काम और जीवन के बीच संतुलन जरूरी
हम अपनी ज़िंदगी का नियंत्रण वापस लें और काम को उसके तय दायरे में ही रखें। यह एक संदेश है कि हम इंसान हैं, मशीन नहीं, और हमें अपने परिवार, दोस्तों और खुद के लिए समय चाहिए। हमें रिचार्ज होने के लिए ‘ऑफ बटन’ दबाने की जरूरत है।
लोकसभा में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ बिल पेश किया गया है, जिसका उद्देश्य कर्मचारियों को काम के घंटों के बाद कार्यालय से जुड़ी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों से डिस्कनेक्ट होने का अधिकार देना है। यह बिल अभी संसद में सिर्फ ‘प्राइवेट मेंबर बिल’ के तौर पर पेश हुआ है, जिसका कानून बनना थोड़ा मुश्किल होता है। पर इसने एक ज़रूरी बहस तो छेड़ दी है।
सीधे शब्दों में, यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि आपकी निजी ज़िंदगी और काम की ज़िंदगी के बीच एक साफ़ सीमा खींची जा सके। यह बिल कर्मचारियों को यह कानूनी अधिकार देता है कि वे काम के घंटों के बाद अपने बॉस या सहकर्मियों के फ़ोन कॉल, ईमेल या मैसेज को नज़रअंदाज़ कर सकें, जिससे उनके निजी जीवन और आराम के समय का सम्मान हो सके। इस बिल में यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई एंटिटी (कंपनी या सोसाइटी) नियमों का पालन नहीं करती है, तो उस पर कर्मचारियों की कुल सैलरी का 1 प्रतिशत जुर्माना लगाया जाएगा।
यह बिल नौकरीपेशा व्यक्तियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह लोगों को तनाव और बर्नआउट से मुक्ति दिलाता है, क्योंकि लगातार ‘ऑन-कॉल’ रहने की स्थिति में दिमाग को सही से आराम नहीं मिल पाता। इस बिल का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करता है। इसके अलावा, यह कानून लोगों को उनका निजी समय वापस दिलाता है, जिससे वे परिवार और दोस्तों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिता सकते हैं। निजी और पेशेवर जीवन के बीच यह संतुलन बेहतर सेहत के लिए ज़रूरी है, क्योंकि यह नींद की कमी और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को रोकता है, और उत्पादकता में सुधार करता है। निस्संदेह, आराम और तरोताज़ा महसूस करने वाले कर्मचारी अगले दिन अधिक लगन और बेहतर ढंग से काम करते हैं, जो यह साबित करता है कि आराम करने से उत्पादकता बढ़ती है, कम नहीं होती।
इस बिल में दो अद्वितीय और मज़ेदार सुझाव भी दिए गए हैं। पहला, यह बिल देश भर में ‘डिजिटल डिटॉक्स सेंटर्स’ बनाने का प्रस्ताव करता है। इन सेंटरों का मकसद एक ऐसी जगह प्रदान करना होगा जहां कर्मचारी स्वेच्छा से जाकर डिजिटल उपकरणों से दूर रह सकें और व्यक्तिगत बातचीत तथा आराम पर ध्यान केंद्रित कर सकें। दूसरा, बिल यह सुझाव देता है कि कर्मचारियों को काउंसलिंग सर्विस प्रदान की जाए। इस काउंसलिंग का लक्ष्य उन्हें यह सिखाना होगा कि व्यावसायिक और व्यक्तिगत जीवन में डिजिटल साधनों का उपयोग कब और कैसे विवेकपूर्ण तरीके से करना है, जिससे वे अपने काम और निजी समय के बीच एक स्पष्ट संतुलन स्थापित कर सकें। यानी, आपको सिखाया जाएगा कि इंस्टाग्राम पर रील देखना और बॉस का ईमेल चेक करना, ये दोनों अलग-अलग चीजें हैं।
यह एक वैश्विक रुझान है, जहां दुनिया के कई विकसित देश अपने कर्मचारियों के ‘काम से वियोग का अधिकार’ को कानूनी रूप से लागू कर रहे हैं। भारत अकेला नहीं है; फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल जैसे कई प्रमुख राष्ट्रों ने यह पहचान लिया है कि एक स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन बनाए रखने और कर्मचारी के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए ‘काम से वियोग का अधिकार’ आवश्यक है। फ्रांस इस अधिकार को लागू करने वाला दुनिया का पहला देश था। उसने 2017 में ही कानून बनाकर बड़ी कंपनियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया कि वे सुनिश्चित करें कि कर्मचारी काम के घंटों के बाद डिजिटल संचार से पूरी तरह से वियोग कर सकें। स्पेन भी इस मामले में पीछे नहीं है। वहां भी यह अधिकार लागू है और कंपनियों को अपने कर्मचारियों के लिए डिजिटल आराम की नीति बनाना अनिवार्य है। सबसे हालिया और सख्त उदाहरणों में से एक पुर्तगाल का है। पुर्तगाल ने कड़े नियम बनाए हैं, जिनके तहत बॉस काम के घंटों के बाहर कर्मचारी से संपर्क नहीं कर सकते, और यदि वे ऐसा करते हैं, तो उन पर भारी जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
यह ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ बिल भारत के लिए एक सकारात्मक और आवश्यक कदम है, जो आधुनिक कार्य संस्कृति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। हालांकि, इसे सफलतापूर्वक लागू करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है—नियमों को बनाते समय, छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स की विशिष्ट ज़रूरतों को समझना होगा, ताकि तुरंत प्रतिक्रिया की आवश्यकता वाली उनकी कार्यप्रणाली बाधित न हो।
इसके अलावा, आपातकालीन स्थितियों और ज़रूरी सेवाओं जैसे कि अस्पताल या पुलिस में इस नियम के अपवादों की स्पष्टता होनी चाहिए। बिल का सही प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए, सरकार और कंपनियों को मिलकर एक व्यापक जागरूकता अभियान चलाना होगा, जिससे कर्मचारी बिना किसी डर के अपने इस अधिकार का उपयोग कर सकें। अंततः, प्रत्येक कंपनी को अपने कर्मचारियों के साथ मिलकर एक सुलझी हुई और लचीली ‘डिस्कनेक्ट नीति’ चाहिए, जो दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद हो।
निस्संदेह ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ काम और जीवन के बीच संतुलन को प्राथमिकता देने का विचार है। कंपनियों को इसे कर्मचारी कल्याण की दिशा में एक निवेश मानना चाहिए। संतुलन से भरी ज़िंदगी ही एक स्वस्थ और उत्पादक समाज की नींव रखती है। अब हम अपनी ज़िंदगी का नियंत्रण वापस लें और काम को उसके तय दायरे में ही रखें। यह एक संदेश है कि हम इंसान हैं, मशीन नहीं, और हमें अपने परिवार, दोस्तों और खुद के लिए समय चाहिए। हमें रिचार्ज होने के लिए ‘ऑफ बटन’ दबाने की जरूरत है।
लेखक कुरुक्षेत्र विवि के विधि विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं।
