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समुद्री पानी के गर्म होने से बढ़ता चक्रवाती कहर

जलवायु परिवर्तन का असर

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जलवायु बदलावों के चलते चक्रवाती तूफानों की संख्या में वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों के अनुसार, हिंद महासागर के गर्म होने के कारण चक्रवातों की गति व मजबूती बढ़ी है। यह बात नासा के अध्ययन में भी सामने आयी। यदि संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर काबू नहीं किया तो साइक्लोन तटीय शहरों में तबाही लाते रहेंगे।

सत्ताईस नवंबर तक भारत के दक्षिणी राज्यों में सेनयार चक्रवात ने भारी तबाही मचाई थी और अगले दिन दितवाह ने अपना कहर शुरू कर दिया। तमिलनाडु में तीन लोगों की मौत, 57 हजार हेक्टेयर फसल नष्ट होना और अनगिनत घरों का उजड़ना इसके परिणाम रहे। आंध्र प्रदेश, पुड्डुचेरी और तमिलनाडु में जलभराव ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त किया। सबसे बड़ी मार किसानों पर पड़ी है, क्योंकि उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण धान, गन्ना और अन्य फसलें कटाई के करीब थीं, जिन्हें भारी बारिश ने गिरा दिया। यदि 48 घंटे में धान न कटे तो वे सड़ जाएंगे, और खेतों में पानी भरने के कारण यह कार्य संभव नहीं है।

दुनिया में तेजी से आ रहे प्राकृतिक बदलावों ने ऐसेे तूफानों की संख्या में वृद्धि की है। यदि मानव ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ को नियंत्रित नहीं किया तो साइक्लोन या बवंडर के चलते भारत के सागर किनारे वाले शहरों में लोगों का जीना दूभर हो जाएगा। वैज्ञानिकों के अनुसार, पिछले 30 वर्षों के दौरान तूफानों की तीव्रता में बढ़ोतरी देखी गई है। हिंद महासागर के गर्म होने के कारण चक्रवातों की गति व मजबूती बढ़ी है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, पिछले पांच सालों (करीब 2018-2022) में तूफानों की घटनाओं में 32 प्रतिशत इजाफा हुआ। पिछले तीन माह में यह चौथा विकराल चक्रवात है। यही नहीं, मई से जुलाई तक कई कम क्षमता के चक्रवातों ने पश्चिम बंगाल, कोंकण, गुजरात आदि में कोहराम मचाया था।

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इस तरह के बवंडर तात्कालिक नुकसान ही नहीं पहुंचाते, बल्कि इनका दीर्घकालिक प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है। इसके साथ ही, समूची प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है। वनों या पेड़ों को संपूर्ण स्वरूप पाने में दशकों लगे, वे पलक झपकते नेस्तनाबूद हो जाते हैं। तेज हवा के कारण तटीय क्षेत्रों में मीठे पानी में खारा पानी मिलने और खेती वाली जमीन पर मिट्टी व दलदल बनने से हुई क्षति पूरा करना मुश्किल होता है।

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वर्ष 2019 में जारी आईपीसीसी की रिपोर्ट ‘ओशन एंड क्रायोस्फीयर इन ए चेंजिंग क्लाइमेट’ के अनुसार, सारी दुनिया के महासागर 1970 से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से उत्पन्न 90 फीसदी अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित कर चुके हैं। इसके कारण महासागर गर्म हो रहे हैं और इसी से चक्रवात का शीघ्र और भयंकर चेहरा सामने आ रहा है। निवार तूफान के पहले बंगाल की खाड़ी में जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्र का जल सामान्य से अधिक गर्म हो गया था। उस समय समुद्र की सतह का तापमान औसत से लगभग 0.5-1 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था, कुछ क्षेत्रों में यह सामान्य से लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया था। बता देंें कि समुद्र का 0.1 डिग्री तापमान बढ़ने का अर्थ है चक्रवात को अतिरिक्त ऊर्जा मिलना। हवा की विशाल मात्रा के तेजी से गोल-गोल घूमने पर उत्पन्न तूफान उष्णकटिबंधीय चक्रीय बवंडर कहलाता है।

पृथ्वी भौगोलिक रूप से दो गोलार्धों में विभाजित है। ठंडे या बर्फ वाले उत्तरी गोलार्ध में उत्पन्न इस तरह के तूफानों को हरिकेन या टाइफून कहते हैं। इनमें हवा का घूर्णन घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में एक वृत्ताकार रूप में होता है। जब बहुत तेज हवाओं वाले उग्र आंधी तूफान अपने साथ मूसलधार वर्षा लाते हैं तो उन्हें हरिकेन कहते हैं। जबकि भारत के हिस्से दक्षिणी अर्धगोलार्ध में इन्हें चक्रवात या साइक्लोन कहा जाता है। इस तरफ हवा का घुमाव घड़ी की सुइयों की दिशा में वृत्ताकार होता है। किसी भी उष्णकटिबंधीय अंधड़ को चक्रवाती तूफान की श्रेणी में तब गिना जाने लगता है जब उसकी गति कम से कम 74 मील प्रति घंटे हो जाती है। ये बवंडर कई परमाणु बमों के बराबर ऊर्जा पैदा करने की क्षमता वाले होते हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप में बार-बार और हर बार पहले से घातक तूफान आने का वास्तविक कारण मानव द्वारा किए जा रहे प्रकृति के अंधाधुंध दोहन से उपजी पर्यावरणीय त्रासदी ‘जलवायु परिवर्तन’ भी है। इस साल के प्रारंभ में ही अमेरिका की अंतरिक्ष शोध संस्था नासा ने चेता दिया था कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रकोप से चक्रवाती तूफान और तीव्र होते जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के कारण उष्णकटिबंधीय महासागरों का तापमान बढ़ने से सदी के अंत में बारिश के साथ भयंकर बारिश और तूफान आने की दर बढ़ सकती है। यह बात नासा के एक अध्ययन में सामने आई है। अमेरिका में नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी यानी जेपीएल के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया। इसमें औसत समुद्री सतह के तापमान और गंभीर तूफानों की शुरुआत के बीच संबंधों को निर्धारित करने के लिए उष्णकटिबंधीय महासागरों के ऊपर नासा के वायुमंडलीय इन्फ्रारेड साउंडर (एआईआरएस) उपकरणों द्वारा 15 सालों तक एकत्र आंकड़ों के आकलन से यह बात सामने आई।

अध्ययन में पाया गया कि समुद्र की सतह का तापमान लगभग 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने पर गंभीर तूफान आते हैं। ‘जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स’ (फरवरी, 2019) में प्रकाशित अध्ययन में, समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि के कारण हर एक डिग्री सेल्सियस पर 21 प्रतिशत अधिक तूफान आते हैं। ‘जेपीएल’ के साइंटिस्ट हार्टमुट औमन के मुताबिक गर्म वातावरण में गंभीर तूफान बढ़ जाते हैं। भारी बारिश के साथ तूफान आमतौर पर साल के सबसे गर्म मौसम में ही आते हैं। लेकिन जिस तरह इस साल बरसात और सर्दियों में भारत में ऐसे तूफान के हमले बढ़े हैं, यह हमारे लिए गंभीर चेतावनी है।

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