सौरभ जैन
जब से कोयला संकट की खबरें साहित्य के गलियारों में पहुंची हैं, तब से साहित्यकारों ने रचना उत्पादन पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। यदि कविता लिखने से बिजली उत्पन्न होती, तो हम बिजली उत्पादन में कबके आत्मनिर्भर बन गए होते। अब आगे कोयले और कविता में प्रतिस्पर्धा हुई तो यह तय है कि कोयला पीछे रह जायेगा और कविता अपने उत्पादन के रिकॉर्ड तोड़ती हुई चांद-सितारों तक पहुंच चुकी होगी। कृषि प्रधान भारत वाया कुर्सी प्रधान पथ से होते हुए कविता प्रधान के डेस्टिनेशन तक आ गया है, कविता के खेतों में कवि लहलहा रहे हैं। अभी तक तो सिर्फ पिछड़े वर्गों की जनगणना की ही मांगें उठ रही थीं, ऐसे ही चलता रहा तो कवियों के लिए भी कविगणना जैसी मांगें उठने लगेंगी।
वैसे इतनी चिंता की भी बात नहीं है, ब्लैक आउट होगा जैसी तमाम खबरें झूठी हैं। साहित्य ने राजनीति और समाज के सम्पूर्ण अंधकार को पहले ही अपने भीतर समाहित कर लिया है। अब इसके आगे और कितना अंधेरा होगा? पिछले बरस ऑक्सीजन संकट के समय कवि ऐसी कविता की आपूर्ति कर रहा था जो व्यवस्था को संजीवनी दे रही थी, वैसे ही इस बरस कवि अपनी कविता से बिजली उत्पन्न कर देगा। वह कविता को कोयले का विकल्प बना देगा। यह कविता का आशावादी दौर है, जिसमें कवि यह सोच कर लिखता है कि कोयला संकट आया है तो इसमें भी कुछ अच्छा ही होगा।
किसी समय कवि की कविता से चेतना जाग्रत होती थी, अब चेतना रिलेक्स मोड पर आराम फरमाती है। कवि क्या लिखना है, के स्थान पर क्या नहीं लिखना है, में लगा हुआ है। मंच, माला और सम्मान के आगे जनता, जनहित और जिम्मेदारी अदृश्य हो जाती है। कवि की कविता में व्यवस्था से सवालों का स्थान अब व्यवस्था के बचाव ने ले लिया है। कवि को सुनने पर ऐसा लगता है जैसे कवि, कवि न हुआ पार्टी का सुशिक्षित प्रवक्ता हो गया।
जब बत्ती रहते ज्वलंत मुद्दे न दिखते, तो बत्ती के गुल हो जाने से क्या फर्क पड़ना है? कवि ने स्वयं को ऐसा अर्जुन मान लिया है जिसे विशाल वृक्ष की एक टहनी पर महंगी रसोई गैस, दूसरी टहनी पर पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम, तीसरी टहनी पर बेरोजगारी और चौथी टहनी पर निजीकरण हो तब भी वह क्या दिख रहा है नामक प्रश्न के उत्तर में ‘अच्छे दिन’ ही बताता है।
कोरोना में ऑक्सीजन की कमी से जैसे एक भी मौत नहीं हुई, वैसे ही कोयला संकट से एक भी घर में अंधेरा नहीं होगा। अब से संकट शब्द का अर्थ उपलब्धि मान लिया जाना चाहिए। जब कोई कहे रोजगार संकट है, तो इसका अर्थ रोजगार प्रचुर मात्रा में उपलब्ध समझा जाना चाहिए।