शमीम शर्मा
यूं तो पूरी दुनिया का रंग-ढंग बदल गया है पर जितना आमूल-चूल परिवर्तन विवाहों के आयोजन में हुआ है, उतना कहीं नहीं। शादी-ब्याह का मतलब हुआ करता- एक पारिवारिक आयोजन, जिसमें घर की बहन-बेटियों को कई-कई दिन पहले बुलाया जाता था। पिछले दिनों अपने ही परिवार में एक शादी का निमंत्रण मिला और साथ ही फोन आया कि फलां होटल में पहुंच जाना क्योंकि रिश्तेदार अपने परिवार सहित दो दिन पहले ही होटल में रहने जा रहे हैं। उन्होंने साथ ही यह भी बताया कि वहीं से सारे नेग-टेले किये जायेंगे और घर पर कुछ नहीं होगा। जबकि मुझे चाव चढ़ा हुआ था कि अपने निकट संबंधी के घर जायेंगे, रुकेंगे और उनके रहन-सहन में घुलेंगे-मिलेंगे।
निर्धारित दिन विवाह स्थल पहंुचने पर जब अपने घनिष्ठ संबंधी से बात हुई तो वे किसी टिप्पणी को सुने बगैर ही सफाई देते हुए कहने लगे कि हम तो पैक होकर दो दिन पहले ही होटल में आ गये हैं। घर में सौ टंटे, सत्तर तरह के काम। ऊपर से मेहमानों के बच्चे चार शो-पीस तोड़ कर जाते हैं और दीवारों पर चिकने-गन्दे हाथ लगाकर पेंट खराब करते हैं सो अलग। सहसा झटका-सा लगा और अनुभव हुआ कि प्रेम-संबंधों की जगह अब शो-पीस ले चुके हैं और पारिवारिक माहौल के प्रेम की बजाय दीवारों का पेंट ज्यादा महत्वपूर्ण हो चुका है। रिश्ते चाहे टूट जायें पर शो-पीस सलामत रहने चाहिए।
वे भी दिन थे जब लोग सोचा करते कि अगर घर में कड़ाही चढ़ी नहीं और हलवाई बैठे नहीं तो क्या विवाह। अब तो सारा दारोमदार डिब्बों के रंग और डिजाइन पर आ टिका है। मिठाई की महक और स्वाद से कोई नाता ही नहीं रहा। सपरिवार पधारने का बुलावा तो मिले मुद्दत ही हो गई है। अब तो बुलावे का ढंग यह हो गया है कि जी करे तो आ जाना। अब शादियों में हल्दी और चंदन तो हैं पर रिश्तों के बंधन नहीं हैं।
पारिवारिक संबंधों में अपनत्व भाव तो नदारद हो चुका है। निमंत्रण पत्र से लेकर भाजी वितरण तक हर चीज पैक्ड। रिश्ते-नातों के भी पैकेट बन चुके हैं। लेन-देन के सारे उपहार पैक होकर होटल में पहले से ही पहुंचे होते हैं। साथ ही शगुन की राशि डले लिफाफों में पांच सौ-ग्यारह सौ रुपयों की पैकिंग भी बड़े ध्यान से की जाती है। पैकिंग के सिवा अब शादियां कुछ नहीं रह गई हैं। लड़की भी पैक्ड होकर विदा होने लगी है और फिर उसके बाद यह नहीं पता कि पैकिंग कितने दिन रहेगी?
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एक बर की बात है रामप्यारी नत्थू तैं बोल्ली—रात नैं सुपणे मैं मेरे मां-बाप तैं गालियां किस बात की दे रह्या था? नत्थू बोल्या—तैं झूठ बोल्लै है, मैं उस टैम सोया ए नीं था।