भारत की मूल संस्कृति क्या है? इसको लेकर दिग्भ्रमित करने वाले अनेक विमर्श चलते रहते हैं। एक शायर ने तो यहां तक कह दिया कि यहां सब किराएदार हैं, कोई मकान मालिक नहीं। उनके कहने का आशय यही था कि भारत में अलग-अलग समय में लोग आते गए और बस गए। भारतीय मूल का कोई नहीं है। दरअसल, वे आर्य-द्रविड़ वाली कपोल कल्पना के लिए गढ़े गए झूठ के या तो वाहक थे या फिर उसके फेर में फंस गए होंगे। भारत के मूल लोग कौन थे, उनकी संस्कृति क्या थी, जीवन पद्धति क्या थी, धर्म क्या था, यह कोई शायर नहीं बता सकता, बल्कि भारत की मिट्टी इसका स्वयं जवाब देती है कि उसमें किसका रक्त शामिल है। अयोध्या से लेकर मथुरा, राखीगढ़ी से लेकर उज्जैन तक खुदाई में भारतीय संस्कृति के प्रमाण मिलते हैं। मध्य प्रदेश के उज्जैन में ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर के विस्तार की योजना से चल रही खुदाई में लगभग 1000 वर्ष पुराने मंदिर का ढांचा, कुछ मूर्तियां एवं अन्य सामग्री मिली है। यह मंदिर 11वीं-12वीं सदी का बताया जा रहा है। परमार काल की वास्तुकला की अद्भुत कला कृति के दर्शन मंदिर एवं अन्य सामग्री से हो रहे हैं। वहीं, मंदिर के दक्षिण वाले हिस्से में जमीन से चार मीटर नीचे एक दीवार भी मिली है, जिसके लगभग 2100 वर्ष पुराने होने का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि पहले भी मंदिर परिसर की खुदाई के दौरान हवन कुंड, चूल्हा समेत कई अन्य चीजें मिली थीं।
खुदाई में मिले प्रमाण भारतीय संस्कृति के साक्षी हैं। यहां प्रारंभ से हिन्दू या जिसे सनातन कहते हैं, वे रहते थे। हां, भारत का वैभव एवं उच्च गुणवत्तापूर्ण जीवन देखकर अनेक बाहरी संप्रदाय एवं नस्लें अवश्य यहां आती रही और बसती रही। बाद में कुछ ताकतें ऐसी भी आईं, जिन्होंने तलवार के जोर पर यहां के मूल नागरिकों का कन्वर्जन किया। जोर-जबरदस्ती से उनकी पूजा-पद्धति को बदल दिया। राखीगढ़ी की खुदाई में प्राप्त प्रमाणों से तो यह भी सिद्ध हो गया कि आर्य-द्रविड़ की अवधारणा कोरी गप्प है। हिमालय से लेकर अंडमान तक भारत में रहने वालों का डीएनए एक ही है। इसी तरह अयोध्या में हुई खुदाई से लेकर अभी हाल में राममंदिर निर्माण के लिए जारी खुदाई के दौरान प्राप्त स्थापत्य ने सब सच सामने ला दिया। कहने का अर्थ यही है कि भारत के अनेक हिस्सों में खुदाई के दौरान जो प्रमाण मिले हैं, वे सब भारतीय संस्कृति के साक्षी बनते हैं।
साभार : अपना पंचू डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम