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समर्थन-विरोध के बीच उपजे यक्ष प्रश्न

केएस तोमर संसद की कानून और न्याय समिति के अध्यक्ष भाजपा सांसद सुशील मोदी और स्वास्थ्य राज्यमंत्री एसपी बघेल ने केंद्र सरकार से जनजातीय लोगों को यूसीसी से बाहर रखने की मांग उठाने पर साफ़ कर दिया है कि 2024...

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केएस तोमर

संसद की कानून और न्याय समिति के अध्यक्ष भाजपा सांसद सुशील मोदी और स्वास्थ्य राज्यमंत्री एसपी बघेल ने केंद्र सरकार से जनजातीय लोगों को यूसीसी से बाहर रखने की मांग उठाने पर साफ़ कर दिया है कि 2024 लोकसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा इस मांग को स्वीकार कर सकती है। पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह बयान दे चुके हैं कि धारा 371 के अंतर्गत आने वाले पूर्वोत्तर राज्यों के आदिवासियों की सदियों पुरानी परंपराओं की रक्षा आवश्यक है।

प्रधानमंत्री पहले ही जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए हटा कर संघ के एजेंडे को पूरा कर चुके हैं और राम मन्दिर के विषय में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद मन्दिर का शिलान्यास कर चुके हैं। संघ के एजेंडे में अगला मुद्दा यूनिफॉर्म सिविल कोड है और मोदी सरकार 2024 के चुनावों से पहले इसे भी लागू करने के लिए तैयार है।

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प्रधानमंत्री के इस दावे से कि एक घर में दो कानून नहीं हो सकते, उनकी इस सोच को दर्शाता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के लागू होने से मुस्लिम महिलाओं से हो रहा अन्याय समाप्त हो जाएगा। उन्होंने इस बिल का विरोध करने वालों को मुस्लिम महिलाओं का विरोधी करार दिया है। उन्होंने इस विषय मे उच्चतम न्यायालय का भी हवाला देते हुए कहा है कि न्यायालय भी यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष में है और इसका विरोध नहीं होगा।

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मुख्यमंत्री पुष्कर धामी की उत्तराखंड सरकार द्वारा न्यायमूर्ति रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक वर्ष पहले जो कमेटी बनाई गयी थी उसने यूसीसी पर अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है जिससे लगता है कि य़ह पहाड़ी राज्य जल्द ही इस कानून को लागू कर सकता है। इस प्रकार उत्तराखंड देश का दूसरा राज्य होगा जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होगा क्योंकि 1867 में गोवा में पुर्तगाली शासकों ने ऐसा कानून लागू किया था। स्वतंत्रता के बाद कुछ बदलाव के साथ यह अभी भी वहां लागू है।

भाजपा पुराने सहयोगी अकाली दल को मनाने की रणनीति पर काम कर रही है जो यूसीसी का विरोध कर रहा है। नियमों के अनुसार सिखों के विवाह का अलग कानून था, पंजीकृत करने का प्रावधान है लेकिन कई राज्यों ने इस सम्बंध में अधिसूचना जारी नहीं की है और इन्हें भी हिन्दू विवाह कानून के अंतर्गत ही पंजीकृत किया जा रहा है। समझा जाता है कि नए कानून में जनजातीय लोगों के साथ सिखों को भी इस कानून के दायरे से बाहर रखा जा सकता है। उच्चतम न्यायालय ने एक जनहित याचिका स्वीकार कर ली है जिसमें मांग उठाई गई है कि राज्यों को निर्देश दिए जाएं कि सिखों के विवाह 1909 के आनन्द कारज विवाह कानून के अंतर्गत ही पंजीकृत किए जाएं। साथ ही 2 जुलाई को सिख पर्सनल लॉ बोर्ड का भी गठन किया है जो यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करेगा।

जहां अधिकांश विपक्षी दल यूसीसी का विरोध कर रहे हैं वहीं आम आदमी पार्टी, शिव सेना, शिव सेना उद्धव ठाकरे गुट और बहुसंख्यक समाज पार्टी ने इस प्रस्तावित बिल का समर्थन किया है। मुस्लिम संगठन इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। विपक्ष का मानना है कि इस समय इस बिल को लाने का कारण केवल भाजपा द्वारा 2024 के लोकसभा चुनावों में फायदा उठाना है क्योंकि इस कारण वोटों का ध्रुवीकरण होगा। जून 27 को प्रधानमंत्री ने अपने मध्य प्रदेश दौरे के दौरान इस मुद्दे पर ही ध्यान केंद्रित किया था। य़ह भी समझा जा रहा है कि भाजपा समर्थक कई क्षेत्रीय दल इसका समर्थन करेंगे क्योंकि इस केंद्रीय कानून को कई राज्य ठंडे बस्ते में डाल सकते हैं।

भारत में मुस्लिम समुदाय पर 1937 का मुस्लिम पर्सनल लाॅ (शरीयत) लागू है और यह समुदाय नए कानून को स्वीकार नहीं कर रहा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी प्रस्तावित कानून का विरोध कर रहा है क्योंकि इसका मानना है कि नए कानून के लागू होने से समुदाय से वे हक छिन जाएंगे जो उन्हें पुराने कानून के द्वारा मिले हैं। नए प्रस्तावित कानून मे बहु विवाह को प्रतिबंधित किया गया है लेकिन केवल मुसलमानों में य़ह प्रथा चल रही है। उधर विशेषज्ञों का मत है कि नए कानून को अंतिम रूप देने से पूर्व भारतीय दंड संहिता में संशोधन कर बहु विवाह प्रथा को मुसलमानों समेत सभी समुदायों के लिए प्रतिबंधित किया जा सकता है।

कांग्रेस के साथ द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने संसदीय समिति को अपने अलग-अलग विरोध प्रस्ताव भेजे हैं और बिल का विरोध करने का निर्णय लिया है। इन दलों ने 2018 के इक्कीसवें लॉ कमीशन का हवाला दिया है जिसने इस वक़्त यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू न करने की बात कही है।

स्मरण रहे कि संविधान निर्माता बाबा भीमराव अम्बेडकर का मानना था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड चाहिए लेकिन अभी इसे निज विवेक पर छोड़ा जाए। इसी कारण संविधान में धारा 35 जोड़ी गई थी और इसे संविधान के भाग 4 के नीति-निर्देशक सिद्धांतों में शामिल किया गया था। यूसीसी कानून पर बहस 200 साल पुरानी है और दस्तावेज बताते हैं कि 1840 में इस मुद्दे को देश और समाज के कानूनों पर छोड़ने की बात कही गई थी। 1951 में ही यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बहस चालू हुई थी जब अम्बेडकर ने हिन्दू कोड को लेकर नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दिया था।

नि:संदेह संसद में भी बिल पेश होने पर राजनीतिक दल अपनी-अपनी राजनीतिक आवश्यकताओं के हिसाब से समर्थन या विरोध करेंगे।

लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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