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बिन मसाले सारी दुनिया सून

तिरछी नज़र

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अशोक गौतम

हफ्ते बाद गांव से शहर आया तो अपने पड़ोसी के टैरेस पर मसालों का खेत देख दंग रह गया। टैरेस पर उन्होंने मिर्च, जीरा, धनिया, बड़ी इलायची और भी पता नहीं क्या-क्या फूलों को गमलों से निष्कासित कर लगाया हुआ था। मिर्च की बात तो समझ आ रही थी, पर जीरा, धनिया, मेथी... माजरा समझ में नहीं आ रहा था।

अभी मैं उनके खेत हुए टैरेस को कृषि विज्ञानी की तरह हर एंगल से जिज्ञासु नजरों से निहार ही रहा था कि एकाएक वे स्प्रे वाला पंप पीठ में उठाए केजुअल किसान की तरह लस-लस हुए प्रकट हुए तो दंग रह गया।

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‘ये क्या वर्मा जी! टैरेस पर योग की जगह मिर्च-मसाले? अब योगा कहां होगा?’

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‘योग को मारो गोली! शारीरिक फिटनेस से जरूरी जीभ की फिटनेस होती है बंधु! यह जीवन मसालों के बिना शून्य है। देखते नहीं, मसालों के दाम आसमान छू रहे हैं। मसाले के बिना समाज में कुछ नहीं चलता। न जीभ, न राजनीति। फिल्में तो बिल्कुल भी नहीं। सद्साहित्य में भी जो मसाला न डाला जाए तो उसे भी कोई नहीं पूछता। इसलिए कुशल बावर्ची को अपना मन मारकर सात्विक भोजन में भी चोरी-छुपे मसाला पाना ही पड़ता है, तब जाकर सात्विक भोजन सात्विक होता है।

उन्होंने कहा दरअसल, जो बिन मसालों की सीधी-सच्ची बातें करते हैं, वे आदर्श होकर भी भूखों मरते हैं। मसाले केवल मसाले नहीं, टमाटर, अदरक की तरह स्टेटस सिंबल भी होते हैं। किचन से दाल में मसाले की खुशबू न आए तो लानत है ऐसी रसोई को। इसलिए समझदार की किचन में दाल हो या न हो, पर मसाले जरूर होने चाहिए। जो आज बाजार से जीरा, धनिया लाता है, वह मोहल्ले में पूजा जाता है’, फिर वे बड़ी इलायची के पौधे को पुचकारते आगे बोले, ‘वाह! क्या एंग्री जीरे, मेथी के पौधे हैं’, देखते ही देखते उनके पूरे बदन से जीरे की खुशबू आने लगी।

‘पर जितने को इनमें जीरा, बड़ी इलायची लगेंगे, उतने को तो हो सकता है कि...’

‘हो सकता है तब जीरा, बड़ी इलायची के रेट और भी आसमान छू रहे हों। अच्छे दिनों के सपने देखो मियां! अच्छे दिनों के! तुम भी क्या...’

‘पर घर में तो कम से कम ऑर्गेनिक मसाले उगा लेते?’

‘ऑर्गेनिक खाऊंगा तो बीमार नहीं हो जाऊंगा क्या! फिर लगाते रहो अस्पताल के चक्कर पर चक्कर!’

‘बंधु! मिर्च, जीरा, बड़ी इलायची तो समझ में आ रहे हैं, पर ये धनिया, मेथी?’

‘जीभ रसिकों के बाजार में कब कौन-सा मसाला महंगा हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता। बस, इसीलिए...’ सोचा न था पांव के पास देखने वाले बंदे को मिर्च, मसाले के भाव एक दिन इतना दूरदर्शी बना देंगे।

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