इरावदी म्यांमार का प्रमुख अखबार है। बुधवार को अखबार ने लीड ख़बर बनाते हुए सैन्य शासन के प्रवक्ता जनरल जॉव मिन तुन का बयान प्रकाशित किया है कि जिन कैदियों को मौत की सज़ा दी गई है, उन्हें एक बार नहीं, कई बार फांसी दी जानी चाहिए थी। इस बयान से पहले मंगलवार को म्यांमार विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, अमेरिका और ब्रिटेन की आलोचना का प्रतिकार करते हुए कहा था कि ये देश और संगठन हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं। मतलब, म्यांमार का मिलिट्री जंटा यह चाह रहा है कि वो अपने देश में चाहे जो कुछ करे, दुनिया मूकदर्शक होकर देखती रहे। मिलिट्री जंटा इतना ढीठ क्या चीनी शह की वजह से है?
मृत्युदंड पाने वाले चार लोगों में से एक खो फ्यो ज़ेया थाओ नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के कार्यकर्ता हैं। उन पर आरोप है कि सेना की टुकड़ी पर कई बार हमले कर चुके हैं। यांगून आ रही एक पैसेंजर ट्रेन में पांच पुलिसवालों को गोलियों से उड़ा देने में उनका हाथ रहा था। खो फ्यो को नवंबर, 2021 में गिरफ्तार किया गया था। जनवरी, 2022 में आतंक निरोधक क़ानून के तहत खो फ्यो ज़ेया थाओ को मौत की सज़ा सुनाई गई। मिलिट्री अदालत ने हिप-हॉप स्टार से ‘एनएलडी’ सांसद बने खो जिमी (खो ख्याऊ मिन यू) को सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट के अपराध में सज़ा-ए-मौत दी है। बाकी दो लोगों को फांसी की सज़ा एक मिलिट्री मुखबिर को मार डालने की वजह से सुनाई गई है।
सैन्य अदालत से अब तक 118 लोगों को सजा-ए-मौत मिल चुकी है। उससे अलग पुलिस व सेना द्वारा मारे गये लोगों की बड़ी तादाद है। थाइलैंड के माए सोत स्थित ‘असिस्टेंस एसोसिएशन फॉर पॉलिटिकल प्रिज़नर्स’ ने एक सूची जारी कर जानकारी दी है कि तख्ता पलट के बाद से 1929 लोगों को सैन्य शासन ने मारा है, 11 हज़ार 4 लोग नज़रबंद हैं। 1 फरवरी, 2021 को मिलिट्री जंटा के प्रमुख जनरल मिन आंग हिलेंग ने जब लोकतांत्रिक रूप से चुनी सरकार को भंग किया था, उसके कुछ घंटों बाद उन्होंने अहद किया था कि साल भर में नई पार्टी और सरकार का गठन अपनी देखरेख में कराएंगे। मगर, हुआ उलट।
इस प्रकरण में आसियान बुरा फंसा हुआ है। म्यांमार न उसे उगलते बन रहा है, न निगलते। इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाइलैंड, फिलीपींस, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, वियतनाम, ब्रुनेई जैसे दस देशों का संगठन है ‘आसियान’। आसियान के चार्टर में है कि दसों में किसी सदस्य देश पर मुसीबत आती है, तो उसका मिलकर मुकाबला करेंगे और किसी बाहरी देश का दखल नहीं होने देंगे। कंबोडिया ‘आसियान’ का वर्तमान अध्यक्ष देश है।
मुश्किल यह है कि सिंगापुर चार महीने के भीतर ड्रग तस्करी के अपराध में पांचवें व्यक्ति को मृत्युदंड दे चुका है। ऐसे में आसियान, म्यांमार में मृत्युदंड को मुद्दा बनाये कैसे? सच पूछिये तो आसियान लीडरशिप किंकर्तव्यविमूढ़ है। मलेशिया के विदेश मंत्री सैफुद्दीन अब्दुल्ला ने बयान जारी कर कहा कि म्यांमार की सैन्य अदालत ने जो फैसला सुनाया है, वह मानवता के विरुद्ध है। थाइलैंड में इसका व्यापक विरोध देखा जा रहा है। बैंकाक में म्यांमार दूतावास के समक्ष दो दिनों से लगातार प्रदर्शन हुए हैं।
