आखिर कहां गायब हो जाते हैं हज़ारों लोग
आंकड़ों की बात करें तो प्रत्येक दिन औसतन 35 से अधिक लोगों के लापता होने की घटनाएं गंभीर तस्वीर को उजागर करता है। यह न केवल कानून-व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठाता है, बल्कि समाज में लोगों की सुरक्षा को लेकर भी एक नई बहस को जन्म देता है।
देश की राजधानी दिल्ली से एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। जोनल इंटीग्रेटेड पुलिस नेटवर्क (जिपनेट) के आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लगभग 8000 लोग लापता हुए हैं। हैरानी की बात यह कि यह संख्या 1 जनवरी से 23 जुलाई तक की है।
देश की सबसे सुरक्षित समझी जाने वाली दिल्ली की यह स्थिति है तो बाकी राज्यों की सुरक्षा को लेकर अंदाजा लगाया जा सकता है। कैमरों व सुरक्षा से लैस दिल्ली में अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं, यह आश्चर्य की बात है। हैरानी की बात है कि इस बाबत शासन-प्रशासन की ओर से किसी अधिकारी व छोटे-बड़े नेता का बयान नहीं आया। यदि मीडिया ने बात करने की कोशिश की तो किसी ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
बीते दिनों कुछ पत्रकारों ने भिखारियों के एक अड्डे पर रिपोर्टिंग करनी चाही लेकिन भिखारियों ने उन पर हमला कर दिया। पत्रकारों का उद्देश्य यह था कि जिन बच्चों व लोगों से भीख मंगवाई जाती है आखिर वह कौन हैं और उनकी पहचान क्या है? पत्रकारों ने इस मामले की पुलिस में शिकायत भी की।
दरअसल, आशंका जताई जाती रही है कि जो लोग गायब हो जाते हैं उनसे भीख मंगवाई जाती है। उन्हें किसी घिनौने काम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह मानव तस्करी का मामला भी है। इसके अलावा जो लोग गायब होते हैं उनका न मिलना संकेत देता है कि कहीं उनके अंगों की तस्करी तो नहीं हो रही है। वजह न उनके मरने का पता लग पा रहा है और न ही जीने का।
बहरहाल, दिल्ली के लोगों में भय व्याप्त है। इसके बाद लोगों ने तय किया है कि अपने और अपने बच्चों की सुरक्षा का स्वयं ही ध्यान रखा जाए। चूकि यहां पुलिस कुछ ठोस नहीं कर पा रही है। वैसे जिन तंत्रों का प्रयोग करके पुलिस पड़ताल कर सकती है उतना स्वयं पीड़ित नहीं कर सकता। पुलिस के अनुसार संदिग्ध लोगों या सर्वे के नाम पर आपको सुविधा देने या बिना वजह पानी व बिजली या अन्य किसी की जांच करने वाले लोगों से सावधान रहने की जरूरत है। चूंकि सबसे ज्यादा ऐसी घटनाओं को इस ही तरह के लोग अंजाम देते हैं। इस तरह के लोग पहले रेकी करते हैं फिर उसके बाद शिकार करते हैं।
सीसीटीवी की निगहबानी होने के बाद भी कुछ न होना, सवाल खड़े कर जाता है। क्या ये अपराधी इतने शातिर हैं कि इस पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही। आंकड़ों की बात करें तो प्रत्येक दिन औसतन 35 से अधिक लोगों के लापता होने की घटनाएं गंभीर तस्वीर को उजागर करता है। यह न केवल कानून-व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठाता है, बल्कि समाज में लोगों की सुरक्षा को लेकर भी एक नई बहस को जन्म देता है।
यदि उत्तर पूर्वी जिले की बात करें तो कुल 730 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद दक्षिण पश्चिमी जिले में 717 व दक्षिण पूर्व जिले में 689 और बाहरी जिले में 675 मामले दर्ज किए गए। जिपनेट के मुताबिक द्वारका में 644, उत्तर पश्चिम जिले में 636, पूर्वी जिले में 577 और रोहिणी जिले में गुमशुदगी के 452 ऐसे मामले दर्ज किए गए। मध्य जिले में 363 लोगों का सुराग नहीं मिल पाया है, जबकि उत्तर, दक्षिण और शाहदरा जिलों में क्रमश: 348, 215 और 201 लोग अब भी लापता हैं। यदि अज्ञात शवों की बात करें तो एक जनवरी से 23 जुलाई के बीच 1,486 शव मिले, जिनमें से ज्यादा पुरुषों के थे।
आंकड़ों के अनुसार, उत्तरी जिले में सबसे अधिक 352 शव मिले जिनकी शिनाख्त स्थापित नहीं हो सकी। इनमें कोतवाली, सब्जी मंडी और सिविल लाइंस जैसे इलाके शामिल हैं। इसी प्रकार मध्य जिले में 113, उत्तर पश्चिम में 93, दक्षिण पूर्व में 83, दक्षिण पश्चिम और उत्तर पूर्व में 73-73, बाहरी में 65, पूर्व और नई दिल्ली में 55-55, पश्चिम और बाहरी उत्तर में 54-54, रोहिणी में 44, शाहदरा में 42, द्वारका में 35, दक्षिण में 26 और रेलवे क्षेत्र में 23 शव मिले, जिनकी शिनाख्त नहीं हो सकी।
जिपनेट एक केंद्रीकृत डेटाबेस है जिसका इस्तेमाल कानून प्रवर्तन एजेंसियां लापता व्यक्तियों और अज्ञात शवों का पता लगाने के लिए करती हैं। यह डेटाबेस कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का डेटा संकलित करता है। आंकड़े बताते हैं कि पूरी दिल्ली वालों की सुरक्षा में सेंध है।