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घरेलू मांग की मजबूती से होगा मुकाबला

ट्रंप के टैरिफ की चुनौती

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नि:संदेह, भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी, सबसे बड़ा लोकतंत्र, स्टार्टअप्स, इनोवेशन और रिसर्च का इकोसिस्टम, सबसे तेजी से बढ़ता बाजार और विनिर्माण सेवा क्षेत्र की ऊंचाइयां ऐसी शक्तियां हैं, जो दुनिया के देशों को भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही हैं।

हाल ही में प्रकाशित मॉर्गन स्टैनली रिसर्च के एक विश्लेषण में कहा गया है कि अमेरिका द्वारा भारत से निर्यात पर 50 फीसदी टैरिफ लागू किए जाने से विकास दर घटकर 6 फीसदी तक सिमट सकती है। हकीकत है कि मजबूत घरेलू मांग और सेवा क्षेत्र की ताकत के दम पर भारत अमेरिकी टैरिफ के दबाव को झेल लेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू वृद्धि को सहारा देने के लिए नीतिगत समर्थन बढ़ाया जाना जरूरी होगा। वस्तुतः वित्त वर्ष 2024-25 में भारत से अमेरिका को कुल 86.5 अरब डॉलर का निर्यात हुआ, जो जीडीपी का 2.2 फीसदी है। ट्रंप टैरिफ की वजह से भारत के वस्तु निर्यात में करीब 30 अरब डॉलर की कमी आने की आशंका रहेगी। ऐसे में अमेरिका को निर्यात बाधित होने से भारत के द्वारा निर्यात और विकास दर बढ़ाने के लिए जहां घरेलू खपत बढ़ाने पर जोर देना होगा, वहीं निर्यात के नए बाजार तलाशने की रणनीति पर भी आगे बढ़ना होगा।

हाल ही में आईएमएफ ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की विकास दर 6.4 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है। यह भी कहा गया है कि भारत की विकास दर वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर से दो गुना से भी अधिक रहने का अनुमान है। इसी तरह दुनिया की प्रसिद्ध रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में घरेलू खपत में सुधार, रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन, बेहतर मानसून, कच्चे तेल की कीमतों में नरमी, महंगाई में कमी, सस्ते कर्ज और अन्य सेक्टरों में सकारात्मक संकेतों के चलते इस वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत की विकास दर 6.4 प्रतिशत के स्तर पर होगी। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योगमंत्री ने लोकसभा में कहा कि वैश्विक संस्थाएं भारत को ग्लोबल इकोनॉमी का उज्ज्वल केंद्र मानती हैं। अमेरिका द्वारा जो टैरिफ लगाए गए हैं, उनके मद्देनजर सरकार किसान, निर्यातकों और उद्योगों के हितों की रक्षा करेगी। अर्थ विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में तेज विकास के लिए आर्थिक, वित्तीय, श्रम और कृषि सुधारों को तेजी से लागू करने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ना भी जरूरी है।

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गौरतलब है कि हाल ही में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक खुदरा महंगाई घटने से भी घरेलू बाजार में खपत को बढ़ावा मिल रहा है। सस्ते कर्ज से उद्योग-कारोबार में भारी उत्साह है। कृषि क्षेत्र में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन, मानसून की अच्छी प्रगति, पर्याप्त जलाशय स्तर और मजबूत खरीफ बुवाई का सुकूनदेह परिदृश्य दिखाई दे रहा है। नि:संदेह, भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी, सबसे बड़ा लोकतंत्र, स्टार्टअप्स, इनोवेशन और रिसर्च का इकोसिस्टम, सबसे तेजी से बढ़ता बाजार और विनिर्माण सेवा क्षेत्र की ऊंचाइयां ऐसी शक्तियां हैं, जो दुनिया के देशों को भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही हैं।

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उल्लेखनीय है कि भारत में खुदरा महंगाई दर जून, 2025 में घटकर 2.1 प्रतिशत पर आ गई है। जहां महंगाई में तेज गिरावट अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद है, वहीं भारत में सस्ते कर्ज से भी घरेलू उपचार में खपत और आर्थिक रफ्तार बढ़ेगी। विगत 6 जून को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा पेश करते हुए रेपो रेट में 50 आधार अंकों यानी 0.50 प्रतिशत की कटौती का ऐलान किया है। इस वर्ष 2025 में फरवरी से अब तक लगातार तीसरी बार रेपो रेट में कटौती हुई है। इसके साथ ही रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में भी एक प्रतिशत की बड़ी कटौती करते हुए इसे तीन प्रतिशत के स्तर पर ला दिया है। रिजर्व बैंक ने रेपो रेट और सीआरआर में बड़ी कटौती करके तेज विकास की जरूरत और महंगाई के बीच बुद्धिमतापूर्ण समीकरण स्थापित किया है।

यह बात महत्वपूर्ण है कि रिकॉर्ड कृषि उत्पादन और अच्छा मानसून भी अर्थव्यवस्था की गतिशीलता और घरेलू खपत बढ़ने के मद्देनजर सुकूनदेह हैं। केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा 2024-25 फसल वर्ष के लिए जारी तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक देश में खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन 35.39 करोड़ टन होगा। इस समय वैश्विक व्यापार और वैश्विक निर्यात में कमी आ रही है, तब भारत के द्विपक्षीय और मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के दम पर भारत के निर्यात और निवेश बढ़ रहे है।

निश्चित रूप से भारत के मुक्त व्यापार समझौते भारत की वैश्विक व्यापार उपस्थिति को नया रूप देते दिखाई दे रहे हैं। भारत द्वारा यूएई, ऑस्ट्रेलिया और यूके के साथ किए गए एफटीए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। भारत को यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए से मजबूत लाभ हुआ है। यूएई के साथ, पिछले चार-पांच वर्षों में सेवाओं का निर्यात लगभग दोगुना हो गया है। इस परिप्रेक्ष्य में यह भी उल्लेखनीय है कि हाल ही में 10 जुलाई को भारत में स्विट्जरलैंड की राजदूत माया तिस्साफी ने कहा कि भारत और 4 सदस्य देशों आइसलैंड, स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे और लिकटेंस्टीन वाले यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (ईएफटीए) के बीच व्यापार समझौता अक्तूबर, 2025 से लागू हो जाएगा। इन सबके साथ-साथ इन दिनों भारत-आसियान के बीच मौजूदा व्यापार समझौते की समीक्षा के लिए आसियान के साथ चर्चा जारी है। आसियान में ब्रनोई, कंबोडिया, इंडोनेशिया लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपीन, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं। भारत द्वारा यूरोपीय आयोग, ओमान, कतर, न्यूजीलैंड, पेरू, चिली, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, इस्राइल, भारत गल्फ कंट्रीज काउंसिल सहित अन्य देशों के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप देने की डगर पर आगे बढ़ रहा है।

अब भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया के जीवंत आर्थिक क्षेत्र से फिर से जुड़ना होगा। इन सबके साथ-साथ भारत को व्यापक एवं प्रगतिशील प्रशांत पार साझेदारी (सीपीटीपी) का हिस्सा बनने के लिए आगे बढ़ना होगा। पूरी दुनिया में भारत के सेवा निर्यात को तेज रफ्तार से बढ़ाना होगा।

लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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