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भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ सरहदें लांघता जेन-ज़ी आक्रोश

जेन-ज़ी आंदोलन
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एशिया-अफ्रीका-यूरोप में जेन-ज़ी विरोधों-प्रदर्शनों के केंद्र में बुनियादी मांगें हैं। श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल के बाद अब मेडागास्कर में तख्तापलट हुआ वहीं कई अन्य अफ्रीकी देशों में आंदोलन जारी हैं।

अफ्रीका के मेडागास्कर देश में तख़्तापलट हो गया। जेन-ज़ी आंदोलन ने एक और देश में राजनीतिक तब्दीली करवा दी है। सैन्य तख़्तापलट करने वाले कर्नल माइकल रैंड्रियनिरिना नए राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले चुके हैं। अगले दो साल सेना सत्ता संभालेगी। आंदोलन के कारण निर्वाचित राष्ट्रपति एंड्री राजोलीना देश छोड़कर भाग गये थे।

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मेडागास्कर से पहले नेपाल में भी जेन-ज़ी आंदोलन सत्ता परिवर्तन कराने में सफल हो चुका है। दरअसल एशिया-अफ्रीका-यूरोप के युवा सड़कों पर हैं। वे गुस्से में हैं। ये सारे जेन ज़ी अपने-अपने देशों की सरकारों को हिलाकर, सत्ता में बदलाव चाहते हैं। ये किसी राजनीतिक दल से सीधे-सीधे जुड़े नहीं हैं और न ही इनके बीच कोई बड़ा लीडर है। एशिया के तीन देशों में जेन-ज़ी उभार तख़्तापलट करवा चुका है। ये अलग ही किस्म का राजनीतिक उभार है।

हर देश के जेन-ज़ी आंदोलन में एक बात आम है कि वे बुनियादी मांगों के पूरा न होने पर गुस्से में हैं। तकरीबन हर देश में उनका गुस्सा फूटता है और अपने संग तमाम राजनीतिक ढांचों को बहा ले जाता है। यह भी साफ है कि इस युवा पीढ़ी को मौजूदा राजनीतिक तौर-तरीकों यानी फ्रेमवर्क से अपने मसले हल करने में कोई विश्वास नहीं हैं। जेन-ज़ी युवाओं के भीतर मौजूदा भ्रष्ट सिस्टम के प्रति नाराजगी कुछ समय से पलती रहती है और अचानक कोई ट्रिगर प्वांइट होने पर फट जाता है।

मेडागास्कर से पहले श्रीलंका, बांग्लादेश और हाल में नेपाल में जिस तरह से युवाओं ने सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों के साथ बाकी प्रचलित पार्टियों को किनारे लगाया, वह भी अलग ढंग का राजनीतिक उभार है। सारे जेन-ज़ी विरोधों-प्रदर्शनों के केंद्र में बहुत बुनियादी मांगें हैं- मसलन बेरोजगारी-महंगाई व बेहद भ्रष्टाचार पर गुस्सा, भाई-भतीजावाद पर नाराजगी और खराब सार्वजनिक सेवाओं और बढ़ती गरीबी व असमानता के खिलाफ विद्रोह। लेकिन ये तमाम आंदोलन सत्ता में आमूल-चूल परिवर्तन के बजाय तात्कालिक सत्ता परिवर्तन करने की दिशा अपनाते हैं। इस आंदोलन की पीठ पर सवार होकर सत्ता पर कब्जा करने वाली ताकतों के चेहरे बहुत बाद में सामने आते हैं और उन्हीं के पास नेतृत्व चला जाता है।

अफ्रीका के कई देशों, जैसे दक्षिण अफ्रीका, मोरक्को, नाइजीरिया और केन्या में विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं और हर जगह कमान युवाओं के हाथ में है। युवा पीढ़ी को मौजूदा राजनीतिक सिस्टम और पार्टियों से दिक्कत है। नेपाल में जैसे नेपो किड्स यानी नेताओं के ऐशो-आराम में डूबे बच्चों पर गुस्सा फूटा था, बेरोजगारी पर उबाल आया था और इसमें रैपर्स, हिप-हॉप गायकों ने अहम भूमिका निभाई, ठीक उसी तरह मोरक्को में युवा आक्रोश सड़कों पर उतरा।

मेडागास्कर में तख़्तापलट की कहानी देखें तो महज कुछ हफ्तों से युवा मौजूदा निज़ाम के खिलाफ पानी औऱ बिजली की कमी, बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ सड़कों पर उतरे थे। सरकार ने जब इस आंदोलन की दमन किया, तब सेना की कई यूनिटों ने प्रदर्शनकारियों का साथ दिया। राष्ट्रपति के भागने के बाद कमान सेना ने संभाल ली। हालांकि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस तख़्तापलट को असंवैधानिक बताया और अफ्रीकी संघ ने भी इस कदम को खारिज किया। देश को अब एक सैन्य परिषद चलाएगी और सेना के मुताबिक दो साल के भीतर चुनाव कराए जाएंगे। सवाल है मेडागास्कर में सैन्य तख़्तापलट जेन-ज़ी आंदोलन की अपरिपक्वता का परिणाम है और क्या इससे बाकी देशों में जारी आक्रोश की कोई कड़ी मिलती है।

अफ्रीका के ही एक दूसरे देश- मोरक्को में भी चल रहा है जबर्दस्त आंदोलन। मोरक्को के युवा खुद को जेन-ज़ी 212 कहते हैं। वहां स्वास्थ्य सेवाओं की भयानक हालत और महिलाओं की मौतों ने आक्रोश को भड़काया। युवाओं ने टिकटॉक, इंस्टाग्राम जैसे माध्यमों का इस्तेमाल कर ऑनलाइन समर्थन जुटाया और बड़ी लामबंदी 3 अक्तूूबर से शुरू की। आंदोलनकारी कहते हैं कि उनका किसी राजनीतिक विचारधारा से जुडाव नहीं है। वे प्रधानमंत्री के इस्तीफे और अपने गिरफ्तार साथियों की रिहाई की मांग लेकर सड़क पर हैं। जेन-ज़ी मोरक्को सरकार की फिजूलखर्ची से नाराज हैं, 2030 में फीफा वर्ल्ड कप के लिए देश भर में भारी लागत से स्टेडियम और लग्जरी होटल बनाए जा रहे हैं, जबकि साधारण नागरिकों के पास न तो अस्पताल हैं और न ही नौकरियां।

सरकार को जनता का पैसा जनता पर ही खर्च करना चाहिए। बुनियादी मांग को लेकर शुरू हुए आंदोलन ने मोरक्को के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया। जब उनके आंदोलन का दमन किया गया तब इस विरोध ने उग्र स्वरूप अख्तियार कर लिया।

इसी तरह दक्षिण अफ्रीका में सेवा वितरण और आर्थिक मुद्दों को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। नाइजीरिया और केन्या के युवाओं में भी गुस्सा फूट रहा है। दुनिया भर में जारी जेन-ज़ी आंदोलनों में कॉमन यह है कि युवा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। सेलेब्रिटीज इस आंदोलन से जुड़ते हैं और इसे आगे बढ़ाने में सक्रिय योगदान देते हैं। मोरक्को में हिप-ह़ॉप गायकों व फुटबॉल सितारों ने आंदोलन की मांगों का समर्थन किया।

क्या ऐसेे आंदोलन बाकी जगह भी फैलेंगे? बहुत मुमकिन है, लेकिन कितने कामयाब होंगे, कहना मुश्किल है।

लेखिका अंतराष्ट्रीय मामलों की जानकार हैं।

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