महिला-युवा तय करेंगे सरकार कौन बनाएगा
बिहार चुनाव में इस बार महिला मतदाता और पहली बार वोट डालने वाले युवा निर्णायक भूमिका निभाने वाले हैं। सत्ताधारी गठबंधन महिलाओं को लुभाने में जुटा है, जबकि विपक्ष बेरोजगारी और पलायन को मुद्दा बना रहा है।
लोकतंत्र की जननी बिहार की धरती—क्या मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का इतिहास दोहराएगी? मतदाताओं के रुख की हकीकत 14 नवंबर को मतगणना के बाद ही सामने आ पाएगी। लेकिन लगता है कि एक बार फिर बिहार में महिला मतदाताओं का रुख ही बिहार की अगली सियासी तस्वीर का फैसला करने जा रहा है। वैसे इसमें युवाओं, विशेषकर पहली बार वोटर बने नौजवानों की भी अहम भूमिका रहने जा रही है।
बिहार के चुनाव में महिलाओं और युवाओं के महत्व का अंदाजा दोनों प्रमुख गठबंधनों को है। सत्ताधारी गठबंधन ने महिलाओं को लुभाने की जी-तोड़ कोशिश की है। राज्य में करीब साढ़े तीन करोड़ महिला वोटर हैं। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत राज्य की महिला मतदाताओं के करीब 22 फीसद को दस-दस हजार रुपये की रकम दी जा चुकी है। इस योजना के तहत राज्य की एक करोड़ 21 लाख महिलाओं को इसका फायदा दिया जाना है। बेशक भाजपा विपक्ष शासित राज्यों में ऐसी ही सहयोग देने वाली योजनाओं को कभी ‘रेवड़ी’ बताकर विरोध करती रही हो, लेकिन अब वह भी ऐसी योजनाओं में भागीदारी कर रही है। छत्तीसगढ़ की जीत में महतारी वंदन योजना और मध्य प्रदेश की जीत में लाड़ली बहना योजना की भूमिका को शायद ही कोई दल नकार पाए।
मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब 10 जून, 2023 को जबलपुर में लाड़ली बहना योजना की शुरुआत की थी, तब माना जा रहा था कि उनकी सरकार मध्य प्रदेश में अलोकप्रिय हो चुकी है। लेकिन चुनावी नतीजों ने इस धारणा को बदल दिया। छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव से पहले शायद ही किसी ने अंदाजा लगाया था कि भूपेश बघेल सरकार को हार का स्वाद चखना होगा, लेकिन ऐसा हुआ। माना गया कि सियासी तस्वीर बदलने में भाजपा की महतारी वंदन योजना का बड़ा हाथ रहा। महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन की जीत में भी अन्य कारकों के साथ लाड़ली बहना योजना और झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार की वापसी में मुख्यमंत्री मैया सम्मान योजना की अहम भूमिका रही है।
पिछले कुछ चुनावों से महिलाओं ने मतदान में पुरुषों के पीछे चलने की अवधारणा को बदला है। वे बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा ले रही हैं। बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान जहां 59.69 प्रतिशत महिला मतदाताओं ने मतदान किया था, वहीं पुरुषों का प्रतिशत महज 54.45 प्रतिशत ही था। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में महिला साक्षरता दर करीब 51 प्रतिशत ही है। वर्ष 2010 के विधानसभा चुनावों से ही बिहार में महिलाएं केंद्र में हैं। तब जहां 51.12 प्रतिशत पुरुष मतदाताओं ने अपने अधिकार का इस्तेमाल किया था, वहीं महिलाओं ने इससे कहीं ज्यादा यानी 54.49 प्रतिशत हिस्सेदारी की थी। इसी तरह 2015 के विधानसभा चुनाव में भी पुरुषों से आगे 60.48 फीसद महिलाओं ने वोट डाले थे। बिहार में इस बार करीब साढ़े तीन करोड़ महिला मतदाता हैं, जबकि पुरुष मतदाताओं की संख्या 3.92 करोड़ है।
वास्तव में पलायन के चलते बिहार में पुरुष मतदाता कम हैं। मतदाता सूची में दर्ज नाम वाले भी वोटर परदेस में रोज़ी-रोटी कमाने को मजबूर हैं। इस बार भी बिहार की अगली सरकार के गठन में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। महिलाओं की ही मांग पर नीतीश कुमार ने राज्य में शराबबंदी लागू की थी। आलोचनाओं के बावजूद अगर नीतीश इस योजना को जारी रखे हुए हैं, तो इसका मतलब यह भी है कि उनका महिला वोटरों पर भरोसा तेजस्वी की तुलना में बहुत ज्यादा है।
बिहार में इस बार 14 लाख ऐसे नए वोटर जुड़े हैं, जो पहली बार वोट डालेंगे। विधानसभावार आंकड़ों के लिहाज से देखें तो हर विधानसभा में पहली बार वोट डालने वालों की संख्या औसतन 5,761 होती है। विधानसभा में जीत-हार का आंकड़ा बेहद नजदीकी होता है। जाहिर है कि इन नए मतदाताओं पर भी विधानसभा में जीत-हार निर्भर होगी। यही वजह है कि विपक्षी गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव बार-बार युवाओं की बेरोजगारी का मुद्दा उठा रहे हैं। इतना ही नहीं, वे अपनी सरकार बनने की स्थिति में बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध कराने का दावा भी कर रहे हैं। तेजस्वी खुद को युवा हितैषी साबित करने के लिए नीतीश कुमार के साथ रहते नौकरियों के बांटे गए दस्तावेजों का हवाला देने से भी नहीं चूक रहे।
पलायन को विपक्षी खेमे की ओर से मुद्दा बनाने की जबरदस्त कोशिश हो रही है। बिहार में रोजगार की कमी के चलते यहां के लोग महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब का रुख करने को मजबूर हैं। प्रशांत किशोर मतदान में युवाओं की ताकत को समझते हैं। इस बार के चुनाव में महिलाओं के साथ पलायन भी बड़ा मुद्दा रहने के गहरे आसार हैं।
चुनाव आयोग ने बिहार से ही अपने विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान यानी एसआईआर की शुरुआत की है। कांग्रेस समेत समूचा विपक्षी समुदाय इस पुनरीक्षण से बौखलाया हुआ है। वोट चोरी की धारणा को इस अभियान के बहाने राहुल गांधी ने नया रुख दिया है। उन्हें लगता है कि एक बार इसे छोड़ दिया गया तो वोट चोरी की धारणा ही धीरे-धीरे सवालों के घेरे में आती जाएगी। इसलिए विपक्षी खेमे की कोशिश है कि एसआईआर को फालतू का कार्यक्रम बताकर इस पर सवालिया निशान खड़े किए जाएं।
विपक्ष की कोशिश महिलाओं के सम्मान के बहाने नीतीश सरकार को घेरते हुए लोगों का समर्थन हासिल करने की है, जबकि सत्ता पक्ष इसे विपक्ष का दुष्प्रचार बताकर उसे किनारे रखने के प्रयास में प्राणपण से जुटा हुआ है।
यह भी सच है कि इस बार भी, पिछले कुछ बार की तरह, सबसे निर्णायक भूमिका महिला वोटर ही निभाएंगी—और इस अहम भूमिका में युवा उनका साथ देंगे।