Tribune
PT
About Us Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

चीन से रिश्तों को लेकर सजगता जरूरी

भारत-चीन संबंध सुधारने की दिशा में प्रगति हुई है। देपसांग और डेमचोक से चीन पीछे हटा है व बाकी जगह में सीमित तौर पर। वहीं डब्ल्यूएमसीसी का दावा है कि 2020 में उभरे मुद्दों को सुलझा लिया गया है। बेशक...
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

भारत-चीन संबंध सुधारने की दिशा में प्रगति हुई है। देपसांग और डेमचोक से चीन पीछे हटा है व बाकी जगह में सीमित तौर पर। वहीं डब्ल्यूएमसीसी का दावा है कि 2020 में उभरे मुद्दों को सुलझा लिया गया है। बेशक टकराव टला है व तनाव घटा है लेकिन पूर्व की यथास्थिति बहाली बाकी है।

मेज. जन. अशोक के. मेहता (अ.प्रा.)

Advertisement

बीती एक अप्रैल को भारत-चीन संबंधों की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर चीनी राजदूत जू फेइहोंग और भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी द्वारा मिलकर केक काटना ‘रिश्ते सामान्य हैं’ का आभास पेश करना था। चूंकि चीन की प्रवृत्ति केवल अपना हित साधने की रही है, इसलिए यह उम्मीद न के बराबर थी कि विरासत समझकर कब्जाए देपसांग और डेमचोक को वह पूरी तरह छोड़कर पीछे हटेगा। लेकिन उसने ऐसा किया। यह प्रसंग चार अन्य टकराव बिंदुओं से सीमित रूप से पीछे हटने के अलावा है। तो 2024 की जुलाई और अक्तूबर माह के बीच देपसांग और देमचोक में उसके पीछे हटने को किसने उत्प्रेरित किया होगा? कहीं इसके पीछे कारण ट्रम्प का जीतना तो नहीं... शायद है। जहां एक ओर अमेरिका चीन पर अपना ध्यान केंद्रित करने की खातिर रूस के साथ संबंध बेहतर करना चाहता है, वहीं चीन भी अमेरिका पर फोकस करने को भारत से संबंध सुधारना चाहेगा।

3 मार्च को लेक्स फ्रिडमैन के साथ अपने लंबे पॉडकास्ट में, मोदी ने कहा ‘हमने कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर राष्ट्रपति शी के साथ मेरी बैठक के बाद सीमा पर स्थिति को सामान्य होने की तरफ लौटते देखा है। हम अब 2020 से पहले जो यथास्थिति सीमा पर थी, उसकी बहाली के लिए काम कर रहे हैं। इसमें समय लगेगा।’ कज़ान में किस नए जादुई मंत्र ने नेताओं का मार्गदर्शन टकराव टालने में किया, वह अज्ञात है। संसद में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बताया था कि संबंधों के अन्य हिस्से का सामान्यीकरण सीमा तनाव के समाधान पर निर्भर करेगा। देमचोक और देपसांग में पीछे हटने का काम पूरा हो चुका है, जबकि पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण के अन्य क्षेत्रों में, पीछे हटना अस्थायी और सीमित प्रकृति (बफर ज़ोन) का रहा। उन्होंने कहा कि अगला कदम तनाव घटाने और फौज तैनाती कम करने का होगा।

