ओवरटूरिज्म के खिलाफ मुखर स्थानीय विरोध
पर्यटकों को यह समझना होगा कि सुंदर, संवेदनशील प्राकृतिक स्थलों की विशिष्टता बनाए रखना सबसे ज़रूरी है। ऐसा न हो कि आज के अत्यधिक उपभोग से वे स्थल भविष्य में अपनी सुंदरता और पहचान खो दें—और न केवल पर्यटक, बल्कि वहां के मूल निवासी भी नुकसान झेलें।
निस्संदेह, टूरिज्म हो या ओवरटूरिज्म, इससे देशों, राज्यों, नगरों या गांवों की आर्थिकी बढ़ने की संभावनाएं रहती ही हैं। मगर पूरे विश्व में सभी देशों के स्थानीय निवासी ओवरटूरिज्म से खुश नहीं हैं। विशेषकर यूरोप में लोकप्रिय पर्यटक नगरों में अतिशय पर्यटन का विरोध हो रहा है। भारतीय पर्यटन नगरियों में भी पर्यटकों की भारी भीड़, उनके व्यवहार, जाम, उपभोक्ता सामग्रियों की बढ़ती मांग और कूड़ा-कचरे के अंबार के कारण भारत भी देर-सबेर ओवरटूरिज्म के विरोध से अछूता नहीं रहेगा। यूरोप में ओवरटूरिज्म का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इससे घरों के किराए बढ़ गए हैं, हमारी गलियां भीड़भरी हो गई हैं और स्थानीय संस्कृति का क्षरण हो रहा है। भारत में भी अत्यधिक पर्यटनग्रस्त नगरों के नागरिक ऐसा अनुभव कर रहे हैं।
दरअसल, ओवरटूरिज्म की असली कीमत स्थानीय लोग चुका रहे हैं। जाम में फंसकर हर काम में अतिरिक्त समय लग रहा है। आने-जाने में देरी से ज़रूरी काम छूट जाते हैं या टालने पड़ते हैं, जिससे आर्थिक हानि होती है और मानसिक तनाव भी बढ़ता है। यह वह लागत है, जो पर्यटन से होने वाली आय का बखान करने वाली सरकारों और हितधारकों के आकलन में शामिल नहीं होती।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, शिमला में 20 से 23 जून के बीच 60,000 पर्यटक वाहन नगर में दाखिल हुए। इसी प्रकार, जून, 2025 में देहरादून से मसूरी मार्ग पर सामान्य दिनों में जहां प्रतिदिन 4,000 से 8,000 वाहन चलते थे, वहीं अब सप्ताहांत में यह संख्या 15,000 तक पहुंच रही है।
यूरोप में ओवरटूरिज्म के खिलाफ आंदोलन तेज़ हो गया है, विशेषकर इटली, स्पेन और पुर्तगाल में यह विरोध जोर पकड़ रहा है। ‘घर जाओ पर्यटक’, ‘एक पर्यटक का बढ़ना, एक स्थानीय का कम होना’ जैसे पोस्टर आम हो गए हैं। लोगों का कहना है कि उनका जीवन दूभर हो गया है। इसके अलावा बड़े-बड़े होटलों के निर्माण और विस्तार का विरोध हो रहा है। 15 जून को यूरोप के कई हिस्सों में बड़े विरोध-प्रदर्शन हुए। बार्सिलोना इन प्रदर्शनों का प्रमुख केंद्र बन चुका है। वहां प्रदर्शनकारियों ने वाटर गनों से पर्यटकों को निशाना बनाया।
बार्सिलोना की जनसंख्या मात्र 16 लाख है, जबकि 2024 में वहां 2.6 करोड़ पर्यटक आए। लोग कह रहे हैं कि अब जहां नज़र डालें, वहां पर्यटक ही दिखते हैं। ‘आपका सामना ऐसे लोगों से होता है, जिन्हें आप नहीं जानते और जो आपको नहीं जानते,’—स्थिति असहायता का भाव पैदा करती है।
पिछले वर्ष यूरोप में कुल 7470 लाख पर्यटक आए। ग्रीस में देश की जनसंख्या से चार गुना अधिक पर्यटक पहुंचे। अधिकांश प्रमुख पर्यटक शहरों में स्थानीय जनसंख्या से सात-आठ गुना अधिक पर्यटक आ रहे हैं, जिससे सामाजिक, सांस्कृतिक और बुनियादी ढांचे पर भारी दबाव है। भारत में भी यात्रियों के पारंपरिक मूल्यों की दृष्टि से अनुचित आचरण और व्यवहार से समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
उत्तराखंड के समाज विज्ञानियों का कहना है कि इस साल के टूरिस्ट सीजन और चारधाम यात्रा के दौरान प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से जो वीडियो, तस्वीरें और खबरें सामने आईं, वे दर्शाती हैं कि सार्वजनिक स्थानों पर गुंडागर्दी, सड़कों पर हादसे, शराब और ड्रग्स का सेवन व अपराध तेजी से बढ़े हैं। केरल के वायनाड जिले में एक बांध के पास के गांवों के किसान रील बनाने आने वाली उद्दंड पर्यटक भीड़ से परेशान हैं। उन्होंने प्रशासन से इस पर रोक लगाने की मांग की है। वे कहते हैं कि इससे खेतों को नुकसान हुआ है और निजता का भी उल्लंघन हुआ है।
पर्यटकों के मनमाने ढंग से जहां-तहां रुकने और ट्रैफिक नियमों की अनदेखी से पर्यटक मार्गों पर दुर्घटनाओं का जोखिम लगातार बढ़ रहा है। सड़क मार्ग पर लगने वाला जाम तो ओवरटूरिज्म की शुरुआत भर है। इसका असली असर तब दिखता है जब कोई पर्यटक नगरी के भीतर जाकर प्रमुख पर्यटन स्थलों —जैसे झीलों, झरनों, नदियों, पार्कों या म्यूज़ियमों —में पहुंचता है। वहां की भीड़, शोरगुल और प्रदूषण स्थानीय पर्यावरण और शांति को गहरे प्रभावित करते हैं। हजारों पर्यटकों और सैकड़ों वाहनों की आवाजाही से न तो शांति रह गई है, न ही स्वच्छ वायु। प्लास्टिक कचरा और अन्य प्रदूषण अलग से संकट पैदा कर रहे हैं।
सरकारें कैसे सोचती हैं कि स्थानीय लोग थोड़े आर्थिक लाभ के लिए अपनी शांति और पर्यावरण का बलिदान देने को तैयार रहेंगे? मान लिया जाए कि पर्यटन से पैसा आता है, पर वह लाभ मुख्यतः बाजार के कुछ दुकानदारों तक ही सीमित रहता है। ये दुकानदार, सामान की कमी बताकर ओवर रेटिंग करते हैं और ज्यादा मुनाफा कमाते हैं। इन ऊंची कीमतों का असर केवल पर्यटकों पर ही नहीं, बल्कि वहीं रहने वाले स्थानीय लोगों पर भी पड़ता है। होटल व्यवसायी महंगे सामान खरीदकर उसका खर्च पर्यटकों से वसूल सकते हैं, लेकिन घर चलाने वाली एक आम गृहिणी के लिए यह महंगाई एक बड़ा बोझ बन जाती है। वह परिवार की जरूरतें पूरी करने हेतु खरीदारी करती है।
पारिस्थितिकी तंत्र और प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता भार ओवरटूरिज़्म का एक गंभीर पहलू है। यह समस्या केवल हिमालयी राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में भी देखी जा रही है। भारत के पहाड़ी या पठारी क्षेत्रों, जो अधिकतर ईको-संवेदनशील हैं, पर भी ओवरटूरिज़्म का दबाव स्पष्ट दिखा है।
केरल के वायनाड जैसे क्षेत्र, जो भूस्खलन व वन्यजीवों के आक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील हैं, वहां भी अनियंत्रित पर्यटक गतिविधियां चिंता का विषय बनी हुई हैं। तमिलनाडु के पहाड़ी स्थलों पर प्रतिदिन लगभग 20,000 वाहन पहुंच रहे हैं, जिससे नीलगिरी जैसे क्षेत्रों में सूखे और पर्यावरणीय असंतुलन की स्थिति बन रही है। कोर्ट के निर्देशों के तहत यहां ई-पास प्रणाली लागू करके पर्यटकों की संख्या सीमित करने के निर्देश भी दिए गए हैं।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में सड़कों की ‘बियरिंग कैपेसिटी’ का वैज्ञानिक तरीके से आकलन करने के निर्देश दिए गए हैं। केरल और तमिलनाडु में भी न्यायालयों ने पर्यावरणीय संरक्षण के संदर्भ में सख्त दिशा-निर्देश दिए हैं। दरअसल, ईको-संवेदनशील पर्यटन स्थलों के लिए पर्यटक वहन क्षमता के मानक और आकलन की पद्धतियां सामान्य पर्यटन नगरों से भिन्न होंगी। वहां की प्रकृति के अनुसार पर्यटक संख्या और प्रतिबंधों का निर्धारण किया जाना चाहिए।
उत्तराखंड की कुल जनसंख्या लगभग 1.2 करोड़ है, जबकि हर वर्ष यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या 6 करोड़ से अधिक हो चुकी है। यानी राज्य की जनसंख्या से लगभग पांच गुना अधिक पर्यटक यहां आते हैं। लद्दाख के सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने हाल ही में कहा था कि लद्दाख जैसे दुर्गम क्षेत्रों में स्थानीय लोग प्रतिदिन 5 से 10 लीटर पानी में जीवन यापन कर लेते हैं, लेकिन बाहरी पर्यटकों को प्रतिदिन 200 से 500 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। यह पारिस्थितिकीय भार है।
यूरोपीय पर्यटन प्रभावित शहरों में भीड़ नियंत्रण व सांस्कृतिक-सामाजिक संरचना को बचाने हेतु विशेष प्रबंधन योजनाएं लागू की जा रही हैं। स्पेन, इटली और ग्रीस जैसे देश अब ‘नेचर-बेस्ड टूरिज़्म’ को बढ़ावा दे रहे हैं। फिनलैंड, ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और नीदरलैंड जैसे देश ईको टूरिज़्म और ‘स्लो व इमर्सिव टूरिज़्म’ को बढ़ावा दे रहे हैं। साथ ही, ‘जीरो कार्बन ट्रांसपोर्ट’ यानी पर्यावरण-अनुकूल यात्रा विकल्पों को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है।
लेखक पर्यावरण वैज्ञानिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं।