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वंदे मातरम : राष्ट्रभाव के 150 वर्ष : यह गीत वही जन-ऊर्जा है, जिसने अंधकार चीरकर स्वतंत्रता की सुबह रची

वर्ष 2025, भारत के इतिहास का वह ऐतिहासिक पड़ाव है, जब राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं। 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह गीत केवल साहित्य की रचना नहीं था। यह भारतीय चेतना,...
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वर्ष 2025, भारत के इतिहास का वह ऐतिहासिक पड़ाव है, जब राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं। 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह गीत केवल साहित्य की रचना नहीं था। यह भारतीय चेतना, अस्मिता, स्वाधीनता व राष्ट्रभाव के बीज बोने वाला शब्द-शस्त्र था। यह गीत जन-मन की वही ऊर्जा है, जिसने गुलामी के अंधकार को भेदकर स्वतंत्रता की सुबह का विश्वास जगाया। भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के 150 वर्षों के कालखंड में ऐसा कोई दौर नहीं था, जब वंदे मातरम का स्वर क्रांतिकारियों, सत्याग्रहियों, समाज सुधारकों, युवाओं व भारत माता के लिए मर मिटने वाले राष्ट्रभक्तों के गले से न फूटा हो।

1875 में बंगाल के तत्कालीन राजनीतिक व सामाजिक परिदृश्य में उत्पन्न यह गीत धीरे-धीरे भारत की आत्मा की आवाज बन गया। 1882 में ‘आनंदमठ’ उपन्यास के माध्यम से यह गीत जन-चेतना के केंद्रीय भाव में स्थापित हुआ। 1896 में कलकत्ता में हुए कांग्रेस अधिवेशन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा पहली बार सार्वजनिक गायन किया गया। फिर 1905 का बंग-भंग आंदोलन आया, जिसने इस गीत को राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक बना दिया। इस कालखंड में देश की हर गली व सड़क से लेकर क्रांतिकारियों की गुप्त सभाओं तक, हर भारतीय के गले में एक ही स्वर गूंज रहा था- वंदे मातरम। यही वह गीत था, जिसने मातृभूमि को देवी के स्वरूप में स्थापित किया और आजादी की लड़ाई को आध्यात्मिक, भावनात्मक व वैचारिक शक्ति प्रदान की। 1950 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी ने राष्ट्र गीत का दर्जा प्रदान किया।

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मेरा मानना है कि किसी भी आंदोलन को सफल बनाने के लिए केवल अस्त्र-शस्त्र ही नहीं, बल्कि भाव, विचार, विश्वास और राष्ट्रीय चरित्र की भी आवश्यकता होती है। वंदे मातरम ने गुलामी पर गर्व करने की गुलाम मानसिकता को तोड़ा और भारत की जनता को यह बताया कि हम भी विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक हैं। हमारे पास संस्कृति है, परंपरा है, मूल्य हैं, आत्मसम्मान है और मातृभूमि की रक्षा का अटूट संकल्प है। इसी गीत की ऊर्जा से सावरकर जैसे वीर जगे, चन्द्रशेखर आज़ाद जैसी शहादतें जन्मीं, भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी पले, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे राष्ट्रवादी नायक विश्व मंच पर उठे। इतिहास साक्षी है कि वंदे मातरम का एक-एक शब्द ब्रिटिश सत्ता की नींद उड़ाने में सक्षम था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व में आज जब भारत आत्मनिर्भरता, तकनीकी नेतृत्व, अंतर्राष्ट्रीय आस्था, सांस्कृतिक पुनरुत्थान और वैश्विक शांति जैसे नये आयामों की ओर तेज गति से बढ़ रहा है तब वंदे मातरम की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। अमृतकाल का भारत केवल इतिहास की महिमा का पाठ नहीं पढ़ना चाहता, बल्कि आने वाले भविष्य के भारत को गढ़ना चाहता है। यह गीत आज भी भारतीय लोकतंत्र के नैतिक कम्पास जैसा है, जो हमें याद दिलाता है कि राजनीति का लक्ष्य सत्ता नहीं, राष्ट्र सर्वोच्च है। मोदी जी का मानना है कि विकास के हर निर्णय में भारत पहले, भारत की जनता पहले, भारत की अस्मिता पहले, यही भारतीय लोकतंत्र की मूल दिशा होनी चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने बीते वर्षों में वंदे मातरम के संदेश को आधुनिक राष्ट्र निर्माण के भाव से पुनर्स्थापित किया है। उन्होंने इसे केवल सांस्कृतिक स्मृति या प्रतीकवाद तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे नयी पीढ़ी की राष्ट्र चेतना के केंद्र में स्थापित किया है। आज जब भारत विश्व शक्ति के रूप में उभर रहा है, प्रधानमंत्री मोदी जी ने हर मंच, हर अवसर, हर वैश्विक संवाद में भारत की हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित किया है। उन्होंने मातृभूमि के प्रति सम्मान, भारत की पहचान पर गर्व, भारतीयता को आत्मविश्वास के साथ अपनाने और राष्ट्र सर्वोपरि की भावना को जन-जन तक पहुंचाया है। वंदे मातरम के इस 150 वर्ष के पड़ाव पर यह कहना उचित है कि नये भारत की विचारधारा, नये भारत का आत्मविश्वास और नये भारत की नीति दिशा, सब में इस गीत की आत्मा कार्यशील व जीवित रूप में दिखती है।

अगले 25 वर्ष भारत के भविष्य निर्माण का निर्णायक काल हैं। आने वाले 2047 के भारत की यात्रा केवल आर्थिक महाशक्ति बनने की यात्रा नहीं, यह सामूहिक चरित्र, नये सामाजिक अनुशासन, नये सांस्कृतिक अभ्युदय और लोकतंत्र की नयी ऊंचाइयां छूने की यात्रा है। यह वह समय है, जब भारत को सभी पीढ़ियों को एक सूत्र में पिरोने वाली साझा राष्ट्रीय भावना की आवश्यकता है। यही साझा राष्ट्रीय भावना ‘वंदे मातरम’ में निहित है। यह गीत भारत को केवल भावनात्मक रूप से नहीं जोड़ता, बल्कि यह हमारी लोकतान्त्रिक जिम्मेदारी को जाग्रत करता है। यह हमें याद दिलाता है कि राष्ट्रवाद विभाजन का नहीं, राष्ट्रवाद एकता का नाम है। यही राष्ट्रवाद भारत के लोकतंत्र को विश्व का सबसे सशक्त, सर्वश्रेष्ठ और सर्वसमावेशी लोकतंत्र बनाता है। ‘वंदे मातरम’ मां भारती को प्रणाम करने का मंत्र है। यह गीत हमारे संविधान, हमारी संस्कृति, हमारी स्वतंत्रता, हमारी अस्मिता और हमारी साझा राष्ट्रीय चेतना का अमर गीत है। आज जब 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं, हमें भारत की आने वाली पीढ़ियों को यह बताना चाहिए कि चाहे देश कितना भी आगे बढ़ जाए, चाहे तकनीक कितनी भी उन्नत हो जाए, चाहे वैश्वीकरण कितना भी व्यापक हो जाए, हमारी आत्मा, हमारी पहचान और हमारी राष्ट्रीय धुरी मातृभूमि ही रहेगी। भारत की माटी से बढ़कर कोई पूज्य नहीं है। वंदे मातरम।

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