योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’
आज हम सभी किसी न किसी कारण तनावों में फंसे रहते हैं और इस छटफटाहट से कैसे भी मुक्त होना चाहते हैं। कभी ज्योतिषियों की शरण में जाते हैं, तो कभी झाड़फूंक वाले मुल्ला-मौलवियों के चक्कर काटते हैं और कभी कथाओं-प्रवचनों में शान्ति ढूंढ़ने का प्रयास करते हैं और जब पता चलता है कि जिन्हें हम तनाव दूर करने का साधन मान रहे थे, वे तो खुद बहुत बड़े-बड़े झंझटों और तनावों में फंसे हुए हैं, तब पछताने के अलावा कोई दूसरा रास्ता ही हमें नहीं मिलता।
कबीर ने तो जाने कितनी बार हम सभी को अपनी साखियों के माध्यम से चेताया है, लेकिन हम हैं कि कभी चेते ही नहीं। कबीर ने कहा :-
‘माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख माहीं।
मनवा तो चहुं दिसि फिरे, ये तो सुमिरन नाहिं।’
अब आप ही बताइए कि ऐसे सुमिरन से क्या किसी को भी शान्ति या तनाव से मुक्ति मिल सकती है? इसी संदर्भ में संत कबीरदास के जीवन से जुड़ी एक घटना हम सभी को जीवन का सच्चा अर्थ बताने में सक्षम है।
किसी राजा ने संत कबीर से प्रार्थना की, ‘महाराज! आप कृपा करके मुझे संसार के बंधनों से छुड़ाओ।’ संत कबीर ने उन्हें कहा, ‘राजन! आप तो धार्मिक हो और हर रोज पंडित जी से कथा करवाते हो और सुनते हो।’
राजा ने कहा, ‘हां महाराज! कथा तो पंडित जी रोज़ सुनाते हैं और विधि-विधान भी बताते हैं, लेकिन अभी तक भी मुझे न तो भगवान के दर्शन ही हुए हैं और न ही अपनी मुक्ति का अनुभव ही हुआ है। अब मुझ पर आप कृपा करें।’ कबीर ने कहा, ‘अच्छा! मैं आज कथा के वक्त आ जाऊंगा।’ समय पर कबीर वहां पहुंच गए, जहां वो राजा, पंडित जी से कथा सुन रहा था। संत कबीर को देखकर राजा उठकर खड़ा हो गया, क्योंकि उसे कबीर से कुछ लेना था। कबीर का भी अपना आध्यात्मिक प्रभाव था। वे बोले, ‘राजन! अगर आपको कुछ पाना है, तो आपको मेरी आज्ञा का पालन करना पड़ेगा।’ राजा ने कहा, ‘हां, महाराज! मैं आपकी हर आज्ञा मानूंगा।’
कबीर ने कहा, ‘मैं आज आपकी राजगद्दी पर बैठूंगा। आप अपने वजीर से कह दो कि वो मेरी आज्ञा का पालन करे।’ राजा ने वजीर को हुक्म दिया, ‘अभी से संत कबीर ही यहां के राजा हैं और ये जैसा कहें, वैसा ही आपको करना है।’
कबीर ने वजीर को आज्ञा दी, ‘एक खंभे के साथ राजा को बांधो, और दूसरे खंभे के साथ पंडित जी को बांधो।’ यह सुनकर राजा ने समझ लिया कि इसमें अवश्य ही कोई रहस्य होगा और उसने वजीर को इशारा किया कि आज्ञा का पालन हो। राजा और पंडित को दो खंभों से बांध दिया गया। कबीर पंडित से कहने लगे, ‘देखो! पंडित जी! राजा साहब तुम्हारे श्रोता हैं। वे बंधे हुए हैं, उन्हें तुम खोल दो।’ पंडित जी बोले, ‘महाराज! मैं तो स्वयं ही बंधा हुआ हूं, उन्हें कैसे खोलूं?’ अब कबीर ने राजा से कहा, ‘ये पंडित जी तो आपके पुरोहित हैं न? वे बंधे हुए खड़े हैं। आप जरा उन्हें खोल दो।’ राजा ने भी कहा, ‘महाराज! मैं तो स्वयं ही बंधा हुआ हूं, तब उन्हें कैसे खोलूं?’
अब संत कबीर जी ने उन्हें समझाया :-
‘बंधे को बंधा मिले, छूटे कौन उपाय।
सेवा कर निर्बन्ध की, पल में दे छुड़ाय।’
अपनी बात का मर्म समझाते हुए कबीर बोले :-
‘जो पंडित खुद बंधन में है और जन्म-मरण के बंधनों से छूटा नहीं है, राजन! आप उसको कहते हो कि मुझे भगवान के दर्शन करा दो और संसार के बंधनों से छुड़ा दो। अगर बंधनों से छूटना है तो राजन, उनके पास जाओ, जो स्वयं सांसारिक कर्म-भोग और जन्म-मरण के बंधनों से खुद छूटे हुए हैं। ऐसे निर्बन्ध, ब्रह्मवेत्ता और कर्म-बंधनों से छुड़ाने वाले तो संसार में केवल ‘सतगुरु’ ही होते हैं, जिनकी सेवा करके ही इस संसार के आवागमन से मानव की मुक्ति संभव है।’
जरा सोचिए, क्या आज हम सबकी स्थिति यही नहीं हो गई है? हम सब किसी न किसी चिन्ता अथवा तनाव में बंधे हुए हैं और ऐसे व्यक्तियों से मुक्ति दिलाने की कामना करते हैं, जो स्वयं ‘बंधे’ हुए हैं।
यहीं कबीर हमें इस समस्या का सरल-सा समाधान बता देते हैं :-
‘कबीरा संगत साधु की, हरै और की व्याधि।
संगत बुरी असाधु की, आठों पहर उपाधि।’
हमें देखना होगा कि हमारी संगति कैसी है? क्या हम अशान्त और तनावग्रस्त लोगों के बीच घिरे हुए हैं? यदि ऐसा है, तो फिर शान्ति की खोज तो व्यर्थ ही रहेगी न? हमें अपने जीवन को शांतिपूर्ण और तनावमुक्त रखना है तो सबसे सुन्दर और सटीक उपाय है ‘स्वाध्याय’ अर्थात् जीवन का तत्व बताने वाले ग्रंथों का अध्ययन करना, जो सच्चे मित्रों की संगति की तरह ही लाभकारी होता है। एक दार्शनिक ने कहा है, ‘पुस्तकें आपकी सबसे सच्ची मित्र होती हैं, बशर्ते आप उनका चुनाव सतर्क होकर करना जानते हों।’ तो आइए, आज एक संकल्प तो हम ले ही लें कि स्वाध्याय से नाता जोड़कर पुस्तकों की सत्संगति में हम रहेंगे और अपने तनावों को अपनी सोच पर हावी नहीं होने देंगे। तब देखिए, आपको असीम शांति का अनुभव अवश्य होगा।