तथा अगले कुछ दिनों में और परीक्षणों की योजना बनाई गई है।

Advertisement

अधिकारियों ने बताया कि कृत्रिम बारिश की खातिर रसायनों का छिड़काव करने के लिए विमान ने कानपुर से दिल्ली के लिए उड़ान भरी और मेरठ की हवाई पट्टी पर उतरने से पहले बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग और मयूर विहार जैसे क्षेत्रों में रसायनों का छिड़काव किया। सिरसा ने एक वीडियो बयान में कहा, ‘‘सेसना विमान ने कानपुर से उड़ान भरी। इसने आठ झोंकों में रसायनों का छिड़काव किया और परीक्षण आधे घंटे तक चला।'' राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा कराने के उद्देश्य से किया गया यह परीक्षण, सर्दियों के महीनों के दौरान बिगड़ती वायु गुणवत्ता में सुधार की दिल्ली सरकार की व्यापक रणनीति का हिस्सा है।

प्रत्येक झोंके में छिड़काव किये गए रसायन का वजन दो से 2.5 किलोग्राम था और परीक्षण आधे घंटे तक चला। रसायन का छिड़काव करने का प्रत्येक झोंका दो से ढाई मिनट का था। बादलों में 15 से 20 प्रतिशत आर्द्रता थी।'' यह परीक्षण सर्दियों के महीनों के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में बिगड़ती वायु गुणवत्ता को कम करने के लिए दिल्ली सरकार की व्यापक रणनीति का हिस्सा है। भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) की एक रिपोर्ट के अनुसार 1971 और 1972 में किए गए दूसरे परीक्षण राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला परिसर में किए गए थे जिसमें मध्य दिल्ली का लगभग 25 किलोमीटर का क्षेत्र शामिल था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि उस समय भू-आधारित उत्प्रेरकों से निकलने वाले सिल्वर आयोडाइड कणों ने सूक्ष्म नाभिक के रूप में कार्य किया था, जिनके चारों ओर नमी संघनित होकर वर्षा की बूंदों में परिवर्तित हो गई थी। दिसंबर 1971 और मार्च 1972 के बीच 22 दिनों को प्रयोग के लिए अनुकूल माना गया। आईआईटीएम की रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से 11 दिनों में कृत्रिम वर्षा कराई गई, जबकि शेष 11 दिनों को तुलनात्मक अध्ययन के उद्देश्य से नियंत्रण अवधि के रूप में रखा गया था।

आंकड़ों के प्रारंभिक विश्लेषण से कृत्रिम वर्षा के दिनों में बारिश में वृद्धि की प्रवृत्ति का संकेत मिला जिससे यह पता चलता है कि उपयुक्त मौसम की स्थिति में कृत्रिम वर्षा वास्तव में शुरू की जा सकती है। पिछले कुछ वर्षों में देश भर में कृत्रिम वर्षा पर शोध का विस्तार हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार मद्रास (अब चेन्नई) और पुणे के निकट नए केंद्र स्थापित किए गए जहां जमीन से और विमान के माध्यम से कृत्रिम वर्षा कराई जा सकती थी। आईआईटीएम के अनुसार कृत्रिम वर्षा एक ऐसी तकनीक है जिसमें वर्षा बढ़ाने के लिए बादल बनाने वाले कणों को बादलों में डाला जाता है।

Advertisement
Tags :
1957 Artificial RainAir Pollution CrisisArtificial Rain Experimentcloud seedingCloud Seeding in DelhiDainik Tribune Hindi NewsDainik Tribune newsDelhi Cloud SeedingHindi Newslatest newsMonsoon Crisisदैनिक ट्रिब्यून न्यूजहिंदी समाचार
Show comments