अनूप भटनागर
देश में पिछले कई साल में, विशेषकर नागरिकता संशोधन कानून और तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन, दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा और कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान, सोशल मीडिया की भूमिका लगातार विवादों का केंद्र रही है। इस महामारी के दौरान सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म पर निराधार और दूसरों को ठेस पहुंचाने वाली खबरों, वीडियो क्लिप और टीका-टिप्पणियों का बोलबाला रहा है। आरोप है कि सोशल मीडिया पर इस तरह की खबरें सिर्फ अफवाह और भ्रम का माहौल ही नहीं पैदा कर रहीं बल्कि सामाजिक समरसता के ताने-बाने को भी तार-तार करने में भूमिका निभा रही हैं।
ऐसा नहीं है कि भारत सरकार ने कटुता और तनाव पैदा करने वाली सामग्री अपलोड करने वाले स्रोत की जानकारी प्राप्त करने के लिये इन सोशल मीडिया कंपनियों से सहयोग नहीं मांगा। लेकिन इन कंपनियों ने अपनी ही ठसक में इसकी परवाह नहीं की। यही नहीं, न्यायपालिका द्वारा ऐसी सामग्री के प्रचार-प्रसार को लेकर चिंता व्यक्त करने तथा उचित कार्रवाई के उपाय खोजने पर जोर दिये जाने के बावजूद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इन कंपनियों ने इसकी भी परवाह नहीं की।
सरकार और न्यायपालिका द्वारा सोशल मीडिया की भूमिका पर चिंता व्यक्त करने का भी व्हाट्सएप, ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया मंचों पर इसका कोई असर नहीं हो रहा था। इनके रवैये की पराकाष्ठा सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस के बीच टूलकिट को लेकर छिड़े विवाद में ट्विटर की अचानक पेशबंदी ने स्थिति को बहुत गंभीर बना दिया। चूंकि मामला पुलिस की जांच से जुड़ा था, इसलिए सरकार ने ट्विटर के खिलाफ कार्रवाई के लिये कमर कस ली।
जांच प्रक्रिया में अचानक ही हस्तक्षेप करने की ट्विटर की कार्रवाई का नतीजा यह हुआ कि सरकार ने इन सोशल मीडिया मंचों पर अंकुश लगाने और देश के कानूनों का पालन करने के लिये अंतत: सख्त कदम उठा लिये। सरकार ने इन सभी सोशल मीडिया मंचों को देश के कानून और नियमों के अनुरूप काम करने के लिये दिये गये निर्देशों पर तीन महीने के भीतर अमल नहीं करने वाले प्लेटफार्म के खिलाफ अपना रुख कड़ा दिया।
सोशल मीडिया पर न्यायपालिका और न्यायाधीशों के प्रति अनर्गल और अभद्र भाषा के प्रयोग पर देश की शीर्ष अदालत पहले ही सख्ती दिखा रही थी और अब सरकार ने भी कड़ा रुख अपना लिया है। सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों के दोहरे मानदंडों पर सवाल उठाते हुये कहा है कि भारत में किसानों के आंदोलन और लाल किले पर कुछ शरारती तत्वों के हमले की घटना को ये अभिव्यक्ति की आजादी कहते हैं लेकिन जब वाशिंगटन में कैपिटल हिल्स पर लोगों ने हमला किया तो ट्विटर ने तत्कालीन राष्ट्रपति सहित सभी के अकाउंट बंद कर दिये थे।
सरकार ने टूलकिट प्रकरण पर कहा है कि मामला पुलिस की जांच के अधीन होने के दौरान ही ट्विटर का इसे ‘मैन्यूपुलेटेड’ बता देना भारत की जांच प्रक्रिया में हस्तक्षेप है। पुलिस इस मामले की जांच में ट्विटर का सहयोग चाहती है और जानना चाहती है कि आखिर किन साक्ष्यों के आधार पर उसने इस प्रकरण को ‘मैन्यूपुलेटेड’ करार दिया।
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस मामले में सरकार के कड़े रुख को इंगित करते हुए कहा कि जब अमेरिकी सीनेट इन कंपनियों को पेश होने के लिये कहती है तो ये तुरंत हाजिर हो जाती हैं लेकिन जब भारत की संसदीय समिति बनती है तो ये कंपनियां तमाम नानुकुर करने लगती हैं। यह नहीं चलेगा। सोशल मीडिया कंपनियों को भारत का कानून मानना होगा।
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा कि इन कंपनियों का दोहरा चरित्र है। किसी भी तरह की शिकायत के मामले में इन कंपनियों का कहना होता है कि अमेरिका में शिकायत करें। आखिर जब आप कमाई भारत में कर रहे हैं तो इसकी शिकायत करने लोग अमेरिका क्यों जायेंगे? किसी की झूठी तस्वीर वायरल होने, किसी के बारे मे अपमानजनक टिप्पणियां या गलत आरोप लगाये जाने के मामले में देशवासियों के पास शिकायत के लिये भारत में विकल्प उपलब्ध नहीं है और इसी वजह से सोशल मीडिया के लिये नये कानून लागू किये गये हैं।
फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की बहुत बड़ी संख्या हैं जो अपनी पहचान छिपा कर फर्जी नामों से सक्रिय हैं। सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक, निराधार तथा फर्जी पोस्ट तथा वीडियो क्लिप अपलोड करने वाले तत्वों में अधिकांश यही छद्म उपभोक्ता हैं, जिनकी पोस्ट को विभिन्न मुद्दों पर सरकार से असहमति रखने वाले लोग सत्य मानते हुए अनायास ही इन्हें साझा कर लेते हैं। इस तरह के गुमनाम तत्वों की पहचान का पता लगाना और इनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई भी जरूरी है।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान सरकार एक साथ कई मोर्चों पर युद्ध कर रही है और इनमें सोशल मीडिया भी एक प्रमुख मोर्चा है जिस पर तमाम अपुष्ट और अभद्र पोस्टों की भरमार रहती है। इन मंचों पर तो ऐसा लगता है कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सांपद्रायिक कटुता, वैमनस्य और जनता के बीच अविश्वास पैदा करने वालों की बाढ़ आई है। कोई नहीं जानता कि इन तत्वों की जवाबदेही किसके प्रति है।
ऐसी स्थिति में देश में सांप्रदायिक समरसता और संविधान के अनुसार व्यवस्था बनाये रखने के लिये जरूरी है कि सोशल मीडिया के माध्यम से असंतोष, अविश्वास और अशांति पैदा करने के प्रयास करने वाले तत्वों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, आपदा प्रबंधन कानून, महामारी बीमारी कानून और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के प्रावधानों के तहत कठोर कार्रवाई की जाए।