जकार्ता में 24 अप्रैल, 2021 को आसियान शिखर बैठक हुई थी, जिसमें नौ देशों के शासन प्रमुख और म्यांमार के सैन्य शासक जनरल मिन आंग हिलेंग उपस्थित थे। उस बैठक में म्यांमार ने पांच सूत्री कार्यक्रम में सहमति दी थी। इन पांच बिंदुओं में म्यांमार में हिंसक टकराव पर तत्काल रोक, सभी पार्टियों से संवाद, आसियान द्वारा मानवीय सहयोग, इनके विशेष दूत सभी दलों के लोगों से मिलें, जैसी बातें थीं। जकार्ता बैठक के सवा साल गुज़र गये, जनरल मिन आंग हिलेंग ने पांच बिंदुओं पर कितना अमल किया, उसे लेकर आसियान सदस्यों में निराशा है। ऐसे में बहुत हद तक संभव है कि म्यांमार स्वयं आसियान छोड़ दे, अथवा उसे संगठन से निलंबित करने का फरमान जारी हो।
पिछले साल भारत समेत आठ देशों ने जिस दिन म्यांमार की सैन्य परेड में भाग लिया था, उस दिन सौ लोग मारे गये थे। तब सवाल उठने लगे थे कि क्या भारत प्रतिरोध को कुचल देने वाले सैन्य तानाशाहों का समर्थक है? भारत दूसरी बार भी चुप वाली रणनीति पर चल रहा है। चार लोगों को मृत्युदंड सुनाये जाने के विरुद्ध भारत की ओर से बुधवार तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। पिछले साल भी हम म्यांमार में स्थितियों की ‘समीक्षा’ करते रहे। जब दुनिया के बड़े देश म्यांमार में दमन के विरुद्ध बयान जारी कर चुके, फिर भारत ने लजाते-शर्माते 1 फरवरी, 2021 को आधिकारिक वक्तव्य जारी करते हुए कहा था, ‘म्यांमार की स्थिति को हम मॉनिटर कर रहे हैं। उसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया और क़ानून के शासन को बनाये रखना चाहिए।’
म्यांमार-भारत की 1643 किलोमीटर सीमा मणिपुर, मिजोरम से लगी है। जब से सैन्य शासन लगा है, म्यांमार से पलायन कर हमारी तरफ कितने लोग आये? गृह मंत्रालय इस प्रश्न पर चुप है। 18 मार्च, 2021 को मिज़ोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर सतर्क किया था कि सीमा पर जो कुछ हो रहा है, उससे हम आंखें मूंद नहीं सकते। 20 मार्च, 2021 को मिजोरम से राज्यसभा सांसद के़ वनलालवेना ने जानकारी दी कि म्यांमार से भाग कर आये शरणार्थियों की संख्या हज़ार से अधिक है।
तख्ता पलट के बाद मिजाेरम की तरह मणिपुर में भी हज़ारों की तादाद में शरणार्थी आ चुके थे। उन दिनों राज्य शासन ने ज़िले के कलक्टरों को जो निर्देश जारी किये थे, उससे इसकी पुष्टि होती है। जो बात दिल्ली में ज़ेरे बहस नहीं होती, वो ये कि सीमा पर लापरवाही के कारण साल भर में ही यह संख्या 20 से 30 गुना बढ़ चुकी है। 12 अप्रैल, 2022 को ख़बर आई कि मिज़ोरम सरकार ने म्यांमार से आये 22 हज़ार शरणार्थियों को पहचान पत्र जारी किया है। मिजोरम की 510 किलोमीटर सीमा का जब ये हाल है, तो मणिपुर की सीमा उससे दो गुनी से अधिक है, जो म्यांमार से लगी है।
आप मानकर चलिये कि मणिपुर और मिज़ोरम, दोनों राज्यों में म्यांमार से भागकर आये शरणार्थियों की संख्या लाख से कम नहीं होगी। क्या इन्हें आबोदाना-आशियाना मुहैया कराना भारत के करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ नहीं है? भारत सरकार को चाहिए था कि इस समस्या से म्यांमार के सैन्य शासकों को अवगत कराये। कल को यही शरणार्थी हमारे लिए रोहिंग्या की तरह सिरदर्द होंगे। ये आते लाखों में हैं, मगर इनकी वापसी सैकड़ों में होती है।
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।