कार से चलते हुए प्लास्टिक, चिप्स की पन्नी कहीं भी फेंक देंगे। तालाब हो, झील हो, झरना हो सब प्लास्टिक, बोतल आदि से भरे मिलते हैं। कोई सौंदर्य बोध नहीं, कोई रचनात्मकता नहीं। बिना सौंदर्य बोध, रचनात्मकता, व्यवस्थित रहने की चाह, सुंदरता के भारत के लोगों को कभी दुनिया में सम्मान नहीं मिल सकता, चाहे आपके पास कितना पैसा हो या कितनी बड़ी डिग्री हो। सिविक सेंस विहीन समाज कभी सम्मान नहीं पा सकता।
भारत के लोग हर जगह शोर मचाते हैं कि उनके लोग सभी बड़ी कंपनियों में छाये हुए हैं। वे सिलिकॉन वैली की रीढ़ हैं। अमेरिका से लेकर यूरोप तक सबसे अधिक कमाई वाले हैं। उनके बच्चों के पास अच्छी डिग्री है, लेकिन कई को अपेक्षित सम्मान या स्थान नहीं मिला। असल में अनेक बेशऊर लोगों ने नाम खराब किया है। ऐसे लोगों के अंदर साफ़ सफ़ाई, व्यवस्थित रहने का ढंग, सिविक सेंस जब तक नहीं आयेगा, दुत्कारे जाते रहेंगे। हर शहर के एक दो क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए, बाकी जगह गंदगी, कूड़ा, प्लास्टिक फैला हुआ मिलता है। हर चौराहों पर दुकानें खुल जाती हैं। नेशनल हाइवे हो, शहर से गुजरता हो तो उसी के सामने दुकानें, प्रतिष्ठान खोल दिया जाता है। कोई सरकारी अथॉरिटी भी यह नियम नहीं बना रही कि सड़क, जो कि किसी भी राष्ट्र की धमनी होती है, उसे ऐसे ब्लॉक नहीं किया जा सकता।
किसी भी संस्था, संगठन, सिविल सोसायटी ने लोगों को शऊर सिखाने का बीड़ा नहीं उठाया। आज़ तक आम नागरिकों ने भी मुद्दा नहीं उठाया कि हर बड़े चौराहे के सौ मीटर दूरी पर सरकार ज़मीन अधिग्रहण करे और सवारी उठाने की अनुमति केवल वहीं रहे। हजारों दुकानें खुलीं, लेकिन सफाई मुद्दा नहीं बनता। फिर लोग कहते हैं कि विदेश के लोग भारत के खाने पीने की दुकानों का गंदा-गंदा वीडियो बनाकर बदनाम करते हैं। लोग घर बनवाते हैं, लेकिन एक इंच ज़मीन नहीं छोड़ते। फिर सड़क पर स्लोप बनवाते हैं कि गाड़ी चढ़ाने की व्यवस्था हो, पूरी बेशर्मी से इस क़ब्ज़ेबाज़ी को अपना अधिकार समझते हैं।
हम कुत्ता पाल लेंगे, लेकिन उसकी नित्य क्रिया कराएंगे दूसरे के घर के सामने। सड़क पर चलेंगे तो नियम नहीं मानना, नशा भी ऐसा सीखा कि देखने में भी गंदे दिखते हैं, फिर गुटखा खा-खाकर सड़क, ऑफिस, घर से लगाये लिफ्ट तक गंदा करते हैं। खाना खायेंगे तो बहुत जगह मक्खी भिनकते रहना सामान्य बात बन जाती है। हम कूड़ा निकालेंगे तो घर के बाहर फेंक देंगे। कार से चलते हुए प्लास्टिक, चिप्स की पन्नी कहीं भी फेंक देंगे। तालाब हो, झील हो, झरना हो सब प्लास्टिक, बोतल आदि से भरे मिलते हैं। कोई सौंदर्य बोध नहीं, कोई रचनात्मकता नहीं। बिना सौंदर्य बोध, रचनात्मकता, व्यवस्थित रहने की चाह, सुंदरता के भारत के लोगों को कभी दुनिया में सम्मान नहीं मिल सकता, चाहे आपके पास कितना पैसा हो या कितनी बड़ी डिग्री हो। सिविक सेंस विहीन समाज कभी सम्मान नहीं पा सकता।
साभार : अब छोड़ो भी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम