पाल-पोस ही रहे हैं भीतर के रावण को
आखिर इस दौर में मैं अब कहां जाऊंगा। मेरी सोने की लंका तो पहले ही फुंक चुकी है। आपने देखा नहीं, कुछ साल पहले कैसे लंका वालों ने अपने शासकों को देश से ही खदेड़ दिया था।
दशहरे का दिन आते ही बंदे सोशल मीडिया पर और व्हाट्सएप संदेशों में ये लिखकर या ऐसे मैसेज फॉर्वर्ड करके चरस बो देते हैं कि पहले अपने भीतर के रावण को मारो। मन तो किया कि कह दूं कि अरे भाई, अपने भीतर के रावण को मारना इतना ही आसान होता, तो वो भीतर छिपकर ही क्यों बैठता? लेकिन सोशल मीडिया पर हर दूसरी पोस्ट में ये लिखा देखा कि पहले अपने भीतर के रावण को मारो, तो अंतरात्मा भी कहने लगी- भगा दो नकारात्मकता के रावण को। तो फिर इस कैंपेन के प्रभाव में आ ही गया। ठीक उसी तरह जैसे कोई अपने अकाउंट में 15 लाख रुपये के झांसे में आ गया था।
आखिरकार सोशल मीडिया वीरों की ललकार से भावविभोर हो चला। मन में संकल्प लिया कि आज अपने भीतर के रावण को मार कर ही दम लूंगा। दशहरे वाले दिन सुबह-सुबह नहा-धो लिया। फिर ताव में आकर रावण को आवाज़ दी। सुन ले हे रावण! चल बाहर निकल। आज से तुझे अपने अंदर से बेदखल करता हूं। मैंने महसूस किया कि इस गर्जना पर तीनों लोकों पर राज करने वाला लंकापति रावण थर-थर कांपने लगा। महसूस किया कि वो अचानक याचना की मुद्रा में आ गया। वो दीनहीन जैसी अवस्था में नजर आया और बोला, दया करो मालिक मुझे बाहर तो मत निकालो। आखिर इस दौर में मैं अब कहां जाऊंगा। मेरी सोने की लंका तो मेरी पहले ही फुंक चुकी है। आपने देखा नहीं, कुछ साल पहले कैसे लंका वालों ने अपने शासकों को देश से ही खदेड़ दिया था। उनके महलों पर कब्जा करके सब कुछ लूट लिया था। रही-सही लंका आपके मनोज मुंतशिर ने फुंकवा दी। अब मैं करूं तो करूं क्या, कहूं तो कहूं क्या! मैं कहां रहूंगा?
रावण ने तुरंत ऑफर रख दिया। बोला- मालिक आप चाहे तो हर साल 10 परसेंट रेंट बढ़ा लो। मुझे मंजूर है। लेकिन प्लीज, मुझे अपने अंदर से जाने को मत कहो। रावण के इस आकर्षक ऑफर पर भीतर कुछ पलों के लिए दिल्ली-एनसीआर के किसी चतुर लैंडलॉर्ड की आत्मा घुस गई। खट से मेरे दिमाग की बत्ती जल उठी। फिर सोचा, यार, सौदा इतना बुरा भी नहीं है।
कुछ पल सोच-विचार की एक्टिंग करने के बाद मैंने कहा, ठीक है रावण। लेकिन तुझे हर ग्यारह महीने के बाद रेंट एग्रीमेंट रिन्यू करना होगा। बारहवें महीने से 10 परसेंट किराया बढ़ा दिया जाएगा। यह सुनकर रावण ने हामी भर ली। तब से रावण मेरे भीतर ही है। फुल मौज काट रहा है। दशहरा तो वैसे भी हर साल आता है। अगले साल की अगले साल ही देखी जाएगी।