संबंधों में लगभग सामान्यीकरण हो चुका है यह बताने में जल्दबाजी दिखाकर भारत ने चाहे-अनचाहे चीनी विदेश मंत्री वांग यी की उस सलाह को मान लिया लगता है, जिसमें कहा गया था कि 2005 में बनी सहमति के मुताबिक द्विपक्षीय संबंधों में सीमा विवाद का मुद्दा यथेष्ट मौके के लिए छोड़ा जाए (जिसे भारत तथ्यात्मक रूप से गलत बताता है)। जयशंकर का यह बयान कि सीमा पर स्थिति का सामान्य होना द्विपक्षीय संबंधों की हालत को प्रतिबिंबित करता है, वांग की कही पर मुहर लगाता प्रतीत होता है। इस कूटनीतिक भाषा की बारीकी से इतर, 21 अक्तूबर को बनी सहमति के दो दिन बाद यानी 23 अक्तूबर को सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी का यह बयान अधिक वास्तविकता भरा था- ‘कुछ हद तक गतिरोध बरकरार है; वांछित अंतिम स्थिति तभी बनेगी, जब अप्रैल 2020 से पूर्व की यथास्थिति बहाल हो जाएगी।’ लेकिन विदेश मंत्रालय फिर भी अड़ा रहा कि सेना प्रमुख ने जो कहा और उसके बयानों के बीच कोई विरोधाभास नहीं। जबकि विरोधाभास अनेक हैं जहां 32 दौर के विचार-विमर्शों के बाद डब्ल्यूएमसीसी का यह दावा करना कि 2020 में उभरे तमाम मुद्दों को सुलझा लिया गया है वहीं जयशंकर ने संसद को बताया कि चीन दो जगहों से पूरी तरह पीछे हटा है और बाकी जगह में सीमित तौर पर, इन दोनों बयानों में फर्क साफ है। इसी प्रकार, विशेष प्रतिनिधियों के बीच 23वें दौर की वार्ता फिर शुरू होने के बाद चीन का कहना कि छह-सूत्रीय सहमति बन गई है वहीं भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा घोषित स्थिति के बीच फर्क था। गत 21 अक्तूबर के समझौते के बाद वांग ने कहा कि यह सीमा पर बनी आमने-सामने की स्थिति का पटाक्षेप है और सीमा संबंधी विवाद को द्विपक्षीय संबंधों से अलग रखकर बरता जाना चाहिए। चीन में भारत के पूर्व राजदूत और 1996 में चीन के साथ बनी आचार संहिता में एक वार्ताकार रहे अशोक कांठा का कहना है कि ‘बफर ज़ोन’ नामक नई अवधारणा बीच में घुसेड़ दी है, क्योंकि पहले से लंबित विवाद -बाराहोती 1956 और सुमदोरोंग चू 1997- में ‘बफर ज़ोन’ जैसी चीज़ जरूरी नहीं मानी गयी थी। ऐसा लगता है भारत भी सीमा को लेकर चीनी शब्दावली बरतने को राजी हो गया। ‘एलएसी’ के बजाय केवल ‘सीमा’ कहना और ‘पुरानी स्थिति की पुनर्बहाली’ की जगह ‘तनाव घटाने’ और ‘सैनिक तैनाती संख्या में कमी लाने’ जैसे शब्द बरतने लगा है, जबकि चीनियों ने ये शब्द कभी इस्तेमाल नहीं किए क्योंकि उन्हें ये लागू करने ही नहीं।

आमने-सामने के टकराव वाली स्थिति बनने के बाद, गलवान प्रसंग में चीन को क्लीन चिट देने की शुरुआती गलती के उपरांत भी कई मौकों पर अजीब ही स्थिति बनी , जब कहा गया , ‘न तो कोई हमारे इलाके में घुसा है, न ही हम किसी के क्षेत्र में गए हैं।’ किसी प्रकार का इलाकाई नुकसान न होने के दावों के बावजूद लगभग 2000 वर्ग किमी भूमि चीनी कब्जे में है। वर्ष 1956 में किए अपने दावों के अनुरूप चीन ने देमचोक से देपसांग तक की सीमा पर कई जगह घुसपैठें की हैं और कुछ टकराव बिंदुओं पर बफर ज़ोन स्थापित कर दिए हैं जो कि मुख्यतः वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय हिस्से की तरफ हैं और देपसांग और देमसोक में समन्वित गश्त की अनुमति नहीं दी। सवाल यह बाकी है कि 65 गश्ती क्षेत्रों में कितने में हमें जाने दिया जा रहा, 2020 से पहले की यथास्थिति बहाली पर अगले कदम कितनी जल्दी उठाए जाएंगे; घोर खुफिया विफलताओं की किसकी जवाबदेही है आदि।

सरकार ने संसद में यह कहकर किसी बहस की अनुमति नहीं दी कि इससे सैनिकों के मनोबल और राष्ट्रीय सुरक्षा पर विपरीत असर पड़ेगा। ‘नेहरू के वक्त हमने अधिक भूमि खोई थी’ की रट लगाने के बजाय सरकार को वर्तमान चूकों की व्याख्या करनी चाहिए। ऑपरेशनल निर्देश में स्पष्टता की कमी की वजह से ही भारत का कैलास की ऊंची चोटियों पर बना रणनीतिक प्रभुत्व पूर्व जैसा नहीं रहा। अन्यथा चीन द्वारा पीछे हटने की प्रक्रिया का भाग्य एकदम अलग होता यानी भारत के पक्ष में।

कार्नेगी एंडोमेंट के एश्ले टेलिस ने हाल ही में भारत-चीन गतिरोध पर एक चर्चा की थी, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि भारत को अभी भी चीन से इस पर कोई स्पष्टीकरण नहीं मिला है कि उसने लद्दाख में क्या किया है; दोनों पक्षों के दिल में कोई बदलाव न होने के बावजूद तनाव कम होने से पहले सामान्यीकरण शुरू कर दिया गया था; और यह सीमा पर एक रणनीतिक बदलाव न होकर बल्कि सामरिक दृष्टि से किया एक बदलाव रहा।

सीमा पर 2020 से पहले वाली यथास्थिति की बहाली असंभावित बनने के बाद, सीमा विवाद को पूर्ण और अंतिम समाधान की ओर ले जाने के वास्ते एक नया ही रास्ता अपनाया जा रहा है।

लेखक रक्षा संबंधी विषयों के टिप्पणीकार हैं।

Advertisement
×