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बिहार को विशेष महत्व के यक्ष प्रश्न

द ग्रेट गेम

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बाढ़ ग्रस्त पंजाब के लिए अपेक्षित से बेहद कम राहत घोषणा के उलट चुनावी राज्य के लिए प्रधानमंत्री की दरियादिली नजर आई। दरअसल, बिहार चुनाव में महिलाओं को भाजपा अपना अहम मतदाता मान रही है। कुछ चुनावोंंं में महिलाओं के लिए केंद्रीय योजनाओं का असर पॉजिटिव रहा भी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बिहार की 75 लाख महिलाओं को भेजी 10-10 हज़ार रुपये की राशि उस दिन खाते में पहुंची जिस रोज पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र में भाजपा शासित केंद्र से 20,000 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की मांग की गई, जोकि बाढ़ प्रभावित लोगों को दी जाने वाली मदद की भरपाई के लिए अत्यंत जरूरी है।

प्रधानमंत्री द्वारा बिहार की महिलाओं को दी एकमुश्त उदार राशि 7,500 करोड़ रुपये की है। इसकी तुलना 1,600 करोड़ रुपये वाले उस राहत पैकेज से करें जिसका वादा प्रधानमंत्री ने लगभग तीन हफ़्ते पहले पंजाब दौरे पर किया था। तब भाजपा सूत्रों का कहना था कि यह तो सिर्फ़ पहली राहत किश्त है, और ज्यादा राशि प्राप्त करने से पहले पंजाब को पहले अपनी ओर से भी काम कर दिखाना होगा, लेकिन बिहार पैकेज के बारे में ऐसे कोई सवाल नहीं पूछे जा रहे हैं। दरअसल, कोई यह सवाल नहीं कर रहा कि अव्वल तो प्रधानमंत्री बिहार की असाधारण महिलाओं को इतनी बड़ी रकम भेज क्यों रहे हैं? कुछ प्रश्न हैं :

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क्या बिहार में बाढ़ आई है जिससे लगभग चार लाख एकड़ में खड़ी धान की फसल बर्बाद हो गई है? क्या कुछ सौ पशु, गायें और भैंसें, जो राज्य की डेयरी सहकारी समितियों और इस कृषि प्रधान राज्य के परिवारों की रीढ़ हैं, लापता हो गए हैं? क्या घर बह गए हैं, स्कूल बेहद क्षतिग्रस्त हो गए हैं, खेत कीचड़-मिट्टी से अट गए हैं, जिन्हें अब ट्रैक्टरों व जेसीबी से साफ़ किया जा रहा है? क्या अंतर्राष्ट्रीय सीमा, जो भारत को पाकिस्तान से जुदा करती है, उस पर बनी बाड़- बिहार में भी नेपाल से लगती एक सीमा है, लेकिन वह खुली है, यानी वहां कोई कांटेदार तार नहीं है - वह बह गई है।

जाहिर है, प्रधानमंत्री की उदारता का कारण है - बिहार में नवंबर में होने वाले चुनाव। बिहार की 6.3 करोड़ महिलाओं पर उनके ध्यान का केंद्र बनने की वजह भी साफ़ है - हर परिवार से एक योग्य महिला अपनी पसंद का रोज़गार शुरू करने के लिए आवेदन कर सकती है, और अगर उसका आवेदन स्वीकृत हो जाता है, तो राशि 2 लाख रुपये तक हो सकती है। प्रधानमंत्री को उम्मीद है कि बिहार की महिलाएं, उनके लिए एक ‘महिला’ मतदाता वर्ग है, जो जाति-पांति से ऊपर उठकर, भाजपा को दिल खोलकर वोट देगा, ठीक वैसे ही जैसा कि देश के बाकी हिस्सों में होने लगा है।

ज़ाहिर है, बिहार के बारे में कुछ तो ख़ास है। वैसे भी कहावत है ः ‘समझदार को इशारा काफी है’। हालांकि पंजाब में भाजपा बाढ़ प्रभावितों की मदद करने में वाकई काफी प्रयास कर रही है -राज्य भर के डेरी सहकारी क्षेत्र के अलावा, ख़ासकर पाकिस्तान की सीमा से लगे छह ज़िलों में गुम हुए दुधारू पशुओं की एवज में नए सिरे से ऋण दिलवाने में सहायता करने में - पार्टी यह भी जानती है कि केंद्र के ख़िलाफ़ पंजाबियों की बढ़ती नाराज़गी दूर करने को अभी बहुत कुछ करना होगा।

कई मायनों में, यह पंजाब के लिए निर्णायक क्षण है। अगर आप छोटे या बड़े स्तर की मदद कर रहे हैं, तो आपकी गिनती होगी। अगर आप नहीं करेंगे, तो जाहिर है नज़रअंदाज रहेंगे। इसीलिए कांग्रेस को ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। बाढ़ से पहले, सड़कों पर सामान्य नागरिक आपको बताता था कैसे वह सत्तारूढ़ ‘आप’ से तंग आ चुका है और 2027 के चुनावों में उसे सबक सिखाएगा, ठीक वैसे ही जैसे उसने 2022 में कांग्रेस को पाठ पढ़ाया और आम आदमी पार्टी के 92 विधायकों को जिताकर भारी-भरकम बहुमत दिया।

दरअसल, लोग कहने लगे थे कि अगर आज पंजाब में चुनाव हो जाएं, तो कोई हैरानी नहीं कि अंदरूनी लड़ाई में उलझे कांग्रेसी आपस में भिड़ जाते - राज्य इकाई में मुख्यमंत्री पद के कम से कम पांच दावेदार हैं। लेकिन, बाढ़ के बाद की कहानी एकदम अलग है। अजनाला से कुलदीप धालीवाल जैसे कुछ ‘आप’ विधायकों ने जिस तरह से अपने साथी पंजाबियों की मदद की है, वह हैरान करने वाला है। हालांकि कुछ अन्य ‘आप’ विधायकों ने शायद ही कोई हाथ-पैर चलाए हों। कांग्रेस इस मामले में बेहद ढीली रही, हालांकि राहुल गांधी कुछ घंटों के लिए आए, गाद भरे खेतों में ट्रैक्टर चलाया और बाढ़ में अपनी साइकिल गंवा चुके एक छोटे बच्चे को गले लगाया (बाद में पार्टी ने उस लड़के को एक नई साइकिल भेंट की।)

इस सबके आलोक में, प्रधानमंत्री मोदी की पंजाब बाढ़ राहत की तुच्छ घोषणा को राज्य एवं केंद्र के बीच स्पष्ट अविश्वास के रूप में देखा जाना चाहिए। इसकी तुलना बिहार में दिखाई दरियादिली से करें। कुछ अनुदार लोग कह सकते हैं कि बिहार पर प्रधानमंत्री की मेहरबानी राज्य में चुनावों की घोषणा से ठीक पहले आई है, इससे पहले कि आदर्श आचार संहिता लागू हो। कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि वह खुद और भाजपा कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं - वर्तमान मुख्यमंत्री और भाजपा के सहयोगी नीतीश कुमार अस्वस्थ हैं, अबकी बार मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे, इसलिए भाजपा का जादू हर हाल में चलना ही चाहिए। जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर की स्थिति बिहार की राजनीतिक बिसात में अप्रत्याशित हो, लेकिन भाजपा के उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर उनका हमला कम घातक नहीं है।

जो भी है। सच तो यह है कि पिछले कई दशकों से जाति आधारित पारंपरिक चुनावी समीकरण को बदलने में पीएम मोदी कामयाब रहे हैं - उन्होंने उज्ज्वला योजना और लखपति दीदी योजना जैसी योजनाओं को आकार देकर सचमुच एक प्रतिबद्ध ‘महिला मतदाता वर्ग’ तैयार कर लिया है। चुनाव वाले राज्यों में भाजपा ने खुलकर कई किस्म की रेवड़ियों से महिला मतदाताओं को लुभाया - हरियाणा में लाडो लक्ष्मी, महाराष्ट्र में लड़की बहन, मध्य प्रदेश में लाडली बहना, दिल्ली में महिला समृद्धि योजना और छत्तीसगढ़ में महतारी वंदना।

2019 के आम चुनाव में, पहली बार, महिलाएं मतदान करने में पुरुषों से आगे निकलीं - 67.18 फीसदी बनाम 67.02 फीसदी - जबकि 1952 में हुए पहले आम चुनाव में, पुरुष मतदाता 63 फीसदी तो महिलाएं 47 फीसदी थी - और एक्सिसमाईइंडिया का एक चुनावी सर्वेक्षण दर्शाता है कि 44 फीसदी पुरुषों की तुलना में 46 फीसदी महिलाओं ने मोदी को वोट दिया। ढर्रे की राजनीति से बंधे नेताओं के लिए, यह खबर और भी बदतर है ःप्रथम, एक्सिसमाईइंडिया ने उत्तर प्रदेश (2022) और मध्य प्रदेश (2023) के चुनावों में पाया था कि अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में महिलाओं ने भाजपा को अधिक वोट डाले। द्वितीय, जहां भाजपा-समर्थक घरों की 73 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्होंने भाजपा के पक्ष में मतदान किया वहीं आश्चर्यजनक यह कि रिवायती तौर पर कांग्रेस-समर्थक रहे घरों में भी 25 फीसदी महिलाएं भाजपा समर्थक बनी बताई गई हैं।

इस लहर की आहट को सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने भांपा था, हालांकि यह एक विवादास्पद प्रश्न है कि वे प्राप्त हुए आंकड़ों के खजाने के साथ कर क्या रहे हैं - उनके 72 सदस्यीय मंत्रिमंडल में केवल सात महिलाएं हैं, जिसमें दो कैबिनेट स्तरीय हैं, निर्मला सीतारमण और अन्नपूर्णा देवी। (वर्तमान लोकसभा में केवल 74 महिला सांसद हैं, जो पिछली लोकसभा से चार कम हैं।) अब कहा जा रहा है कि संसद में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण देने वाला 2023 का कानून 2029 के चुनावों में लागू किया जाएगा, लेकिन फिर पूर्ण परिसीमन होने के बाद, जिससे देश में निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या बढ़ने की संभावना है, स्थिति फिर क्या होगी।

बात वापस बिहार की करें तो राज्य में विशेष गहन पुनरीक्षण चुनाव प्रक्रिया चली हुई है। राजनीतिक दल अपनी ओर से बेहतरीन पेश कर रहे हैं। और प्रधानमंत्री मोदी ने अपना ‘ब्रह्मास्त्र’ चला दिया है। अंत में, इतना कहना काफी है कि देश के बाकी हिस्सों की तरह पंजाब घटनाक्रम को और भी करीब से देखेगा।

लेखिका ‘द ट्रिब्यून’ की प्रधान संपादक हैं।

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