उत्तराखंड स्थापना आंदोलन के दौरान रोजगार प्रमुख मुद्दों में शामिल था ताकि नये राज्य में युवाओं का भविष्य बेहतर हो। लेकिन भर्ती परीक्षा में पेपर लीक होना तंत्र से भरोसे को डिगाता है।
उत्तराखंड राज्य के आंदोलन को मातृशक्ति और युवा शक्ति का आंदोलन कहा गया था। एक स्वयंस्फूर्त आंदोलन में युवाओं की ऐसी भागीदारी थी, जिसमें वे निजी हितों को तिलांजलि देकर बड़े उद्देश्य के लिए आंदोलन में कूद पड़े थे। राज्य स्थापना के आंदोलन के पीछे कई पहलुओं को देखा गया, लेकिन दशकों से चले आ रहे आंदोलन को नब्बे के दशक में चिंगारी रोजगार के मसले पर ही मिली थी। युवाओं ने महसूस किया था कि जिस आरक्षण को राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में लागू किया जा रहा है, वह उनके रोजगार छीन लेगा।
राज्य स्थापना के 25 साल बाद अब फिर युवा उसी तरह सड़कों पर उतरा है। बेशक उसका यह आंदोलन किसी आरक्षण या किसी तकनीकी आधार के विरोध पर नहीं, लेकिन उत्तराखंड में फिर से पेपर लीक की घटना से वह आहत हुआ है। उसे फिर लगा कि उसके जीवन से खिलवाड़ हो रहा है। सियासी पार्टियों के अपने-अपने बयान हैं, लेकिन यह हकीकत है कि राज्य में ऐसा ढांचा बना है जो पेपर लीक करने वालों में डर पैदा नहीं कर पा रहा।
उत्तराखंड में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की स्नातक स्तरीय परीक्षा के दौरान पेपर लीक हुआ है। परीक्षा शुरू होने के 35 मिनट के अंदर पेपर के तीन पेज सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। हालांकि पेपर लीक होना या भर्ती घोटाला इस राज्य के लिए नई बात नहीं रही। राज्य बनने के साथ ही ऐसी घटनाएं समय-समय पर होती रही हैं। राज्य की शुरुआत के साथ ही 2003 में पटवारी भर्ती घोटाला और दारोगा भर्ती घोटाला सामने आये। पेपर लीक का यह पहला मामला नहीं। साल 2021 में स्नातक स्तरीय परीक्षा में पेपर लीक का मामला सामने आया था। इसमें कई आरोपी गिरफ्तार हुए तथा जांच के आदेश दिए थे। राज्य में पटवारी, लेखपाल, ग्राम विकास अधिकारी जैसी कई परीक्षाओं में पेपर लीक के आरोप लगे। वन दारोगा भर्ती में भी पेपर लीक व ऑनलाइन नकल के आरोप लगे। जांच हेतु राज्य सरकार ने विशेष जांच दल गठित किया।
2023 में सरकारी भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक और कथित घोटालों के खिलाफ छात्रों के जगह-जगह विरोध प्रदर्शन के बाद राज्य सरकार ‘उत्तराखंड प्रतियोगी परीक्षा अधिनियम 2023’ लेकर आई थी। तब इसे पेपर लीक और नकल रोकने के लिए सबसे सख्त कानून बताया गया। इसमें ऐसी कड़ी धाराएं थी जो ऐसी गतिविधियों में संलिप्त व्यक्तियों को सोचने पर विवश करें। लेकिन हाल ही में फिर उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की स्नातक स्तरीय परीक्षा दौरान पेपर लीक की बात सामने आई है, जिसने सबको चौंकाया। हर कोई हैरान है कि कड़े कानून और समय-समय पर कार्रवाई होने के बावजूद ऐसे तत्वों पर फर्क नहीं पड़ा है।
निश्चित ही ऐसे काम को अंजाम देने वाली एक बड़ी लॉबी सक्रिय है, और इस पूरे तंत्र से निपटना किसी भी सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। ऐसे तत्वों का फैलाव इतनी दूर तक है कि सरकार का मजबूत तंत्र उनसे निपट नहीं पा रहा है। दरअसल यह किसी एक राज्य की नहीं, बल्कि पूरे देश की भी चिंता है। ऐसे कई सवाल उत्तराखंड के छात्रों के मन में उठना स्वाभाविक है कि छोटे-छोटे कबूतर नहीं, असली बाज कौन हैं?
उत्तराखंड सामाजिक आंदोलनों के लिए जाना जाता है। कभी यहां की निरक्षर महिलाओं ने दुनिया भर को पर्यावरण के महत्व से जागरूक किया। यहीं महिलाओं ने अपने बच्चों के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए आंदोलन किया। युवाओं को शिक्षा व रोजगार के लिए मातृशक्ति ने नब्बे के दशक में ऐसा आंदोलन खड़ा किया, जिससे एक नहीं, तीन राज्यों की स्थापना करा दी। इन सबके मूल मेंे एक आदर्श राज्य बनाने की सोच थी, जहां युवाओं के रोजगार सुरक्षित हों, अवसर मिलें। लेकिन आज भी लोगों की आंखों की नमी कम नहीं हुई। पच्चीस साल बाद उत्तराखंड का युवा फिर उसी जद्दोजहद में फंसा दिख रहा है, तो मानना चाहिए कि इसके पीछे कई पेच हैं। उसके स्वर आज भी यही हैं कि ‘हमारे साथ अन्याय हो रहा है।’
जिस जवानी को उत्तराखंड के भविष्य के साथ जोड़कर देखा जा रहा है, उसके सीधे सवाल हैं- इस पूरे मामले की सीबीआई जांच कराई जाए, परीक्षा को रद्द किया जाए, अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। वे यह भी कह रहे हैं कि अब पुलिस ने जो कार्रवाई की है, वह उनके दिए तथ्यों के आधार पर की है। पुलिस ने अपने स्तर पर क्या किया है? और सरकार का ठोस कानून युवाओं के हितों का संरक्षण क्यों नहीं कर पा रहा है?
निश्चित ही युवा यह भी चाहते हैं कि उनके खिलाफ दर्ज मुकदमें वापस लिये जाएं। आखिर उन्हें लगता है कि अन्याय हुआ है, तो आवाज़ उठाने से उन्हें क्यों रोका जाए? यह सवाल पूरे उत्तराखंड में उठ रहा है कि असल चूक कहां हो रही है? इस पूरे जाल को कैसे ध्वस्त किया जा सकता है? युवाओं में शासन के प्रति विश्वास कायम रहना चाहिए। कुछ ताकतें स्थितियों को अराजकता की ओर ले जाने के लिए तत्पर रहती हैं। ऐसे में सावधानी बरतते हुए युवाओं को अपनी बात सक्षम तरीके से रखनी होगी। लेकिन इसके लिए सरकारों से भी उनके प्रति संवेदनशीलता की अपेक्षा की जाती है। अब युवाओं में भरोसा जगना चाहिए कि एक चुनी हुई सरकार उनके साथ खड़ी है, उनकी चिंता को समझ रही है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।