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मुद्दों में वह गर्मी कहां जो है रजाई में

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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सहीराम

शीतलहर चल रही है जनाब और गर्मी कहीं नहीं है। लेकिन सूरज पर यह इल्जाम नहीं लगाया जा सकता कि वह बादलों में मुंह छुपाए बैठा है। बादल न हों तो भी वह या तो स्मॉग की चादर ओढ़े रहता है या फिर धुंध की। उसका पक्ष सुना जाए तो वह यही कहेगा कि प्रकृति की जो दुर्गति तुम लोग कर रहे हो, उसके चलते मैं कहीं मुंह दिखाने लायक बचा ही कहां। अब बताओ बिना सूरज के गर्मी कहां से आए। बल्कि अब तो राजनीति में भी गर्मी नहीं बची। संसद में धक्का-मुक्की हो गयी साहब, लेकिन गर्मी फिर भी न आयी। एक बार लगा जरूर था कि अब कुछ गर्मी आएगी। लेकिन चचा सारंगी तो दूसरे ही दिन घर लौट गए। पता चला कि पट्टी भी उतर गयी।

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फिर लगा कि अमित शाहजी द्वारा बाबा साहब पर की गयी टिप्पणी से कुछ गर्मी आएगी। कांग्रेस गर्मी पैदा करने का सामान जुटा रही थी और भाजपा फायर फाइटिंग का। जो कांग्रेस अपनी चुनावी हारों पर मीटिंग नहीं कर पा रही थी, उसने फौरन इस मसले पर मीटिंग भी कर ली। लेकिन गर्मी पैदा हुई नहीं जी। इसके लिए सर्दी की बारिश जिम्मेदार नहीं। रही संसद में होने वाली गर्मागर्मी तो वो भी कोई गर्मागर्मी है भला। लेकिन अच्छी बात यह है कि गर्मी पैदा करने की कोशिश चलती रहती है।

इधर कांग्रेस ने डाॅ. मनमोहन सिंह की अंत्येष्टि के तरीके पर भी काफी गर्मी दिखाई। उसने कहा कि सरकार ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे। उन्हें तो राजघाट परिसर में अंत्येष्टि की जगह तक नहीं दी गयी। इस पर भी खूब गर्मागर्मी हुई। इन्होंने कहा कि तुमने उनका अपमान किया और उन्होंने कहा कि तुमने उनका अपमान किया। यह एक ऐसे आदमी पर विवाद था, जिसने किसी का अपमान नहीं किया था। इधर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने यह कहकर गर्मी पैदा कर दी कि दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी गिरफ्तार हो सकती हैं। गिरफ्तारी में अपनी एक गर्मी होती है साहब। इतनी कि इससे पूरी राजनीति गर्मा सकती है। बस गर्माने वाला होना चाहिए। जैसे झारखंड में हेमंत सोरेन ने इतनी गर्मी पैदा की कि दुबारा सत्ता में आ गए।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी वालों ने भाजपा के एक नेता पर पैसे बांटने के आरोप लगाकर गर्मी पैदा करने की कोशिश की। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस वालों में भी इन दिनों खूब गर्मागर्मी चल रही है। इस बीच नीतीश जी ने एक बार फिर पलटी मारने की मुद्रा बनाकर गर्मी पैदा करने की कोशिश की। फिर किसान आंदोलन की गर्मी का तो क्या ही कहना। लेकिन जी ऐसी शीतलहर में राजनीतिक मुद्दों में भी वह गर्मी कहां साहब जो रजाई में है। शीतलहर का तोड़ तो रजाई ही है साहब!

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